Maharahstra Chunav: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 को लेकर महायुति हो या महाविकास अघाड़ी, दोनों का ही प्रचार पूरे जोरों पर है। इस बार राजनीतिक विचारधारा अलग होने के बावजूद महाविकास अघाड़ी में शिवसेना शामिल है और सावरकर को छोड़कर लगभग हर मुद्दे एनसीपी (शरदचंद्र)-कांग्रेस के साथ खड़ी नजर आती है। दूसरी ओर महायुति में एनसीपी अजित पवार गुट है लेकिन अजित पवार का रुख कुछ अलग ही है।
अजित पवार लगातार ऐसी नीति अपना रहे हैं, जो कि बीजेपी और शिवसेना शिंदे गुट के खिलाफ ही नजर आती है। वह पहले ही यह ऐलान कर चुके थे कि गठबंधन में उनके कोटे में जितनी भी सीटें आएंगी, उनमें से 10 प्रतिशत सीटें पार्टी अल्पसंख्यक समाज को देगी। दूसरी ओर बीजेपी-शिवसेना सीधे तौर पर महाराष्ट्र में हिंदुत्व की पिच पर खेल रहे हैं, जिसके चलते यह सवाल उठ रहा है कि क्या अजित पवार महायुति से अलग राह पर निकल पड़े हैं?
योगी आदित्यनाथ के नारे का आक्रामक विरोध
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और बीजेपी की हिंदुत्व पॉलिटिक्स के फिलहाल सबसे बड़े चेहरे योगी आदित्यनाथ ने बंटेंगे तो कटेंगे का जो नारा दिया, उसे पीएम मोदी ने दूसरे शब्दों में अपनाया और कहा कि ‘बंटने पर बांटने वाले महफिल सजाएंगे’।
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से लेकर बीजेपी का पूरा लाइन अप तक, यहां तक कि शिवसेना शिंदे गुट तक खुलकर सीएम योगी के इस नारे का समर्थन कर रही है लेकिन अजित पवार ने इसका विरोध कर दिया है।
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एनसीपी प्रमुख अजित पवार ने सीएम योगी के इस नारे को लेकर कहा कि वे और राज्य सांप्रदायिक सद्भाव के लिए ही प्रतिबद्ध हैं। अजित पवार ने खुलकर इस नारे से दूरी बना ली, जिससे एक बार फिर महायुति में बड़ी दरार के कयासों को बल मिला है।
शिवाजी का जिक्र कर योगी आदित्यनाथ पर बोला हमला
सीएम योगी आदित्यनाथ की टिप्पणी की निंदा करते हुए अजित ने कहा कि छत्रपति शिवाजी महाराज और ज्योतिबा फुले के पदचिन्हों पर चलने वाले महाराष्ट्र की तुलना अन्य राज्यों से नहीं की जा सकती। उन्होंने शुक्रवार को कहा कि शिवाजी का जीवन और शिक्षाएं समावेशी हैं और उन्होंने सभी समुदायों और वर्गों को एकजुट किया है। दूसरे राज्यों से लोग अक्सर महाराष्ट्र आते हैं और अपनी बात कहते हैं, लेकिन इस तरह की टिप्पणियां यहां के लोगों को पसंद नहीं आती हैं और अस्वीकार्य हैं।
केवल विकास के एजेंडे पर हैं पीएम मोदी के साथ
अजित ने कहा है कि पीएम मोदी के विकास के एजेंडे ने उन्हें सत्तारूढ़ गठबंधन की ओर आकर्षित किया है, जबकि एनसीपी ने भी खुद को विकास पर केंद्रित पार्टी के रूप में पेश करने के लिए ठोस प्रयास किए हैं। इसने अपने सहयोगियों के साथ-साथ विभिन्न दक्षिणपंथी संगठनों द्वारा की गई कथित सांप्रदायिक टिप्पणियों को बार-बार खारिज किया है।
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पीएम मोदी समेत BJP नेताओं की एनसीपी की सीटों पर नहीं होगी रैली
एनसीपी का यह फैसला अहम इसलिए भी है क्योंकि उसने फैसला किया है कि वह अपने निर्वाचन क्षेत्रों में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियां भी आयोजित नहीं करेगी।
