शिवसेना के वरिष्ठ नेता और सांसद संजय राउत ने कहा है कि संसद के मानसून सत्र के अंत में राज्यसभा के अंदर विरोध जताने वाले सांसदों पर हमला करने के लिए मोदी सरकार ने भाड़े के टट्टू भेजे थे। ये बाहरी लोग थे। बताया कि वरिष्ठ नेता शरद पवार 55 वर्ष संसदीय लोकतंत्र में काम कर चुके हैं। उन्होंने इस पर दुख जताया और कहा कि अपने 55 वर्ष के संसदीय जीवन में ऐसा कभी नहीं देखा। यह सब सरकार क्या करना चाहती है।

मीडिया को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा, “जनरल इंश्योरेंस वाला बिल तय हुआ था कि उसे अगले दिन लाना है, क्योंकि ओबीसी वाले बिल पर सर्वसम्मति से चर्चा करना था। पांच घंटा चर्चा करके मंजूर किया। खड़गे साहब से बात हो गई थी। लीडर आफ द हाउस ने कहा था कि अगले दिन करेंगे, फिर भी जिस तरह बिल लाया गया, वह ठीक नहीं था। वेल में आना सांसदों का अधिकार है। भारतीय जनता पार्टी के लोग भी पहले आते थे, आज भी आते हैं। आपने मार्शल को बुलाया उस तरह जैसे हम पाकिस्तान की सीमा पर खड़े हैं। ऐसे बार्डर बना लिए थे, केवल फेंसिंग लगाना बाकी था। बंदूकें लाना बाकी था।

क्या आप हमको डराना चाहते हैं। आज हम है कल आप होंगे। आपने भी यह सब कुछ किया है। और सबसे ज्यादा महिला मार्शल को बुलाया। यह कौन सी नीति है कि पुरुष सांसदों के सामने आपने महिला मार्शलों को खड़े कर दिए हैं। आप क्या दिखाना चाहते हो, कौन सी मर्दानगी दिखाना चाहते हो?

देश के संसदीय इतिहास में यह ठीक नहीं है। संसदीय इतिहास में ऐसी स्थिति क्यों आई और सरकार क्या करना चाहती है, यह जानना चाहिए। जनता को सब कुछ जानने का अधिकार है। आप जनता को बताइए, ऐसा क्यों किया।

आप लोग नया संसद भवन दिल्ली में बना रहे हैं। उस संसद भवन की आत्मा ही खत्म हो गया। पार्लियामेंटरी डेमोक्रेसी की आत्मा ही खत्म कर दी। मैं भी लगभग 20 साल से दिल्ली में हूं। मैंने बड़े-बड़े नेताओं को देखा है। मैंने देखा कि वेंकैया नायडू जी के आंख में आंसू आ गए। वह बहुत बुजुर्ग नेता हैं, पार्लियामेंटरी डेमोक्रेसी को मानने वाले नेता हैं। किसी को अच्छा नहीं लगेगा कि कोई वेल में आए, लेकिन सदन की कार्यवाही ठीक ढंग से चलाने की जिम्मेदारी सरकार की होती है, लेकिन जिस तरह के नेताओं के हाथ में संसद का काम दिया है, उससे न तो कोई कोआर्डिनेशन होगा और न ही कोई भूमिका या विचार आगे जाएगा।