बिहार में 16 दिनों तक चली और 1,300 किलोमीटर की दूरी तय करने वाली कांग्रेस नेता राहुल गांधी की “मतदाता अधिकार यात्रा” 1 सितंबर को पटना में खत्म हो गई। इस दौरान राहुल ने केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ जोरदार नारा – “वोट चोर, गद्दी छोड़” –दिया। इसे उनकी सभाओं और रैलियों में भीड़ ने उत्साह के साथ दोहराया। बिहार की राजनीति में इस यात्रा का असर साफ दिख रहा है। आइए समझते हैं इसके पांच बड़े पहलू।
1- कांग्रेस को बढ़त
बिहार में कांग्रेस लंबे समय से कमजोर मानी जाती रही है। 2020 के विधानसभा चुनावों में उसे 70 सीटों पर लड़कर केवल 19 ही सीटें मिलीं। इस बार राहुल की यात्रा में उमड़ी भीड़ ने कांग्रेस को नई ऊर्जा दी है। खासकर मुस्लिम बहुल इलाकों में कांग्रेस की पकड़ मजबूत हुई है। इस यात्रा के बाद महागठबंधन में कांग्रेस की “कमजोर कड़ी” वाली छवि कुछ हद तक टूटती दिख रही है।
2- तेजस्वी का उभार
पूरी यात्रा में राहुल के साथ रहे राजद नेता तेजस्वी यादव लगातार सुर्खियों में रहे। उन्होंने खुद को महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाने का संदेश दिया। जनता से पूछकर उन्होंने नीतीश कुमार पर “नकली योजनाओं” की नकल करने का आरोप लगाया और खुद को “असली विकल्प” बताया। यात्रा के दौरान समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव जैसे नेता भी तेजस्वी के समर्थन में खड़े दिखे।
3- इंडिया ब्लॉक में एकजुटता
इस यात्रा की खासियत यह रही कि इसमें अलग-अलग राज्यों के विपक्षी दलों के नेता भी शामिल हुए। डीएमके प्रमुख स्टालिन से लेकर झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और शिवसेना के संजय राउत तक कई नेता इसमें नजर आए। इससे संदेश गया कि इंडिया गठबंधन चुनावों से पहले एकजुट है और राहुल गांधी इसकी धुरी बनते जा रहे हैं।
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4- पप्पू यादव का असर
बिहार के सीमांचल क्षेत्र में प्रभाव रखने वाले सांसद पप्पू यादव यात्रा के दौरान राहुल और तेजस्वी से खुले दिल से मिले। उन्होंने राहुल की मौजूदगी में तेजस्वी को “जननायक” कहा। यह संकेत है कि सीमांचल की सीटों पर कांग्रेस और राजद में नए समीकरण बन सकते हैं। इसका बिहार की राजनीति पर असर पड़ सकता है।
5- एनडीए पर दबाव
भले ही एनडीए नेताओं ने यात्रा को हल्के में लिया हो, लेकिन अंदरखाने यह माना जा रहा है कि इसने विपक्ष को मजबूती दी है। बीजेपी और जेडीयू नेताओं ने इसे महज “ड्रामा” बताया, मगर साफ है कि राहुल और तेजस्वी की इस साझेदारी ने बिहार की राजनीति में एनडीए के लिए चुनौती खड़ी कर दी है।
कुल मिलाकर, राहुल की यह यात्रा कांग्रेस को नई पहचान देने, तेजस्वी को राज्य में विपक्ष का चेहरा बनाने और इंडिया गठबंधन की एकता दिखाने का मंच साबित हुई है। दूसरी तरफ, एनडीए को भी अब अपनी रणनीति और मजबूत करनी पड़ सकती है।