JNU के छात्र शरजील इमाम को राजद्रोह के मामले में 31 माह बाद बेल मिल गई। लेकिन अभी उसे जेल में ही रहना होगा, क्योंकि दिल्ली दंगे के मामले में उसकी जमानत याचिका अभी लंबित है। जामिया में सीएए प्रोटेस्ट के दौरान भड़काऊ भाषण देने के लिए शरजील के ऊपर ये केस दर्ज किया गया था।

खास बात है कि जिस मामले में उसे बेल दी गई है उसमें अधिकतम सजा का प्रावधान तीन साल का है। शरजील आधे से ज्यादा सजा पहले ही काट चुका है। उसे 30 हजार का पर्सनल बॉन्ड भी भरना होगा। इसके साथ ही उसे श्योरिटी के साथ कोर्ट की अन्य शर्तें भी पूरी करनी होंगी। उसके खिलाफ दिल्ली के न्यू फ्रेंड्स कालोनी थाने में राजद्रोह का मामला दर्ज किया गया था। आरोप था कि उसकेस भाषण से जामिया नगर में हिंसा फैली। 2019 के दौरान सीएए-एनआरसी को लेकर प्रदर्शन हुआ था।

हालांकि पुलिस ने उसके खिलाफ दर्ज मामले में आईपीसी के कई सेक्शन के तहत कार्रवाई की थी। लेकिन कोर्ट ने सुनवाई के दौरान उसे केवल 124ए (राजद्रोह) और 153 ए (हिंसा भड़काने) के मामले में ही आरोपी माना। शरजील को इन दोनों ही मामलों में जमानत दी गई है। एडिशनल सेशन जज अनु अग्रवाल ने कहा कि वो सजा की आधी से ज्यादा मियाद जेल में ही काट चुका है। खास बात है कि राजद्रोह के कानून को सुप्रीम कोर्ट खारिज कर चुका है। दिल्ली दंगे के मामले में उसकी याचिका हाईकोर्ट में लंबित है।

एडिशनल सेशन जज अनु अग्रवाल ने शरजील को जामिया मामले में डिफाल्ट बेल दी है, क्योंकि वो आधी से ज्यादा सजा सुनवाई के दौरान ही काट चुका है। शरजील की तरफ से एडवोकेट तालिब मुस्तफा ने सीआरपीसी की धारा 436ए के तहत याचिका दाखिल की थी। ये सेक्शन कहता है कि अगर आरोपी ने अपनी सजा का आधा हिस्सा काट लिया है तो उसे जमानत दे दी जाए। ये सेक्शन ऐसे मामलों में लागू नहीं होता जिसमें मौत की सजा दी जा सकती है। उसकी याचिका पहले अक्टूबर 2021 में खारिज हो गई थी।

शऱजील ने उस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। इसी दौरान सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह के कानून पर रोक लगा दी। 17 मई 2022 को टॉप कोर्ट ने फैसला दिया कि सरकारें राजद्रोह से जुड़े मामलों को स्थगित कर दें।