दो दिनों तक कमलनाथ राजनीति को हिलाते रहे। ‘होगा तो बताऊंगा… कहकर चैनलों और कई कांग्रेसी नेताओं को हलकान करते रहे। कांग्रेसी नेता कहते रहे कि वे कहीं नहीं जा रहे हैं, तो प्रतिपक्षी मजा लेते रहे कि तब बेटे को लेकर दिल्ली क्यों आ रहे हैं… पूरे दो दिन बाद कमलनाथ खबरों से बाहर हुए!

इसके समांतर भाजपा के महाधिवेशन के सीधे समाचार चलाए जाते रहे। पूरे दिन कार्यकर्ताओं के बीच से रह-रह कर ‘मोदी मोदी मोदी मोदी’ का ‘जयघोष’ उठता रहा और प्रधानमंत्री का ‘अबकी बार चार सौ पार’ वाला संबोधन कि हम ‘राजनीति’ के लिए नहीं, ‘राष्ट्रनीति’ के लिए आए हैं! भाजपा का तीसरा कार्यकाल सत्ता भोग के लिए नहीं मांग रहा… हमें अभी बहुत कुछ करना है..! वे अपनी एक-एक योजना गिनाते रहे और सन 2030 तक का नक्शा भी दिया। साथ ही 2024 के लिए कार्यकताओं को नया संकल्प दिलाया कि अगले सौ दिन तक हर कार्यकर्ता अपने बूथ पर तीन सौ सत्तर वोटों को प्रेरित करे… भारत माता की जय!

इसके आगे प्रधानमंत्री यूपी के ‘संभल’ के ‘कल्कि धाम मंदिर’ का शिलान्यास करते दिखे। उनके साथ कांग्रेस के पूर्वनेता आचार्य प्रमोद कृष्णम् सुदामा से बने दिखे। उनका संबोधन काफी मानीखेज दिखा। इसी बीच फिल्मी गीतकार गुलजार के साथ संस्कृत के कवि स्वामी रामभद्राचार्य जी को ज्ञानपीठ सम्मान देने की खबर ने कुछ देर के लिए जरूर चैनलों को साहित्य की ओर मोड़ा, लेकिन एकाध को छोड़ किसी चैनल को फुर्सत न रही कि इन ‘सम्मान्यों’ का अपेक्षित ‘परिचय’ करता-कराता।आज की राजनीति के बीच साहित्य की क्या बिसात?

एक चैनल अपने ‘मूड आफ द नेशन’ को बार बार विश्लेषित करता-कराता रहता है और हर बार यही निकलकर आता है कि उत्तर में तो भाजपा की एकतरफा जीत है, लेकिन दक्षिण राज्यों की दीवार पार करना बेहद कठिन है। इसे देख भाजपा विरोधी कहते रहते हैं कि जब तक दक्षिण नहीं पार, तब तक चार सौ कैसे पार? लेकिन आशावादी कहते रहते हैं कि दक्षिण की टूटेगी दीवार और इस बार जरूर होंगे चार सौ पार!

इसी बीच एक दिन बंगाल के ‘संदेशखाली’ के माफिया शाहजहां शेख और कुछ अन्यों द्वारा ‘यौन उत्पीड़ित’ औरतों के बड़े प्रदर्शन ने बड़ी खबर बनाई, लेकिन उससे भी बड़ी खबर एक बड़े चैनल के संवाददाता की गिरफ्तारी ने बनाई। दृश्य में एक बड़े चैनल का संवाददाता ‘संदेशखाली’ में हुए अत्याचारों के खिलाफ निकली औरतों को जोर-शोर से दिखा रहा था कि पुलिस उसे जबरिया उठाकर रिक्शे में डाल, थाने ले जाती दिखी, फिर भी वह बंगाली में अपनी गिरफ्तारी का विरोध करता रहा!

मगर अफसोस कि उसकी गिरफ्तारी की खबर उसके अपने चैनल को छोड़ किसी और चैनल ने नहीं दी, न किसी ‘मीडिया संस्था’ ने उसका पक्ष लिया और न बंगाल सरकार की ‘निंदा’ की। इसी बीच चंडीगढ़ में मेयर के चुनाव में एक चुनाव अधिकारी द्वारा की गई हेराफेरी से लोकतंत्र को बचाया सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश ने और नया मेयर बनने पर मनाया जश्न ‘आप’ और ‘कांग्रेस’ के कार्यकताओं ने!

मगर इससे कुछ पहले, हर चैनल पर एक प्रकार का जागरण यानी ‘वोकिज्म’ गरजता-बरसता दिखा: …वाराणसी में देखा मैंने, रात में बाजा बज रहा है। शराब पिए यूपी का भविष्य नाच रहा है, डांस कर रहा है! और फिर एक टुकड़ा… एक पत्रकार से पूछते हुए… आपके मालिक का क्या नाम है… क्या नाम है… (गुस्से में)…नाम बताओ… नाम बताओ (लोग उस पत्रकार को मारने लगते हैं)… मारो मत… मारो मत..!

जरा-सी देर में देश का पूंजीपति वर्ग कुटा और एक नितांत नए किस्म का ‘जातिवादी समाजवाद’ फुफकारा! जरा-सी देर में एक ओबीसी पत्रकार ओबीसी होते हुए भी पिटा! इसे कहते हैं ‘वोकिज्म’, यानी ‘अचानक जागा हुआ’! यानी बतर्ज गालिब : ‘बक रहा हूं जुनूं में क्या क्या कुछ! कुछ न समझे खुदा करे कोई!!’

बहरहाल, चलती बहसों में ‘वोकिस्ट जी’ का एक भक्त उनके ‘यूपी ड्रंक’ पर पानी डालता है कि यूपी में इन दिनों शराब बहती है… तो एक ‘अभक्त’ टोकता है कि दक्षिण के चार राज्य देश की कुल शराब की आधी पी जाते हैं और तुम कहते हो कि यूपी धुत है! तीसरा सुर उठता है कि क्या वक्ता जी के घर में कोई नहीं पीता..! जनता को ‘कोसने’ की इस मानसिकता को ‘डिकोड’ करते एक चर्चक कहता है कि यह उनकी गहरी ‘खीझ’ और ‘कुंठा का परिणाम है। जहां से यात्रा निकलती है वहां उनका कोई न कोई विकेट उखड़ जाता है!