लोकसभा चुनाव के बाद हरियाणा विधानसभा के चुनाव भी होंगे। सत्तारूढ़ भाजपा का मुख्य मुकाबला कांग्रेस से ही माना जा रहा है। पिछली बार देवीलाल परिवार के दोनों दलों ने भी 11 सीटें जीती थीं। दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी ने दस और अभय चौटाला की इनेलोद ने एक। भाजपा सूबे में पिछले दस साल से सत्ता में है। पहली बार 2014 में उसने 90 में से 47 सीटें जीतकर अपने बूते सरकार बनाई थी।
2019 में उसकी सीटें घटकर 40 रह गई तो उसे दुष्यंत चौटाला के साथ सरकार बना कर उन्हें उपमुख्यमंत्री का पद देना पड़ा। कांग्रेस को पिछली दफा 31 सीटें मिली थी और नेता प्रतिपक्ष का पद भूपिंदर सिंह हुड्डा को ही मिल गया था। अशोक तंवर तो पहले ही पार्टी छोड़ गए थे। अब हुड्डा, सुरजेवाला, किरण चौधरी और सैलजा चारों ही मुख्यमंत्री पद की दौड़ में हैं। भाजपा ने साफ नहीं किया है कि वह जजपा से गठबंधन करेगी या नहीं।
कांग्रेस अभी तक तो हुड्डा के प्रभुत्व से मुक्त नहीं हो पाई है। उधर किरण चौधरी का दर्द यह है कि हरियाणा में आज तक कोई महिला मुख्यमंत्री नहीं बन पाई। सैलजा भी महिला हैं और दलित भी। सो अवसर आया तो दावा वे भी करेंगी। मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के प्रयोगों को देख चुके मनोहर लाल खट्टर अब समझ चुके होंगे कि पार्टी की जीत के बाद भी उनकी दाल का गलना आसान नहीं होगा।
कार्यकर्ता रिझाने को…
उत्तर प्रदेश में हकीकत जानते हुए भी राजग के सहयोगी दल कार्यकर्ताओं को रिझाने के लिए सीटें मांग रहे हैं। अपना दल और निषाद पार्टी तो पहले से ही भाजपा के साथ थे। पिछले दिनों सुभासपा के ओमप्रकाश राजभर भी आ गए थे। अपना दल के अलावा बाकी दोनों दलों को भाजपा लोकसभा की एक भी सीट देने के मूड मेंं नहीं है। अपना दल ने चार सीटें मांगी हैं।
राजभर को भाजपा ने मंत्री पद देने का भरोसा दे रखा है। दारासिंह चौहान के एमएलसी बन जाने के बाद राजभर को भी उनके साथ ही जल्द मंत्री पद मिल जाएगा। निषाद पार्टी को भी सीट मिलने के आसार नहीं। पार्टी के मुखिया संजय निषाद योगी सरकार में मंत्री हैं। उनका बेटा प्रवीण निषाद भाजपा का लोकसभा सदस्य है, दूसरा बेटा श्रवण विधायक है। प्रवीण निषाद को भी भाजपा के उम्मीदवार की ही हैसियत से मिलेगा टिकट, निषाद पार्टी के उम्मीदवार के नाते तो नहीं।
कांग्रेस के चंदे में भी सेंध
पिछले दिनों कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव के मद्देनजर ‘डोनेशन फार देश’ अभियान शुरू किया था। इसका मकसद अधिक से अधिक लोगों को पार्टी से जोड़ना और इसके लिए चंदा जुटाना था। लेकिन आनलाइन तरीके से चोरों ने चंदे में सेंध लगा दी है। ऐसे ही एक चोर को राजस्थान से पकड़ने का दावा किया गया है।
