महाराष्ट्र की दो सीटों पर हुए उपचुनाव में चली सहानुभूति की लहर में बुधवार को कांग्रेस के धाकड़ नेता नारायण राणे के पैर उखड़ गए और मजलिस ए इत्तेहादुल मुसलमीन (एमआइएम) के उम्मीदवार रहबर सिराज खान सूखे पत्ते की तरह उड़ गए। ग्यारह अप्रैल को दो सीटों पर हुए उपचुनावों में मतदाता सहानुभूति की लहर में बहे।
नतीजा यह हुआ कि जो सीट जिस दल के पास थी, उसी के पास बनी रही। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता आरआर पाटील के निधन से खाली हुई तासगांव सीट पर उनकी पत्नी सुमनताई पाटील जीती, तो शिवसेना नेता बाला सांवत के निधन से खाली हुई बांद्रा पूर्व की सीट उनकी पत्नी तृप्ति सावंत ने जीती।
माना जा रहा था कि कांग्रेस उम्मीदवार राणे शिवसेना की तृप्ति सावंत को कड़ी टक्कर देंगे। मगर मतगणना के किसी भी दौर में राणे सांवत से आगे नहीं निकल पाए। बुधवार को आए नतीजों में शिवसेना की तृप्ति सावंत को 52711, कांग्रेस के नारायण राणे को 33703 और एमआइएम के रहबर सिराज को 15050 वोट मिले। तासगांव में सुमनताई पाटील ने भारतीय जनता पार्टी के बागी निर्दलीय स्वप्निल पाटील को एक लाख 12 हजार मतों से पराजित किया। भाजपा, कांग्रेस, शिवसेना ने सुमनताई के खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारा था मगर आठ निर्दलीय उम्मीदवार सुमनताई के सामने थे।
बांद्रा के उपचुनाव पर सभी की निगाहें लगी थीं क्योंकि इस विधानसभा क्षेत्र में शिवसेना प्रमुख दिवंगत बाल ठाकरे का निवास मातोश्री है। शिवसेना ने इस उपचुनाव को प्रतिष्ठा की लड़ाई बनाया था। बीते साल कुडाल से विधानसभा चुनाव हारने के बाद नारायण राणे के लिए यह उपचुनाव महत्त्वपूर्ण बन गया था तो इसके जरिए एमआइएम मुंबई महानगरपालिका चुनाव से पूर्व अपने प्रभाव का आकलन करना चाहती थी।
बांद्रा में 42 फीसद वोट पड़े थे तो तासगांव में 58, बांद्रा में कमजोर मतदान ने राजनैतिक विश्लेषकों को उलझन में डाल दिया था कि इससे किसको फायदा होगा। मतदान के बाद एक एजंसी के सर्वे में शिवसेना को 38 और कांग्रेस को 34 फीसद वोट मिलने की घोषणा की गई थी, जो गलत साबित हुई। माना जा रहा था कि एमआइएम उम्मीदवार के उतरने से 90 हजार मुसलिम वोटों का बंटवारा होगा क्योंकि मुसलिम मतदाता कांग्रेस को भी वोट देते रहे हैं। इसका फायदा शिवसेना को मिलने की उम्मीद जताई गई थी। मगर मतदाताओं में उठी सहानुभूति की लहर ने सारे अनुमानों को हाशिये पर डाल दिया।
जीत का जश्न-जीत के बाद शिवसैनिकों ने राणे के मुंबई स्थित घर के सामने जश्न मनाया, भगवा लहराया और पटाखे फोड़े। राणे समर्थक और शिव सैनिक में तू तू-मैं मैं भी हुई। तृप्ति सावंत की जीत सुनिश्चित होते ही बांद्रा पूर्व में शिव सैनिक बड़ी संख्या में जमा हो गए। कई महिला शिव सैनिकों के हाथ में मुर्गियां थीं। शिवसैनिक नारेबाजी करते हुए नारायण राणे को राजनीति से संन्यास लेकर मुर्गियां बेचने की सलाह दे रहे थे।
जीत के बाद उद्धव ने कहा- हम किसी का बुरा नहीं सोचते। मगर कोई हमारे मुकाबले में आता है तो हम पीछे भी नहीं हटते। शिव सैनिक बाघ हैं। हम इस बात को महत्त्व नहीं देते कि परायज किसकी हुई है। अपनी जीत हमारे लिए महत्वपूर्ण है। हमें मुसलिमों ने भी वोट दिया है। हमने नहीं कहा कि मुसलिमों का मताधिकार छीनना चाहिए। हमारा मानना है कि मुसलिम वोट बैंक की राजनीति खत्म होनी चाहिए।
हार के बाद राणे ने कहा- लोगों ने विकास के मुद्दे को छोड़ कर भावनात्मक मुद्दे पर मतदान किया। जनता को विकास नहीं चाहिए तो मेरी कोई शिकायत नहीं है। जनता का निर्णय स्वीकार है। लोकतंत्र में हार जीत तो होती ही रहती है। भविष्य में क्या फैसला लूंगा, यह मेरा निजी मामला है। कांग्रेस के सभी नेताओं ने प्रचार में सहयोग दिया था इसलिए यह कहना गलत है कि उनका सहयोग नहीं मिला। शिवसेना वफादारी की बात कर मुझे वफादारी न सिखाए। शिव सेना की नजर में वफादारी का मतलब मैं जानता हूं।