केसी त्यागी ने जनता दल (एकी) के राष्ट्रीय प्रवक्ता पद से इस्तीफा दिया, लेकिन यह साफ नहीं है कि यह उनका खुद का निर्णय था या नीतीश कुमार के दबाव में। नीतीश और त्यागी के बीच पुराने संबंध और त्यागी के इस्तीफे के पीछे की राजनीति इस मुद्दे को गरम बना रही है। दूसरी ओर, असद्दुदीन ओवैसी और हिमाचल प्रदेश के मंत्रियों के बीच मस्जिद विवाद को लेकर तीखी बहस चल रही है। दिल्ली में हरियाणा और जम्मू-कश्मीर चुनावों के कारण राजनीतिक तापमान में कमी आई है, जबकि भाजपा के हरियाणा में उम्मीदवारों की सूची जारी होने के बाद इस्तीफों की झड़ी लग गई है। उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की राज्य महिला आयोग की नियुक्तियों के खिलाफ अपर्णा यादव की नाराजगी और उनकी संभावित वापसी की चर्चा भी है।

सियासी ‘त्याग’

केसी त्यागी ने जनता दल (एकी) के राष्ट्रीय प्रवक्ता के पद से इस्तीफा खुद दिया या नीतीश कुमार ने उन्हें इसके लिए मजबूर किया, यह यक्ष प्रश्न राजधानी के सियासी गलियारों में इस हफ्ते सबसे गरम मुद्दा था। त्यागी और नीतीश कुमार के रिश्ते पांच दशक पुराने हैं। नीतीश ने इस विवाद पर अभी तक अपनी चुप्पी नहीं तोड़़ी है। त्यागी सफाई दे रहे हैं कि उन्होंने तो पार्टी के सभी पदों से इस्तीफे की पेशकश की थी। नीतीश राजी नहीं हुए तो उन्होंने अपनी बढ़ती उम्र का वास्ता देकर राष्ट्रीय प्रवक्ता के पद से इस्तीफा दे दिया। सवाल यह पुख्ता है कि अगर नीतीश उनके इस्तीफे के पक्ष में न होते तो इस्तीफा नामंजूर कर सकते थे। त्यागी को हटाने के पीछे दिखावटी वजह भले भाजपा की नाराजगी और दबाव माना जा रहा हो, पर जानकार इसे भी नीतीश कुमार की सियासी चाल बता रहे हैं। भाजपा के साथ गठबंधन सरकार चलाने के कारण नीतीश के सुर कई मुद्दों पर धीमे पड़े हैं। मसलन जातीय जनगणना, इजरायल को हथियारों की आपूर्ति, सरकारी सेवाओं में बड़े पदों पर पिछले दरवाजे से नियुक्तियां करने की नीति आदि। प्रवक्ता पद से इस्तीफे के बाद त्यागी के बयान को नीतीश अब उनकी निजी राय बताकर बच निकलेंगे पर साथ ही भाजपा को असहज भी कर सकेंगे। यह नहीं भूलना चाहिए कि जब शरद यादव से नीतीश का विवाद बढ़ा तो त्यागी ने यादव को छोड़ नीतीश का साथ दिया था।

‘मोहब्बत’ का मुद्दा

असद्दुदीन ओवैसी ने हिमाचल में कांग्रेस सरकार को घेरने की कोशिश की थी। पर राज्य के दो मंत्रियों ने ऐसा पलटवार किया कि बड़े मियां सिर पर पांव रख भागते नजर आए। दरअसल संजौली इलाके में बनी एक अवैध मस्जिद को लेकर सूबे में विवाद चल रहा है। सूबे के मंत्री अनिरुद्ध सिंह ने बयान दिया था कि यह मस्जिद अवैध है। मामला अदालत में होने के कारण कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसी पर ओवैसी ने बयान दिया था कि अनिरुद्ध सिंह भाजपा की भाषा बोल रहे हैं। मोहब्बत की दुकान में नफरत बढ़ा रहे हैं। पलटवार करते हुए अनिरुद्ध सिंह ही नहीं दूसरे मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने भी कहा कि ओवैसी भाजपा की ‘बी’ टीम हैं, यह जग जाहिर है। हिमाचल में सभी के लिए मोहब्बत है। नफरत के लिए कोई जगह नहीं। मुद्दा वैध और अवैध का है, मंदिर-मस्जिद का नहीं। अच्छा होगा कि ओवैसी हिमाचल के बजाए अपने सूबे तेलंगाना पर ध्यान दें।

