देश के कई राज्यों में सत्ता की अंदरूनी तकरार अब खुलकर सामने आ रही है। यूपी में भाजपा कार्यकर्ता और मंत्री तक नाराज हैं, महाराष्ट्र में शिंदे-फडणवीस की खींचतान जारी है। बंगाल में ममता बनर्जी भाजपा को घेरने को तैयार हैं। वहीं, धामी सरकार संघ का नया मॉडल बनती दिख रही है। संसद में भी मानसूनी हंगामा थम नहीं रहा।

कोई खुश नहीं

उत्तर प्रदेश भाजपा में सब कुछ सहज नहीं है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को अपनी कानून व्यवस्था पर चाहे जितना गुमान हो पर आम भाजपाई नौकरशाही की मनमानी और भ्रष्टचार से त्रस्त है। आलाकमान ने जातीय समीकरण बिठाने का ध्यान रखते हुए राजपूत मुख्यमंत्री के साथ एक उपमुख्यमंत्री ब्राह्मण और दूसरा उप मुख्यमंत्री पिछड़े तबके का बना रखा है। फिर भी न पिछड़े ज्यादा खुश हैं और न ब्राह्मण। वजह है नौकरशाही के अहम पदों पर मुख्यमंत्री की जाति के अफसरों का वर्चस्व। जो आम भाजपा कार्यकर्ता की तो दूर पार्टी के पदाधिकारियों, विधायकों और सांसदों तक की परवाह नहीं करते। इस चक्कर में आए दिन टकराव की घटनाएं सामने आती हैं।

उप मुख्यमंत्री केशव मौर्य मुख्यमंत्री की कार्यशैली से कभी खुश नहीं दिखे। गुरुवार को तो योगी सरकार की मंत्री प्रतिभा शुक्ल कानपुर में पुलिस थाने के बाहर धरने पर बैठ गई। थानेदार पर अपने समर्थकों के खिलाफ अनुसूचित जाति अत्याचार निवारण कानून के खिलाफ झूठा मुकदमा दर्ज करने का आरोप लगा दिया। पुलिस कप्तान और जिला कलक्टर ने मिन्नत की तब वे छह घंटे बाद धरने से उठी। उनके पति अनिल शुक्ल सांसद रहे हैं। उन्होंने सबके सामने फोन पर बृजेश पाठक को कहा कि सूबे में ब्राह्मणों को अपमानित किया जा रहा। जब सरकार के मंत्री भी धरना देने लगें, उसकी अंदरूनी हालत पर विपक्ष तंज क्यों न कसे।

महा उलटफेर

महाराष्ट्र की सियासत में नित नए बदलाव नजर आ रहे हैं। एकनाथ शिंदे की मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से काफी अरसे से पट नहीं रही है। उद्धव ठाकरे के साथ मेल-मुलाकात बढ़ाकर फडणवीस शिंदे को परोक्ष रूप से संदेश दे रहे हैं कि सरकार के लिए उनका समर्थन मजबूरी नहीं है। शिंदे और उद्धव एक दूसरे को फूटी आंख देखना भी पसंद नहीं करते।

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उद्धव के सामने भी पार्टी को बचाने और खुद को असली शिवसेना साबित करने की चुनौती है। उद्धव ने सत्ता के लिए राकांपा और कांग्रेस से हाथ मिलाकर महा विकास अघाड़ी बनाया था। लेकिन भाजपा ने उनकी और शरद पवार की पार्टी को तोड़ दिया। मजबूरी में चचेरे भाई राज ठाकरे से हाथ मिलाना पड़ा तो दूसरी तरफ कांगे्रस से पीछा छुड़ाने के मौके की तलाश में दिखते हैं। दुविधा तो उन्होंने कांगे्रस की बढ़ा दी है। मराठी के मुद्दे पर तो पार्टी असहज महसूस कर ही रही है।

