सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को नोएडा अथॉरिटी के पूरे कामकाज की जांच के लिए एक एसआईटी का गठन किया। अदालत ने इसके लिए यूपी कैडर के तीन वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों की एक विशेष जांच टीम का गठन किया। यह मामला कुछ लैंड ओनर्स को मिलने वाले मुआवजे से संबंधित था जिसके लिए SIT के गठन का आदेश पारित किया गया है।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एनके सिंह की पीठ ने नोएडा के एक विधि अधिकारी की अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश जारी किया। उन पर आरोप है कि उन्होंने कुछ भूस्वामियों (Land Owners) के पक्ष में भारी मात्रा में मुआवजा जारी कर दिया, जिनके बारे में आरोप है कि वे अपनी अधिग्रहित भूमि के लिए इतना अधिक मुआवजा पाने के हकदार नहीं थे।
सुप्रीम कोर्ट ने SIT को नोएडा अथॉरिटी की जांच का दिया निर्देश
सर्वोच्च न्यायालय ने एसआईटी को निर्देश दिया कि वह अन्य बातों के साथ-साथ इस बात की भी जांच करे कि क्या भूमि मालिकों को दिया गया मुआवजा, समय-समय पर न्यायालयों द्वारा पारित निर्णयों के अनुसार उनके हक से अधिक था। साथ ही अगर ऐसा है तो वे अधिकारी/कर्मचारी कौन थे जो इतने अधिक भुगतान के लिए जिम्मेदार थे? क्या लाभार्थियों और नोएडा के अधिकारियों/कर्मचारियों के बीच कोई मिलीभगत थी और क्या नोएडा अथॉरिटी के समग्र कामकाज में पारदर्शिता का अभाव है?
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पीठ ने कहा, “एसआईटी जांच के दौरान उठने वाले किसी भी अन्य संबद्ध मुद्दे पर विचार करने के लिए स्वतंत्र होगी।” एसआईटी में एसबी शिराडकर (अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक, लखनऊ जोन), मोदक राजेश डी राव (आईजी, सीबीसीआईडी, लखनऊ) और हेमंत कुटियाल (कमांडेंट, उत्तर प्रदेश , विशेष रेंज सुरक्षा बटालियन, गौतमबुद्ध नगर) यूपी शामिल होंगे। तीनों यूपी कैडर के आईपीएस अधिकारी हैं लेकिन राज्य से संबंधित नहीं हैं।
साल 2021 में गौतमबुद्ध नगर पुलिस स्टेशन में दर्ज किया गया था मामला
कानून अधिकारी और कुछ जमीन मालिकों के खिलाफ 2021 में गौतमबुद्ध नगर पुलिस स्टेशन में मामला दर्ज किया गया था। उन्हें अग्रिम जमानत दी गई थी और बाद में जांच में शामिल होने पर जमानत की पुष्टि की गई थी। हालांकि, जब मामला 14 सितंबर, 2023 को सुनवाई के लिए आया तो पता चला कि यह भूमि मालिकों को मुआवज़े के कथित ज़्यादा भुगतान का एकमात्र मामला नहीं था और ऐसे कई उदाहरण थे। प्रथम दृष्टया, बाहरी विचारों और क्विड प्रो क्वो के आधार पर भुगतान किए गए। अदालत ने तब इस सवाल पर विचार किया कि क्या एक स्वतंत्र एजेंसी को एक वैधानिक प्राधिकरण के रूप में नोएडा के कामकाज की गहन जांच करनी चाहिए।
यूपी कैडर के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों को SIT में किया गया शामिल
हालांकि एक समिति गठित की गई थी लेकिन अदालत ने पाया कि उसके पास सीमित अधिकार थे और उसने परिणाम पर असंतोष व्यक्त किया। अंततः यह सुझाव दिया गया कि नोएडा के मामलों की जांच के मामले में पारदर्शिता, निष्पक्षता और वस्तुनिष्ठता लाने के लिए यूपी कैडर के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों को शामिल करते हुए एक विशेष जांच दल का गठन किया जाए जो राज्य से संबंधित नहीं हैं।
जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने यूपी के अतिरिक्त महाधिवक्ता द्वारा सौंपी गई सूची में से तीन अधिकारियों को चुना। पीठ ने एसआईटी से कहा कि वह ज़रूरत के मुताबिक, दो महीने के भीतर आवश्यक कार्रवाई करे और रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में उसे सौंपे। पीठ ने कहा कि भूमि मालिकों/किसानों के खिलाफ़ कोई भी बलपूर्वक या दंडात्मक कार्रवाई उसकी पूर्व अनुमति के बिना नहीं की जाएगी। देश-दुनिया की तमाम बड़ी खबरों के लिए पढ़ें jansatta.com का LIVE ब्लॉग