दूसरी ओर कांग्रेस पर “एक जाति को दूसरी जाति के खिलाफ खड़ा करने” का आरोप लगाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को धुले और नासिक में रैलियों को संबोधित करते हुए नारा दिया, ‘एक है तो सेफ है’ का नारा दिया था।
मीडिया से बातचीत में अजित पवार ने कहा कि उन्होंने पीएम मोदी से अपनी बारामती सीट पर रैली करने का अनुरोध नहीं किया क्योंकि वहां लड़ाई ‘परिवार के भीतर’ है। मौजूदा विधायक अजित इस निर्वाचन क्षेत्र में शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी (एसपी) के अपने भतीजे युगेंद्र पवार के खिलाफ मैदान में हैं।
शरद पवार गुट के खिलाफ नहीं काम करेगी ये तकनीक
एनसीपी के अंदरूनी सूत्रों ने भी महायुति के भीतर पार्टी की अपनी रणनीति बनाने की जरूरत पर जोर दिया। अजित पवार गुट के एक नेता ने नाम न लिखने की शर्त पर कहा कि जो हमारे सहयोगियों को पसंद आता है, वह हमारी मदद नहीं करता। हर विधानसभा क्षेत्र की अपनी अलग गतिशीलता होती है और सांप्रदायिक एजेंडा हमारे लिए काम नहीं करेगा, जहां हमारा मुख्य प्रतिद्वंद्वी शरद पवार के गुट वाली एनसीपी है।
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सेक्युलर दिखाने की कोशिश में अजित पवार दिखे महायुति से भी अलग?
महायुति के घटक के तौर पर एनसीपी 288 में से 53 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, जिनमें से 41 सीटों पर पार्टी एनसीपी (एसपी) के साथ सीधी लड़ाई में है, जिसमें पश्चिमी महाराष्ट्र के शुगर बेल्ट की 20 सीटें शामिल हैं, जिसे पवारों का गढ़ माना जाता है। बीजेपी 148 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, जबकि शिंदे सेना ने 80 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं। ऐसे में उसके सहयोगी भले ही कट्टर हिंदुत्व की बात कर रहे हैं लेकिन अजित पवार को शरद पवार के वोट बैंक को सेंध पहुंचानी है, जिसके चलते वह खुद को सेक्युलर दिखाने की कोशिश में हैं।
अजित पवार अपने इस रुख के चलते महायुति गठबंधन में बिल्कुल ही अलग नजर आ रहे हैं, जिसके चलते यह सवाल भी उठने लगे हैं कि क्या वे चुनाव के बाद महायुति का साथ छोड़ भी सकते हैं? अगर एमवीए को लगता है कि अजित पवार के आने से उनकी सरकार बनाने की स्थिति मजबूत होगी, तो अगर चाचा शरद पवार भतीजे को खुशी-खुशी एमवीए में ले लेंगे तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी। वहीं यह भी संभव कि अगर बीजेपी और शिवसेना शिंदे गुट दोनों मिलकर ही बहुमत का आंकड़ा हासिल कर लें, तो वे भी अजित पवार से किनारा कर सकते हैं।
संभव है कि यह सारी स्थिति अजित पवार भी अच्छे से समझ रहे हैं, इसलिए वे महायुति में होते हुए भी एक स्वतंत्र राय पेश करते नजर आ रहे हैं। कुछ ऐसा ही उनका रुख नवाब मलिक को टिकट देने पर रहा। बीजेपी द्वारा यह कहा गया कि एनसीपी उन्हें टिकट न दे, और एनसीपी ने बीजेपी को अंधेरे में रखा और नामांकन के आखिरी घंटे में नवाब मलिक का टिकट पक्का कर दिया। इससे पहले भी एनसीपी और महायुति के बीच दरार बढ़ती नजर आई थी, और अब बंटेंगे तो कटेंगे को लेकर अजित पवार का रुख इस दरार को बढ़ा रहा है।