महाराष्ट्र विकास अघाड़ी के घटक दलों में जैसी एकता सतह पर नजर आती है, वैसी वास्तव में है नहीं। कांग्रेस, शिवसेना (उद्धव) और एनसीपी के बीच अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए सीटों का बंटवारा हंसी-खेल नहीं लगता। पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और एनसीपी का गठबंधन था। अगले चुनाव में अगर तीनों मिलकर लड़ेंगे तो हरेक को कुछ त्याग करना ही पड़ेगा। महाराष्ट्र में लोकसभा की 48 सीटें हैं। उत्तर प्रदेश के बाद सीटों की संख्या के हिसाब से यही देश का सबसे बड़ा प्रदेश ठहरा।
पिछले चुनाव में सफलता के अनुपात के मामले में शरद पवार की एनसीपी कांग्रेस से आगे निकल गई थी। एनसीपी के जहां चार उम्मीदवार विजयी हुए थे वहीं कांग्रेस का बस खाता ही खुल पाया था। उसी साल हुए विधानसभा चुनाव मेंं भी एनसीपी ने जहां 54 सीटें जीती थी वहीं कांग्रेस को महज 44 सीटों पर संतोष करना पड़ा था। लोकसभा चुनाव तो खैर अगले साल होंगे पर दबाव की राजनीति तो इन दलों के बीच उपचुनाव को लेकर ही शुरू हो चुकी है। लोकसभा की दो सीटों के उपचुनाव की यहां घोषणा कभी भी हो सकती है।
दो सीटों पर होने हैं उपचुनाव, उस पर भी है रार
पुणे सीट जहां भाजपा के गिरीश बापट के निधन से खाली हुई है वहीं चंद्रपुर सीट कांग्रेस के बालू धानोरकर के निधन के कारण खाली हुई है। पुणे समझौते के तहत पिछले दोनों चुनावों में कांग्रेस के हिस्से आई थी। पर जीत यहां दोनों बार भाजपा की हुई थी। इसी आधार पर एनसीपी विधायक दल के नेता अजित पवार ने नई धुन छेड़ी है। उनका कहना है कि गठबंधन में शामिल तीनों दलों को अपनी जमीनी ताकत का आकलन अभी से करके सीटों का बंटवारा कर लेना चाहिए। इससे चुनावी तैयारी के लिए ज्यादा वक्त मिल सकेगा। पुणे सीट के उपचुनाव के बारे में भी उन्होंने परोक्ष रूप से यही कहना चाहा है कि यहां कांग्रेस के मुकाबले एनसीपी ज्यादा मजबूत है।
कांग्रेस तो दोनों बार भाजपा से तीन लाख से ज्यादा मतों के अंतर से हारी है। ऐसे में आधिपत्य जताने के बजाए सीट जीतना प्राथमिकता होनी चाहिए। वैसे भी पुणे सीट का उपचुनाव अगले साल होने वाले आम चुनाव की झांकी होगा। लिहाजा सीट जीतना जरूरी है। पवार यह कहना भी नहीं भूले कि वीएन गाडगिल के बाद से पुणे में कांग्रेस लगातार कमजोर हुई है। एनसीपी की स्थिति उससे लाख गुना बेहतर है। नगर निगम में भी जहां कांग्रेस के महज दस पार्षद हैं वहीं एनसीपी के 40 हैं। खींचतान दूसरी सीटों पर भी जरूर होगी।
मसलन मावल सीट पर पिछली बार जीते शिवसेना के श्रीरंग बारणे अब एकनाथ शिंदे के साथ हैं। लेकिन उद्धव ठाकरे इसे अपनी सीट मानकर चल रहे हैं। अजित पवार के बेटे को देखना पड़ा था इस सीट पर पिछली दफा हार का मुंह। अजित पवार यहां एनसीपी की दावेदारी करें तो उसमें अचरज कैसा? अब देखना है कि यहां घटक दल कितना अटकते हैं।
गति पर भ्रांति
दिल्ली-चंडीगढ़ की राह पर राजमार्ग संख्या-एक का काम पूरा हो चुका है। अब यहां प्रति घंटे सौ किलोमीटर की रफ्तार से गाड़ी चलाने की इजाजत मिल चुकी है। लेकिन, पानीपत से लेकर दिल्ली तक की राह में गति निर्देशक कहीं कहीं अस्सी किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार का निर्देश देते हुए दिख जाते हैं। ऐसी हालत में वाहन चालक असमंजस में आ जाते हैं, जब सौ किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से आगे बढ़ते हुए उन्हें दिख जाता है कि यहां तो अस्सी का ही बोर्ड लगा है। ऐसे में फिर उन्हें अपनी गति धीमी करनी पड़ती है तो आगे फिर सौ किलोमीटर प्रति घंटे का संदेश भी मिल जाता है। राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण को इस मामले में संज्ञान लेना चाहिए और पूरे मार्ग पर गति-सीमा को लेकर जो असमंजस भरे बोर्ड हैं उसे हटा कर एक ही गति सीमा के बोर्ड लगाने चाहिए। खास कर राजमार्गों पर तो इस तरह की सावधानी बरतनी चाहिए कि अगर गति सीमा में परिवर्तन हो तो पूरी दूरी पर उस परिवर्तन का एक समान संदेश होना चाहिए। रफ्तार में चल रहे लोग ऐसे असमंजस से हादसे के शिकार हो सकते हैं।
राष्ट्रीय पहचान की ओर योगी
चंडीगढ़ की सड़क पर एक पोस्टर इन दिनों सबका ध्यान खींच रहा है। पोस्टर है उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से, जिसमें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के जरिए सूबे में हुए निवेशकों के सम्मेलन के बारे में बताया गया है। पोस्टर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर के साथ योगी रिकार्ड निवेश के साथ ‘नये भारत’ और ‘नया उत्तर प्रदेश’ का दावा कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले दिल्ली की सड़कों पर योगी आदित्यनाथ के खूब पोस्टर लगे थे, तब दोहरे इंजन वाली सरकार और प्रचार की बात समझ में आ रही थी। लेकिन, चंडीगढ़ जैसे आधुनिक मिजाज वाले शहर में भगवा वस्त्र वाले योगी का पोस्टर इस बात की तस्दीक कर रहा है कि योगी आदित्यनाथ अब राष्ट्रीय पहचान की ओर आगे बढ़ रहे हैं।
उत्तर प्रदेश का शासन-प्रशासन हो या निवेशकों का आना, योगी पूरे देश को संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि देश के सबसे बड़े सूबे की छवि अब सुधर रही है। खुद योगी आदित्यनाथ की छवि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री से आगे निकल कर ब्रांड हिंदुत्व के अखिल भारतीय नेतृत्वकर्ता की हो रही है। (संकलन : मृणाल वल्लरी)