Lok Sabha Elections 2024 Bihar: लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर पहले बिहार बीजेपी के लिए चुनौती माना जा रहा था, लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी JDU के पाला बदलकर NDA में जाने के बाद अब मुकाबला कांटे का हो गया है। इसकी वजह यह है कि भले ही 2020 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी-जेडीयू साथ थे, फिर भी तेजस्वी यादव के नेतृत्व में आरजेडी ने एनडीए को नाकों चने चबवा दिए थे। ऐसे में एनडीए में इस बार जेडीयू और बीजेपी दोनों ही फूंक-फूंक कर कदम रख रहे हैं।
एनडीए हो या विपक्षी दलों का इंडिया गठबंधन… दोनों ही गुटों ने अपना सीट शेयरिंग फॉर्मूला घोषित कर दिया है। पिछले चुनाव की बात करें तो 2019 में एनडीए ने 40 में से 39 सीटें जीती थीं और एक किशनगंज की सीट कांग्रेस के पास चली गई थीं। इस बार सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच लोकसभा चुनाव के दौरान एक बेहद ही कड़ा घमासान देखने को मिल सकता है, जिसकी बानगी प्रत्याशियों का एलान भी है।
लालू यादव ने RJD के पारंपरिक मुस्लिम-यादव (MY) वोट से आगे बढ़कर ‘BAAP’, बहुजन (पिछड़े) – अगड़ा (अगड़े) – आधी आबादी (महिला) और गरीब तक, तक विस्तार करने की तैयारी की है। इसके चलते इस बार इंडिया गठबंधन ‘MY-BAAP’ के फॉर्मूले पर चुनाव में उतरने वाला है।
सीट शेयरिंग पर कांग्रेस खफा लेकिन RJD अटल
सीट शेयरिंग को लेकर एनडीए संतुष्ट है लेकिन इंडिया में ऐसा नहीं है। कांग्रेस अपनी नौ सीटों की सूची से बहुत खुश नहीं है, लेकिन उसके पास RJD द्वारा दी गई कम सीटों को स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। RJD को 2019 में लड़ी गई 19 सीटों पर एक भी सीट नहीं मिली थी। 2020 के विधानसभा चुनावों में तेजस्वी की मेहनत से राजद राज्य की सबसे बड़ी पार्टी बनी थी, जिसके चलते पार्टी का कॉन्फिडेंस लौटा था। इसी के चलते इस बार आरजेडी 26 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने वाली है।
ऑफ कैमरा बातचीत में एक राजद नेता ने कहा कि जब से कांग्रेस ने 2020 के विधानसभा चुनावों में लड़ी गई 70 सीटों में से केवल 19 सीटें जीतीं, तब से लालू का कांग्रेस से विश्वास उठ गया है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा है कि हम कांग्रेस का साथ चाहते हैं, लेकिन ये नहीं चाहते थे कि वह हम पर बोझ बन जाए। दूसरी ओर CPI (ML) को तीन लोकसभा सीटें गिफ्ट की गई हैं, उसने 2020 के विधानसभा चुनावों के दौरान 12 सीटें जीती थीं। लालू और तेजस्वी ने सामाजिक संयोजन को फिर से तैयार किया है और 2024 के बिहार चुनाव अभियान को नौकरियों की थीम के इर्द-गिर्द बुना है।
RJD को दर्जन भर सीटों पर है टक्कर की उम्मीद
