कोरोना वायरस की वजह से लॉकडाउन में फंसा इंसाफ अली लगातार 14 दिनों तक चलकर मुंबई से 1500 किलोमीटर दूर यूपी के श्रावस्ती जिले में अपने गांव पहुंचा लेकिन वहां पहुंचने के चंद घंटों बाद ही उसकी मौत हो गई। वह पूरे रास्ते सिर्फ बिस्किट खाकर जिंदा रहा, पर अपने पास बचे पांच हजार रूपये घर आकर परिजनों को सौंप दिया। मुंबई से श्रावस्ती के मटखनवा गांव आने के दौरान इंसाफ अली किसी तरह पुलिस से बचता रहा या उसे मैनेज करता रहा लेकिन घर पहुंचकर भी वह जिंदगी की जंग हार गया। 35 साल का इंसाफ अली मुंबई में राजमिस्त्री के सहायक के रूप में काम करता था। सोमवार (27 अप्रैल) को उसकी मौत हो गई।

खबर लिखे जाने तक अली का पोस्टमार्टम रिपोर्ट नहीं हुआ था क्योंकि उसके कोरोना टेस्ट के रिजल्ट का इंतजार किया जा रहा था। पोस्टमार्टम तभी होगा जब कोरोना रिजल्ट निगेटिव आएगा। अली की पत्नी सलमा बेगम और उसके रिश्तेदार फिलहाल अंदाजा ही लगा पा रहे हैं कि आखिर अली की मौत कैसे हुई? सलमा ने बताया कि अली के मोबाइल की बैटरी डिस्चार्ज हो गई थी। उससे पहले फोन पर बात में उसने बताया था कि वह सिर्फ बिस्किट खाकर जिंदा है।

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सलमा ने बताया कि वो आखिरी घड़ी में भी अली को नहीं देख सकी क्योंकि वो मायके में थी। उसके ससुराल आने से पहले ही अली की बॉडी ले जाई जा चुकी थी। उनका छह साल का एक बेटा भी है। उसका नाम इरफान है। इंसाफ के माता-पिता समेत भाई और उसके सभी घरवालों को क्वारंटीन में भेज दिया गया है। अली के दो बड़े भाई भी प्रवासी मजदूर हैं जो फिलहाल पंजाब में फंसे हुए हैं।

सलमा ने कहा कि अली 13 अप्रैल को ही मुंबई से निकला था, उसने बताया था कि उसके पास पैसे नहीं हैं। सलमा ने कहा, “उन्हें हफ्तों तक कोई काम नहीं मिला था। उन्होंने कहा कि गाँव में, वह कम से कम परिचित लोगों के साथ तो रहेंगे और किसी तरह मैनेज कर लेंगे।” बतौर सलमा, अली रास्ते भर उसे फोन करते रहे थे।

उन्होंने बताया, “अली 10 अन्य लोगों के साथ झाँसी आया, या तो वो पैदल चल रहा था या ट्रक में छिपकर वहां तक पहुंचा था। इसके अवज में ड्राइवर को 3,000 रुपये भी दिए थे। वहां से, वह बहराइच तक चला, जहां उसे रविवार रात पुलिस ने पकड़ लिया और वापस जाने के लिए कहा लेकिन दूसरे साथियों को छोड़कर और पुलिस को चकमा देकर वह रात में एक घाट पर छिप गए। उसके बाद, उसका मोबाइल पोन डेड हो गया और मैं उसके संपर्क में नहीं आ सकी। मैंने उन सभी लोगों को फोन किया, जिनके साथ वह यात्रा कर रहा था, लेकिन किसी को कुछ पता नहीं था। फिर, सोमवार सुबह, उन्होंने मुझे फोन किया और कहा कि मैं मटखनवा गाँव वापस आऊँ।
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