पूर्व सांसद और तृणमूल कांग्रेस नेता महुआ मोइत्रा को अगले 30 दिनों में सरकारी आवास खाली करने का नोटिस भेजा गया है। लोकसभा से निष्कासित किए जाने के बाद महुआ मोइत्रा ने सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका की है। उन्होंने अपनी याचिका में लोकसभा से अपने निलंबन को चुनौती दी है।
लोकसभा सचिवालय ने शुक्रवार को एक अधिसूचना जारी कर ‘कैश-फॉर-क्वेरी’ आरोपों पर तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा को निचले सदन से निष्कासित करने की घोषणा की। यह अधिसूचना महुआ मोइत्रा को लोकसभा से निष्कासित किए जाने के कुछ घंटों बाद आई। लोकसभा की एथिक्स कमेटी ने अपनी एक रिपोर्ट में महुआ मोइत्रा को अपने हित को आगे बढ़ाने के लिए एक व्यवसायी से गिफ्ट स्वीकार करने का दोषी ठहराया गया था।
सोमवार को महुआ मोइत्रा लोकसभा से अपने निष्कासन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गईं। विनोद कुमार सोनकर की अध्यक्षता वाली समिति ने 9 नवंबर को एक बैठक में ‘कैश-फॉर-क्वेरी’ के आरोप पर महुआ मोइत्रा की लोकसभा सदस्यता रद्द करने की सिफारिश करते हुए अपनी रिपोर्ट तैयार की थी।
क्या है आरोप?
महुआ मोइत्रा पर संसद में पैसे लेकर सवाल पूछने के आरोप लगे थे। इस पूरे मामले की शुरुआत भाजपा सांसद निशिकांत दुबे के आरोपों से हुई। निशिकांत दुबे ने ये आरोप महुआ के पूर्व दोस्त जय अनंत देहाद्रई की शिकायत के आधार पर लगाए। निशिकांत दुबे ने पत्र लिखकर लोकसभा अध्यक्ष से जांच की मांग की थी।
जांच में सामने आया है कि महुआ मोइत्रा की संसद की आधिकारिक आईडी का लॉगइन और पासवर्ड बिजनेसमैन दर्शन हीरानंदानी को दे दिया गया था। कमेटी ने इस मामले को राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा पाया। कमेटी ने अपनी जांच में महुआ मोइत्रा को दोषी पाया और लोकसभा अध्यक्ष से मोइत्रा की सदस्यता रद्द करने की मांग की।
महुआ मोइत्रा ने अपने खिलाफ कार्रवाई को गैरकानूनी बताया था। महुआ ने निलंबित होने के बाद कहा था कि उनके पास लड़ने के लिए 30 साल और हैं। वह बीजेपी से अंदर, बाहर और यहां तक गटर में भी लड़ेंगी। महुआ मोइत्रा ने अपने निष्कासन की तुलना ‘कंगारू अदालत’ के सजा दिए जाने से की थी। महुआ ने आरोप लगाया था कि सरकार लोकसभा की आचार समिति को विपक्ष को झुकाने के लिए मजबूर करने का हथियार बना रही है।