कांग्रेस की जमीन पर अपना महल बनाने में जुटी तृणमूल ने एक बार फिर से स्पष्ट किया है कि आम जनता से जुड़े मुद्दों पर वह संसद के भीतकर कांग्रेस के साथ खड़ी होने से गुरेज नहीं करेगी लेकिन संसद के बाहर रिश्तों के मायने भीतर जैसे नहीं होंगे। तृणमूल सांसद डेरेक ओ ब्रायन का कहना है कि हम कांग्रेस के साथ कहीं पर भी सत्ता में नहीं हैं। लिहाजा कांग्रेस के दूसरे दलों से जैसे संबंध हैं, वैसे हमारे साथ नहीं हो सकते।

ध्यान रहे कि ममता की तृणमूल सोनिया गांधी की कांग्रेस के साथ 2012 तक सत्ता में भागीदार थी। लेकिन पेट्रोल-डीजल के दामों पर वो यूपीए से बाहर आ गई। उसके बाद यूपीए सरकार सपा बसपा से मिले बाहरी समर्थन पर चलती रही, लेकिन ममता से कांग्रेस के रिश्ते लगातार खराब होते चले गए। हाल ही में ममता बनर्जी ने अपने इरादे यह कहकर जता दिए कि हर बार दिल्ली आने पर सोनिया गांधी से मिलना जरूरी तो नहीं है।

वैसे भी रिश्तों में तल्खी मेघालय के प्रकरण के बाद ज्यादा बढ़ी है। वहां तृणमूल ने सोनिया की पार्टी के 12 विधायकों को अपने दल में शामिल कर लिया है। फिलहाल ममता राष्ट्रीय नेता बनने की राह पर चल निकली हैं। जाहिर है कि इस मिशन में उन्हें मोदी का विकल्प बनने के लिए कांग्रेस से अलग होना पड़ेगा। तृणमूल उसी हिसाब से अपने पत्ते खेलने में लग गई है। टीएमसी का मानना है कि बीते सात सालों में कांग्रेस ने मोदी सरकार से कमजोर लड़ाई लड़ी। पार्टी के महासचिव कुणाल घोष ने कहा कि जबकि ममता के दल ने बीजेपी को हर मसले पर घेरा। कांग्रेस का बड़े भाई वाला रवैया उनकी पार्टी को मंजूर नहीं है।

आज की सर्वदलीय बैठक में भी तृणमूल के तेवर कुछ जुटा ही दिखे। टीएमसी ने 10 बिन्दुओं को उठाया, जिसमें महंगाई, बेरोजगारी, संघीय ढांचे का मुद्दा, मुनाफा कमाने वाले सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का विनिवेश, कुछ राज्यों में सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) का अधिकार क्षेत्र बढ़ाए जाने, संघीय ढांचे, कोविड-19 की स्थिति तथा महिला आरक्षण विधेयक आदि का मुद्दा शामिल है।

उधर, संसद के शीतकालीन सत्र के लिए रणनीति तैयार करते हुए भाजपा ने रविवार को अपने संसदीय दल की बैठक में पार्टी के सांसदों की अधिक से अधिक संख्या में उपस्थिति पर जोर दिया। उन्हें विपक्ष का मुकाबला करने के लिए पूरी तैयारी के साथ आने को कहा है। सूत्रों ने यह जानकारी दी। सोमवार से शुरू हो रहे सत्र से एक दिन पहले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की बैठक के दौरान भी सत्तारूढ़ गठबंधन के सहयोगियों ने बेहतर समन्वय की आवश्यकता पर जोर दिया।