दिल्ली में थमी चुनावी गर्मी

हरियाणा और जम्मू कश्मीर चुनाव की सरगर्मी ने दिल्ली में राजनीतिक तापमान थोड़ा कम कर दिया है। दोनों सूबों में राजनीतिक सक्रियता के साथ समीकरण भी बदल रहे हैं। इस बीच एक बार फिर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के गठबंधन की सक्रियता ने नए तरह के सियासी सवाल पैदा कर दिए हैं। जहां एक तरफ कांग्रेस के नेताओं ने विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार अभियान को धीमा कर दिया है, वहीं दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी के नेता इस बाबत शीर्ष नेतृत्व के फैसले का इंतजार कर रहे हैं। माना जा रहा है कि हरियाणा गठबंधन की आंच सीधे दिल्ली तक होगी, इसलिए पार्टी जल्दी फैसला करे। इसके बाद ही दिल्ली का चुनावी अभियान फिर से तेजी पकड़ सकेगा।

इस्तीफे ही इस्तीफे

भाजपा ने हरियाणा में तीसरी बार सरकार बनाने की उम्मीद के साथ अपने 67 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी की तो अगले ही दिन इस्तीफों की झड़ी लग गई। कुरुक्षेत्र के लोकसभा सदस्य नवीन जिंदल की मां सावित्री जिंदल तक बगावत पर उतारू हो गई। बागियों में मंत्री, विधायक और पूर्व विधायक सभी हैं। भाजपा ने साफ कर दिया है कि उसकी पहली कसौटी जीत की संभावना है। हर सीट के दावेदारों के बारे में लोगों की राय जानकर ही फैसला लिया गया। बहरहाल, दल बदलुओं की तो पौ बारह हुई ही, वंशानुगत राजनीति पर भाजपा का दोहरा रवैया भी सामने आ गया। वंशवाद का विरोध करने वाली पार्टी ने सीट जीतने के मोह में तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों की तीसरी पीढ़ी को टिकट थमा दिए। इनमें श्रुति चौधरी बंसीलाल की और आरती सिंह राव वीरेंद्र सिंह की पौत्री हैं। भजनलाल के पौत्र भव्य विश्नोई तीसरे हैं। कांगे्रस से आए विनोद शर्मा की पत्नी शक्ति शर्मा को टिकट देने में भी भाजपा ने परहेज नहीं किया। लेकिन, लंबे समय से जोड़-तोड़ की सियासत कर रहे रंजीत सिंह को भाजपा ने इस बार गच्चा दे दिया। देवीलाल के पुत्र रंजीत सिंह निर्दलीय विधायक होने के बावजूद खट्टर सरकार में मंत्री बन गए थे। लोकसभा में भाजपा ने उन्हें हिसार से उम्मीदवार बनाया था। पर हार गए। अब भाजपा ने विधानसभा टिकट नहीं दिया तो फिर निर्दलीय ताल ठोकने के लिए भाजपा से इस्तीफा देने में देर नहीं लगाई।

उम्मीदों के उलट ‘उपाध्यक्ष’

योगी आदित्यनाथ ने लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद अपनी कार्यशैली बदली है। उन्होंने सूबे में राज्य महिला आयोग का गठन भी कर दिया है। एक अध्यक्ष, दो उपाध्यक्ष और 25 सदस्यों के साथ। इस आयोग में 25 सदस्य इससे पहले कभी नहीं रहे। लेकिन आयोग के गठन के बाद पार्टी की नेता अपर्णा यादव खासी नाखुश हैं। वे मुलायम सिंह यादव के दत्तक पुत्र प्रतीक यादव की पत्नी हैं। उत्तराखंड के बिष्ट राजपूत परिवार से नाता होने के कारण मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सजातीय हैं। यानि बिष्ट परिवार की बेटी और यादव परिवार की बहू। वे 2022 में सपा छोड़कर भाजपा में विधानसभा टिकट की आस में आई थी। जो नहीं मिला। फिर चर्चा लोकसभा चुनाव की चली। उसमें भी निराशा हाथ लगी। एमएलसी भी नहीं बन पाई। अब उम्मीद थी कि योगी सरकार उन्हें राज्य महिला आयोग का अध्यक्ष बनाएगी। पर अध्यक्ष बना दिया आगरा की बबीता चौहान को। अपर्णा को दो में से एक उपाध्यक्ष बनाया जाना इतना अखरा कि पद संभालने से ही इनकार कर दिया। चर्चा है कि अपर्णा फिर सपा की शरण में जाने की जुगत भिड़ा रही हैं।

संकलन: मृणाल वल्लरी