RJD ने एक दर्जन से अधिक सीटें चुनी हैं, जहां उसे सामाजिक संयोजन और उम्मीदवारों की पसंद के कारण कांटे की टक्कर की उम्मीद है, जबकि पार्टी को सारण सीट पर कड़ी टक्कर की उम्मीद है, जहां से उसने लालू की दूसरी बेटी रोहिणी आचार्य को मैदान में उतारा है, उसे यह भी उम्मीद है कि लालू की सबसे बड़ी बेटी मीसा भारती पाटलिपुत्र सीट पर भाजपा प्रतिद्वंद्वी राम कृपाल यादव के खिलाफ तीसरी बार जीत दर्ज कर सकती हैं। इससे पहले वे दो बार हार चुकी हैं।
बात बीजेपी की करें तो सारण के बीजेपी उम्मीदवार राजीव प्रताप रूडी के साथ ही कई ऐसे सांसद हैं, जो कि तीसरी बार एक ही सीट से चुनावी मैदान में हैं। उन्हें केंद्र और राज्य की दोहरी सत्ता विरोधी लहर का भी सामना करना पड़ सकता है। इसके चलते ही राजद को उम्मीद है कि उसे इस बार इस सत्ता विरोधी लहर का फायदा भी मिल सकता है।
कांग्रेस को नहीं मिली बेगूसराय की सीट
इंडिया ब्लॉक को यह भी उम्मीद है कि सीपीआई (ML) काराकाट और आरा में एनडीए प्रतिद्वंद्वियों उपेंद्र कुशवाहा और केंद्रीय मंत्री आरके सिंह के खिलाफ अच्छा प्रदर्शन करेगी। इसके अलावा सीपीआई (एम) खगड़िया में एलजेपी से मुकाबला करेगी। हालांकि ऐसा लगता है कि इंडिया ब्लॉक ने कांग्रेस के कन्हैया कुमार को मैदान में न उतारकर निवर्तमान गिरिराज सिंह को वॉकओवर दे दिया है।
NDA ने नहीं किए ज्यादा प्रयोग
एनडीए को लेकर खास बात यह है कि उसने अपने पिछली बार जीते प्रत्याशियों को ही मैदान में उतारा है और ज्यादा प्रयोग से बचाव किया है। बीजेपी ने जहां अनुभवी अश्विनी कुमार चौबे को बक्सर से हटा दिया है, वहीं शिवहर से रमा देवी को भी हटा दिया है, ताकि यह सीट जद (यू) की लवली आनंद को दी जा सके। इसके अलावा खराब फीडबैक के कारण मुजफ्फरपुर के सांसद अजय निषाद को भी हटा दिया गया। बिहार को लेकर बीजेपी की सतर्कता को राज्य में सात चरण के चुनावों के शेड्यूल से पढ़ा जा सकता है, जिससे पीएम नरेंद्र मोदी को राज्य में अधिकतम संख्या में रैलियां करने का मौका मिल गया है।
जेडीयू भी प्रधानमंत्री के बड़े व्यक्तित्व और भीड़ को ढाल के रूप में इस्तेमाल करना चाहती है, क्योंकि नीतीश कुमार के अलावा पार्टी के पास ज्यादा स्टार प्रचारक नहीं हैं। चुनाव प्रचार में सीएम का राज्य भर में संक्षिप्त भाषण देने का कार्यक्रम है। जेडीयू के एक नेता ने तो यह भी कहा कि इस बार पुलवामा जैसा कोई भावनात्मक मुद्दा नहीं है। इसलिए एनडीए के लिए यह फिर से नरेंद्र मोदी का शो होगा। बिहार में राम मंदिर उद्घाटन कोई बड़ा मुद्दा नहीं है। यह एक शक्तिशाली मोदी और एक बेहद कमजोर विपक्ष के बीच मुकाबला बनकर रह गया है।
खास बात यह है कि भले ही एनडीए यह दावा कर रहा हो कि वह राज्य की 40 की 40 सीटें जीत लेगा, लेकिन उसने भी जातिगत समीकरणों का पूरा ध्यान रखा है। नीतीश कुमार, चिराग पासवान और उपेन्द्र कुशवाह के साथ गैर-यादव ओबीसी को एनडीए की ओर आकर्षित करने की उम्मीद है। बिहार का परिणाम काफी हद तक इस बात पर निर्भर करेगा कि विपक्षी राजद-कांग्रेस-वाम गठबंधन कैसे काम करता है, और क्या नीतीश कुमार 2019 के बाद से कमजोर हो गए हैं।