सत्र में ‘मानसून’ की चर्चा

संसद का हंगामेदार सत्र लगातार जारी है। सत्र में अभी तक बिहार की नई मतदाता सूची, उपराष्ट्रपति का इस्तीफा और पहलगाम हमला सदन के अंदर व बाहर के सबसे बड़े मुद्दे हैं। इस वजह से सदन का कामकाज भी बाधित हो रहा है। लेकिन संसद के गलियारों में मानसूनी बारिश इन सबमें सबसे बड़ा मुद्दा है। इस वजह से गलियारों में सक्रिय रहने वाले अधिकारी व बाबुओं को आज भी केवल पुराना संसद भवन ही याद आता है। सक्रिय अधिकारी बताते हैं कि पुरानी ड्यूटी और नई ड्यूटी में केवल इतना सा फर्क है कि पहले संसद परिसर में पानी नीचे की ओर से भरता था और इस बार पानी छतों से आ रहा है। इसके लिए लगातार गलियारों में इंतजाम किए जा रहे हैं।

दीदी का नया दांव

पश्चिम बंगाल में भाजपा ने ममता बनर्जी की घेरेबंदी के लिए अपनी रणनीति में बदलाव किया है। लोकसभा चुनाव में इस सूबे में भाजपा को अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाई थी। अब पार्टी का जोर अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांगे्रस से सत्ता छीनना है। लेकिन ममता बनर्जी भी कम खिलाड़ी नहीं हैं। उन्हें पता है कि वार का पलटवार कैसे किया जाता है। वे बखूबी जानती हैं कि भाजपा चुनाव को सांप्रदायिक रंग जरूर देगी। लिहाजा काट के लिए उन्होंने बांग्ला अस्मिता का मुद्दा उभार दिया है। पिछले विधानसभा चुनाव में चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने ममता को ‘खेला होबे’ का नारा दिया था। भाजपा के जय श्रीराम के नारे के जवाब में ममता ने ‘जय मां काली’ का नारा लगवाया था। बंगाल की अपनी सांस्कृतिक अवधारणा है जिसमें भाजपा के नारे का दांव नहीं चल सका था।

इस बार 21 जुलाई को शहीद दिवस के कार्यक्रम में ममता ने चुनावी एजंडा तय कर दिया। भाजपा शासित राज्यों में बांग्ला भाषियों पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ देश भर में आंदोलन की चेतावनी दी है। भाजपा पर भाषाई आतंकवाद फैलाने का आरोप लगाया है। दूसरा दांव दुर्गा आंगन का चला है। कहा है कि जैसे दीघा में जगन्नाथ धाम का निर्माण कराया वैसे ही दुर्गा आंगन का निर्माण कराया जाएगा। जहां लोग वर्ष भर मां दुर्गा के दर्शन और पूजन कर सकेंगे। मां, माटी और मानुष का नारा लगा चुकीं ममता विपक्ष के लिए कोई जगह खाली नहीं छोड़ना चाहती हैं।

धामी की धमक

पुष्कर सिंह धामी अपनी पार्टी ही नहीं आरएसएस के भी नए नायक के रूप में उभर रहे हैं। समान नागरिक संहिता लागू करने वाला उत्तराखंड देश का पहला राज्य है। यह संघ और भाजपा का पुराना एजंडा रहा है। धामी पार्टी के मुख्य मंत्रियों में अपेक्षाकृत युवा हैं। धामी सरकार के माडल पर ही भाजपा देश के दूसरे राज्यों में भी समान नागरिक संहिता लागू करने की सोच रही है। उनकी सरकार के कामकाज की पिछले दिनों गृह मंत्री अमित शाह ने भी तारीफ की। बोले कि धामी सरकार ने निवेशक सम्मेलन में मिले निवेश प्रस्तावों को जमीन पर उतारा है।

कुल 3.56 लाख करोड़ के प्रस्तावों में से एक लाख करोड़ का निवेश तो आ चुका है। हजारों नई नौकरियों के अवसर बने हैं। धामी सरकार वैचारिक मुद्दों पर भी आरएसएस के एजंडे पर चलते हुए चुपचाप मुसलिम नाम वाले गांवों-कस्बों को खोजकर उनके नाम बदल रही है। याद कीजिए धामी 2022 में मुख्यमंत्री रहते हुए विधान सभा चुनाव हार गए थे। तो भी पार्टी आलाकमान ने उन्हें ही मुख्यमंत्री बनाए रखा था। दूसरी सीट से उपचुनाव लड़ाया था। जाहिर है कि उनकी कार्यशैली से पार्टी ही नहीं आरएसएस भी खुश है।

(संकलन: मृणाल वल्लरी)