साल 2022 में होने वाले उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव को देखते हुए भाजपा पिछड़े और एससी वोटों को अपने पाले में करने के लिए लगातार सामाजिक प्रतिनिधि सम्मेलन जैसे कार्यक्रम आयोजित कर रही है। वहीं पिछले काफी समय से सत्ता से दूर मायावती की पार्टी बसपा भी ब्राह्मण समाज के लिए कार्यक्रम आयोजित कर रही है और एससी समुदाय के साथ भाईचारे की अपील कर रही है। इस मामले में अखिलेश यादव की पार्टी सपा भी किसी से कम नहीं है। सपा ने भी अपने विपक्षी दलों को टक्कर देने के लिए एक दलित संगठन बनाया है और इसकी कमान पूर्व बसपा नेता को दी गई है।
साल 1992 में समाजवादी पार्टी की स्थापना होने के बाद पहली बार अनुसूचित जातियों के लिए एक ख़ास संगठन बनाया गया है। इसका नाम समाजवादी बाबा साहब अम्बेडकर वाहिनी रखा गया है और इसकी कमान बसपा में करीब 29 सालों तक रहने वाले मिठाई लाल भारती को सौंपी गई है। करीब दो साल पहले बसपा छोड़कर सपा में शामिल होने वाले मिठाई लाल भारती बसपा के पूर्वांचल जोनल के कोआर्डिनेटर और बिहार एवं छत्तीसगढ़ के प्रभारी भी रहे हैं।
समाजवादी पार्टी की बाबा साहेब वाहिनी विंग के राष्ट्रीय अध्यक्ष मिठाई लाल भारती का कहना है कि हमें भीमराव अंबेडकर और राम मनोहर लोहिया की विचारधाराओं को साथ लेकर चलना होगा। हमें वंचित और उत्पीड़ित वर्गों को दोनों नेताओं की विचारधाराओं और समाज में उनके योगदान से अवगत कराना है। साथ ही वे कहते हैं कि 2022 के चुनावों के मद्देनजर हमारे पदाधिकारी दलितों और अन्य वंचित वर्गों तक पहुंचेंगे और उनसे समाजवादी पार्टी का समर्थन करने और भाजपा को सत्ता से हटाने की अपील करेंगे। भाजपा आरक्षण विरोधी और संविधान विरोधी है।
विंग के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष मिठाई लाल भारती ने पूर्वांचल विश्वविद्यालय से हिंदी में स्नातकोत्तर किया है। मिठाई लाल बसपा के संस्थापक कांशीराम को याद करते हुए कहते हैं कि उन्हें कांशीराम को भोजने परोसने का अवसर भी मिला था जब वे 1997-98 में बलिया आए थे। नए संगठन की जिम्मेदारियों को लेकर मिठाई लाल भारती ने कहा कि उनका पहला काम राष्ट्र से लेकर राज्य, जिला, सेक्टर और पोलिंग बूथ स्तर तक संगठनात्मक इकाइयां स्थापित करना है। साथ ही उन्होंने कहा कि मैंने पहले ही ‘संविधान बचाओ-लोकतंत्र बचाओ’ सम्मेलन आयोजित करना शुरू कर दिया है।
समाजवादी पार्टी को इस नए विंग से बहुत उम्मीदें हैं. पार्टी में अबतक ओबीसी, अनुसूचित जनजाति (एसटी), अल्पसंख्यकों, महिलाओं और अन्य वर्गों के लिए विंग थे लेकिन अनुसूचित जाति के लिए कोई ख़ास विंग नहीं था। नए दलित संगठन बनाए जाने को लेकर समाजवादी पार्टी की प्रवक्ता जूही सिंह ने कहा कि पहले अनुसूचित जातियों के लिए कोई अलग विंग नहीं थी। पार्टी के भीतर और कुछ छात्र नेताओं की मांग थी कि विशेष रूप से दलितों के बीच काम करने, उनकी चिंताओं के बारे में बोलने और उनके अधिकारों के लिए आवाज उठाने के लिए एक ऐसा विंग बनाया जाए। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इसके बारे में बहुत पहले घोषणा की थी लेकिन अब एक अलग वाहिनी का गठन किया गया है।
पहले सपा के पास राज्य के दलित मतदाताओं के लिए कोई समर्पित कार्यक्रम नहीं था। पार्टी की ताकत हमेशा से यादव समुदाय और मुसलमानों के समर्थन की वजह से ही रही है। लेकिन लगभग 23 प्रतिशत वोट शेयर के साथ अनुसूचित जाति भी प्रदेश की राजनीति में अपनी अहम भूमिका निभाती है। इसका असर 2012 के विधानसभा चुनावों में भी देखने को मिला था जब सपा ने 224 सीटों के साथ उत्तरप्रदेश विधानसभा में बहुमत हासिल की थी. उस दौरान सपा को करीब 58 सुरक्षित सीट हासिल हुई थी। वहीं बसपा को 15, कांग्रेस को चार, भाजपा और रालोद को तीन-तीन सीटें हासिल हुई थी। वहीं 2017 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को केवल पांच एससी-आरक्षित सीटें मिल सकीं थी, जबकि भाजपा ने प्रचंड जीत दर्ज करते हुए 67 आरक्षित सीटें हासिल की थी, इसके अलावा बसपा को तीन सीटें मिली थी।
सपा के अनुसूचित जनजाति प्रकोष्ठ के प्रमुख व्यास जी गौर ने नए संगठन को लेकर कहा कि उनकी विंग अब तक एसटी और एससी दोनों समुदायों के लिए काम कर रही थी। लेकिन राज्य में आदिवासी आबादी कम क्षेत्रों तक ही सीमित है। इसलिए पार्टी ने राज्य में एससी की बड़ी आबादी को देखते हुए उनके लिए एक अलग विंग बनाई है। राजनीतिक पर्यवेक्षकों के अनुसार नया संगठन सपा द्वारा बसपा के दलित वोटर के बीच पैठ बनाने का एक प्रयास प्रतीत होता है, यह देखते हुए कि कैसे दोनों दलों के बीच 2019 में हुए गठबंधन ने 1995 की कड़वी यादों को हवा दी।
बता दें कि 1992 में बाबरी विध्वंस के बाद मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व वाली सपा और बसपा ने विधानसभा चुनावों में भाजपा को सत्ता में लौटने से रोकने के लिए ओबीसी और दलित वोटों को एक साथ लाने के लिए गठबंधन किया था। हालांकि बाद में 1995 में हुए लखनऊ गेस्टहाउस कांड के बाद दोनों पार्टियां और उनके मूल मतदाता यादव और जाटव भी धुर विरोधी बन गए। लखनऊ गेस्ट हाउस कांड में सपा कार्यकर्ताओं ने बसपा नेता मायावती पर हमला करने की कोशिश की। बाद में 2019 में राज्य में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लहर को रोकने के लिए दोनों दलों ने फिर से हाथ मिलाया। लेकिन बाद में गठबंधन फेल होने के बाद दोनों दल फिर से अलग हो गए ।