इस मामले में कांग्रेस ने पिछली दस जनवरी को शिकायत दर्ज कराई थी। इस शिकायत में जानकारी दी गई थी कि कांग्रेस के फर्जी खाते बनाकर उसके नाम पर चंदा लिया जा रहा है। ये सभी जाली वेबसाइट एकदम कांग्रेस की वेबसाइट जैसी दिखती हैं। इस तरह से कांग्रेस के चंदे में सेंध लगाई जा रही है और आम जनता को भी नुकसान पहुंचाया जा रहा है।
मुखिया का इंतजार
उत्तर प्रदेश में सुगबुगाहट है कि सूबे का अगला पुलिस महानिदेशक कौन होगा? देश के सबसे बड़े सूबे में यों आइपीएस अफसरों की कमी नहीं है पर पुलिस को पिछले बीस महीने से नियमित महानिदेशक का इंतजार है। नियमित पुलिस महानिदेशक को कम से कम एक वर्ष का कार्यकाल जरूर मिलता है। राज्य सरकार संतुष्ट हो तो उसे सेवा विस्तार भी दे सकती है। राज्य के पिछले नियमित पुलिस महानिदेशक मुकुल गोयल थे।
लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उनसे नाराज हो गए थे और उन्हें कार्यकाल पूरा करने से पहले ही मई 2022 में पद से हटा दिया था। नियमित पुलिस महानिदेशक की नियुक्ति संघ लोकसेवा आयोग और केंद्रीय गृह मंत्रालय की मंजूरी से होती है। गोयल को हटाने पर केंद्र ने राज्य सरकार से जवाब तलब भी किया था। बहरहाल गोयल की जगह अब तक देवेंद्र सिंह चौहान, राजकुमार विश्वकर्मा और विजय कुमार कार्यवाहक पुलिस महानिदेशक बन चुके हैं।
विजय कुमार भी 31 जनवरी को रिटायर हो जाएंगे। योगी के चहेते अफसरों में इस समय प्रशांत कुमार को सबसे ऊपर माना जाता है। पर उन्हें भी नियमित पुलिस महानिदेशक नहीं बनाया जा सकता। वे 1990 बैच के ठहरे। अभी तो 1988 के आनंद कुमार और 1989 बैच के चार आइपीएस सेवारत हैं। प्रशांत कुमार के बैच में भी 11 आइपीएस उनसे ज्यादा वरिष्ठता के ठहरे। यानी फिर कार्यवाहक पुलिस महानिदेशक ही होंगे सूबे की पुलिस के मुखिया।
बेचैन सहयोगी
बिहार में नीतीश कुमार पर अटकलों के बीच राजग में भाजपा के सहयोगी दलों की बेचैनी बढ़ गई है। इन सहयोगी दलों में उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक जनता दल, जीतनराम मांझी की हिंदुस्तान अवाम मोर्चा और पासवान की दो लोजपा हैं। पिछले चुनाव के वक्त लोजपा का विभाजन नहीं हुआ था। पार्टी को भाजपा ने छह सीटें दी थी और उसने सभी सीटें जीत ली थी।
लेकिन, पासवान की मौत के बाद उनके भाई और बेटे में बंट गई पार्टी। चिराग पासवान ने 2020 का विधानसभा चुनाव राजग के खिलाफ लड़ा। खुद तो हारे पर नीतीश कुमार को भाजपा की तुलना में बौना बना दिया। लोजपा का बंटवारा हुआ तो पशुपति कुमार पारस के साथ पांच और चिराग अपनी पार्टी के अकेले रह गए। दोनों ही राजग के साथ हैं। सीटों के बंटवारे में दोनों को संतुष्ट करना भाजपा के लिए आसान नहीं होगा।
ऊपर से हाजीपुर सीट को लेकर चाचा-भतीजा दोनों अड़ियल रुख अपनाए हैं। चिराग पासवान को राजग में नीतीश का आना भी खटकेगा। असहज तो कुशवाहा और मांझी भी कम महसूस नहीं करेंगे। अभी तो उन्हें ज्यादा सीटों की उम्मीद है। पर नीतीश आए तो दोनों को एक-एक सीट पर करना पड़ सकता है संतोष।
संकलन : मृणाल वल्लरी