मोदी सरकार ने तीन तलाक कानून के दो साल पूरे होने पर एक अगस्त को “मुस्लिम महिला अधिकार दिवस” (Muslim Women Rights Day) मनाया।
नई दिल्ली में हुए इस कार्यक्रम में केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी, केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी, केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव समेत कई मुस्लिम महिलाएं शरीक हुईं। हालांकि, समाज के विभिन्न तबकों से ताल्लुक रखने वाले करीब 600 लोगों ने इस दिवस/प्रोग्राम का कड़ा विरोध करते हुए इसे मनाने से मना कर दिया। बयान जारी कर उन्होंने नकवी से पूछा कि हम सरकार के निंदक दृष्टिकोण को खारिज करते हैं। हम आपके ‘मुस्लिम महिला अधिकार दिवस’ को खारिज करते हैं और हम सम्मानपूर्वक पूछते हैं कि ‘आपकी हिम्मत कैसे हुई!”
बयान में मुसलमानों पर मोदी सरकार की दोतरफा नीति को उजागर करने का प्रयास किया गया, जिसमें देश के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समूह को हाशिए को अपनी निगरानी में रखने से जुड़े विभिन्न प्रयासों को सूचीबद्ध किया गया। नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) और नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर (एनआरसी) को लागू करने के मोदी सरकार के फैसले के साथ समुदाय पर अत्याचार पर अपनी चुप्पी का उल्लेख करते हुए, उन्होंने कहा: “ऐसी सरकार को मुस्लिम के नाम पर कोई राष्ट्रीय महिला दिवस घोषित करने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है।”
Union Minister for Minority affairs, @naqvimukhtar, Minister for Women & Child Development @smritiirani & Minister for Environment, Forest & Climate Change @byadavbjp attended #MuslimWomenRightsDay programme in New Delhi. pic.twitter.com/5aNnNeU1EG
— Prasar Bharati News Services पी.बी.एन.एस. (@PBNS_India) August 1, 2021
केंद्र के इस कदम (मुस्लिम महिला अधिकार दिवस) को खारिज करने के पीछे कारण भी बताया गया। कहा गया, “यह सरकार जिसने भारत में मुसलमानों के संवैधानिक अधिकारों को एक-एक करके लगातार कम किया है, अब एक अगस्त को मुस्लिम महिला अधिकार दिवस घोषित करने की हिम्मत कर रही है। दावा है कि तीन तलाक विरोधी कानून (मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019) मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए बना था, पर सच यह है यह मुस्लिम आदमियों नए भारत में उनकी जगह दिखाने के लिए बनाया गया था। यह बताने के लिए सिविल मामलों में भी उन्हें सजा हो सकती है। ट्रिपल तलाक कानून तब भी एक तमाशा था और भी तमाशे के अलावा और कुछ नहीं है।
इस साझा बयान पर मुस्लिम के साथ गैर-मुस्लिम महिलाओं, सभी धर्मों और जातियों से नाता रखने वाले पुरुषों और ट्रांसजेंडर्स ने भी हस्ताक्षर किए। साइन करने वालों में पूर्व योजना आयोग (अब नीति आयोग) की सदस्य सैयदा हमीद, ट्रांसपेरेसी ऐक्टिविस्ट अरुणा रॉय, नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वीमेन की एनी राजा, एआईडीडब्ल्यूए की उपाध्यक्ष सुभाषिनी अली, पीयूसीएल की कविता श्रीवास्तव, जेएनयू से निवेदिता मेनन और विकास रावल, समाजशास्त्री नंदिनी सुंदर और थिएटर आर्टिस्ट माया कृष्णा राव हैं।
बयान में याद किया गया है कि उस समय कई हस्ताक्षरकर्ताओं ने क्या कहा था। वे बोले थे, “आप मुस्लिम समुदाय को घुटनों पर लाने की कोशिश करते हुए मुस्लिम महिलाओं को बचाने का नाटक नहीं कर सकते। भावना आज भी उतनी ही सच्ची है जितनी तब थी।” उन्होंने रेखांकित किया कि इस सरकार ने भेदभावपूर्ण सीएए लागू करके मुसलमानों के नागरिकता के अधिकारों को कमजोर कर दिया है।