Maharashtra Politics: दिल्ली विधानसभा चुनाव (Delhi Vidhan Sabha Chunav 2025) को लेकर इंडिया गठबंधन (India Alliance) में टूट की खबरें हैं। एक तरफ आम आदमी पार्टी को कांग्रेस (AAP vs Congress) के खिलाफ विपक्षी गठबंधन की सभी पार्टियों का समर्थन मिला है। क्षेत्रीय दलों के विरोध के चलते इंडिया गठबंधन मुश्किलों का सामना कर रहा है लेकिन कुछ ऐसी ही स्थिति अब महाराष्ट्र में भी है। MVA के कई घटक दल खुलकर देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) की तारीफ कर रहे हैं, जिससे सवाल उठ रहे हैं कि क्या MVA गठबंधन (MVA Alliance) में भी दरार पड़ चुकी है?

दरअसल, शिवसेना यूबीटी के नेता संजय राउत (Sanjay Raut) ने ऐलान किया है कि शिवसेना यूबीटी अकेले BMC चुनाव लड़ेगी। यह पहली बार है कि जब उद्धव गुट, कांग्रेस और एनसीपी (शरद पवार) के साथ मिलकर चुनाव नहीं लड़ेगी। 2019 में उद्धव ठाकरे और शरद पवार के साथ मिलकर कांग्रेस ने महाराष्ट्र में महाविकास अघाडी का निर्माण किया था।

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BMC चुनाव में होना है महायुति से कड़ा मुकाबला

महाविकास अघाड़ी गठबंधन में शिवसेना यूबीटी सबसे बड़ी पार्टी है, जिसका मुकाबला बीएमसी चुनाव में बीजेपी, एकनाथ शिंदे की सेना और अजित पवार की एनसीपी से होगा। अब सवाल यह है कि आखिर क्या कारण हैं कि उद्धव गुट अकेले चुनावी राह में उतरने को तैयार हो गया है।

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एनसीपी को लेकर संशय

महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) को विपक्षी गठबंधन में लाने वाले शरद पवार हैं, जिन्होंने कांग्रेस की शिवसेना से सुलह कराई थी। 2024 विधानसभा चुनाव में हार के बाद शरद पवार को लेकर तस्वीर साफ नहीं है। महाराष्ट्र के सियासी गलियारों में चर्चा ये भी है कि एनसीपी का विलय हो सकता है जिसके चलते शिवसेना यूबीटी में संशय में है, जिसके चलते उद्धव एक अलग राह पर निकल पड़े हैं।

हिंदुत्व को धार देने की कोशिश

शिवसेना (यूबीटी) के अलग होने की एक और बड़ी वजह मराठी मानुष और हिंदुत्व का मुद्दा है। शिवसेना का मुंबई और कोकण इलाकों में इसी वजह से मजबूत जनाधार रहा है लेकिन महाविकास अघाडी में रहने की वजह से उद्धव खुलकर हिंदुत्व के मुद्दे पर नहीं खेल पा रहे थे जिसके चलते शिवसेना यूबीटी को महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव (Maharashtra Vidhan Sabha Chunav 2025) में बड़ा झटका लगा था। ऐसे में अब उद्धव वापस हिंदुत्व की पिच पर बैटिंग करना चाहते हैं।

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BMC शिवसेना का सबसे अहम किला माना जाता है, जिस पर 1995 से शिवसेना का कब्जा है। शिवसेना में टूट के बाद भी मुंबई में उद्धव ठाकरे का मजबूत जनाधार अभी भी शेष है। पिछली बार उद्धव की पार्टी को 84 सीटों पर जीत मिली थी। बीएमसी में पार्षदों की 236 सीटें हैं, जहां महापौर बनाने के लिए 119 सीटों पर जीत जरूरी है।

उद्धव मुंबई की सभी सीटों पर जीतकर स्थानीय स्तर पर संगठन को मजबूत करने की कवायद में जुटे हैं, क्योंकि गठबंधन होने पर उन्हें सीट शेयरिंग करनी पड़ सकती है, जिसके चलते उन्होंने बीएमसी में अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया है, जिससे राज्य की राजनीति में हाशिए पर जा चुकी शिवसेना यूबीटी को एक बार फिर नए सिरे से खड़ा किया जा सके। महाराष्ट्र से जुड़ी सभी खबरों के लिए इस लिंक पर क्लिक करें।