देश की सियासत में इस हफ्ते कई रंग नजर आए—कहीं मंदिर में दलित नेता के प्रवेश पर बवाल हुआ, तो कहीं बंगले को लेकर भाजपा की नई रणनीति बनी। कांग्रेस और भाजपा में दलित विरोधी बयान को लेकर तकरार दिखी, वहीं तृणमूल के भीतर अंदरूनी घमासान सामने आया।
दिल्ली के ‘शीश महल’ को लेकर आम आदमी पार्टी और भाजपा में फिर सियासी गहमागहमी है। डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम की बार-बार पैरोल और फरलो से कानून व्यवस्था पर सवाल उठे हैं। और बिहार में नीतीश कुमार को लेकर भाजपा नेता का बयान फिर केंद्र-बिहार रिश्तों पर बहस छेड़ गया है।
घृणा के घटक
टीकाराम जूली राजस्थान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं। कांग्रेस की पिछली सरकार में वे कैबिनेट मंत्री थे। दलित जूली तीसरी बार विधायक हैं। वे अशोक गहलोत के करीबी माने जाते हैं। अलवर जिले की अलवर देहात सीट से विधायक हैं। रामनवमी पर जिले में एक मंदिर के अभिषेक समारोह में शामिल हुए थे। उनके समारोह में जाने का कार्यक्रम प्रसारित हुआ तो भाजपा नेता ज्ञानदेव आहूजा ने फरमाया कि उनके मंदिर में कदम रखने से मंदिर अपवित्र हो जाएगा। इस बयान से आहत होने के बाद जूली मंदिर में गए और विधिविधान से पूजा-अर्चना भी की। लेकिन आहूजा ने अगले दिन मंदिर की प्रतिमा को गंगाजल से धो डाला। इससे कांग्रेस को मुद्दा मिल गया भाजपा पर वार करने का। खुद जूली ने सवाल किया कि भाजपा दलितों से इतनी घृणा क्यों करती है कि उसे दलितों का मंदिर में पूजा-पाठ करना भी बर्दाश्त नहीं होता। फिर आहूजा कोई नए भाजपाई तो हैं नहीं। अलवर जिले की ही रामगढ़ सीट से तीन बार विधायक रह चुके हैं। दलित विरोधी छवि बनते देख भाजपा नेतृत्व की नींद टूटी। आनन-फानन में आहूजा को निलंबित कर कारण बताओ नोटिस थमा दिया। भाजपा को आहूजा ने उलझन में पहली बार नहीं डाला है। इससे पहले भी कथित गो-रक्षकों द्वारा गरीब पशुपालक पहलू खान की हत्या किए जाने का भी आहूजा ने समर्थन किया था।
कल्याण-कथा
कल्याण बनर्जी तृणमूल कांग्रेस के सांसद हैं। पार्टी की मुखर सांसद महुआ मोइत्रा से उनका छत्तीस का आंकड़ा ममता बनर्जी से भी छिपा नहीं है। लेकिन इस बार बनर्जी ने सौगत राय और कीर्ति आजाद से भी पंगा ले लिया है। वक्फ संशोधन विधेयक पर बनी संयुक्त संसदीय समिति में उन्होंने जो नाटक किए थे, उससे भी बनर्जी के बारे में पार्टी की धारणा अच्छी नहीं बनी थी। फर्जी मतदाताओं की शिकायत के लिए चुनाव आयोग जाने वाले प्रतिनिधि मंडल से उन्होंने महुआ मोइत्रा का नाम काट दिया। पार्टी ने तय किया था कि ज्ञापन पर पहले संसद भवन में पार्टी के सारे सांसद हस्ताक्षर करेंगे। फिर उसे चुनाव आयोग को सौंपेगे। लेकिन कल्याण बनर्जी सीधे जा पहुंचे आयोग के दफ्तर। ऊपर से महुआ की जगह काकोली घोष दस्तीदार का नाम डाल दिया। इस पर विवाद हुआ। बनर्जी की ताजा हरकतों को लेकर अब ममता भी उनसे नाराज हैं।
शीश महल का विकल्प क्या?
आम आदमी पार्टी सरकार के कार्यकाल में सबसे चर्चित शीश महल यानी पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के आलीशान बंगले को लेकर आज भी नई भाजपा सरकार में दुविधा है। भारतीय जनता पार्टी ने इस शीश महल को एक बड़ा चुनावी मुद्दा बनाया था और इसके लिए दिल्ली के बड़े-बड़े पार्क में फोटो गैलरी लगाकर जनता को हकीकत बताने की भी पहल की थी। इस शीश महल से अब भाजपा आम जनता को सीधे जोड़ना चाहती है। तैयारी चल रही है कि शीश महल को जनता से संबंधित किसी विभाग का हिस्सा बना दिया जाए और लोग इसे देख सकें। इसे अब तक मुख्यमंत्री आवास के नाम से जाना जाता है और वर्तमान मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता अपने निजी आवास से ही अपना कार्य चला रही हैं।
सियासी हनक
गुरमीत राम रहीम सिंह जैसी किस्मत आसाराम बापू की नहीं निकली। उम्रदराज बापू को तो इलाज के लिए भी जेल से बाहर आने की इजाजत मुश्किल से मिली। उधर राम रहीम हैं कि जब जी चाहे जेल से बाहर आ जाते हैं। हरियाणा सरकार मेहरबान हो तो कोई रुकावट डाल भी कैसे सकता है। पिछले 16 महीनों में वे पांचवी बार बाहर आए हैं। जेल में चाल-चलन अच्छा रहे तो राज्य सरकार जरूरी काम के लिए किसी भी कैदी को पैरोल पर सीमित दिनों के लिए जेल से बाहर जाने की इजाजत दे सकती है। दूसरे कैदियों को तो ऐसी इजाजत बामुश्किल मिल पाती है और वह भी एक-दो बार ही। पर गुरमीत राम रहीम ठहरे डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख। इस डेरे के अनुयायी लाखों में बताए जाते हैं। तभी तो डेरा प्रमुख को न केवल पैरोल मिल जाती है बल्कि फरलो भी। इस बार उन्हें डेरे के स्थापना दिवस समारोह में शामिल होने के लिए 21 दिन जेल से बाहर रहने की मिली है फरलो। स्थापना दिवस तो महज एक दिन का होता है। तीन महीने पहले जनवरी में भी उन्हें 30 दिन का पैरोल मिला था। विरोधियों ने आरोप लगाया था कि दिल्ली विधानसभा चुनाव के मौके पर सियासी लाभ के लिए दिया था सूबे की सरकार की मेहरबानी से तब पैरोल। बलात्कार के आरोप में बीस साल कैद की सजा तो वे नाम को भुगत रहे हैं। बाहर आने का मौका तो सरकार ने उन्हें हरियाणा विधानसभा चुनाव से पहले भी दिया था।
बयान का बाण
अश्विनी कुमार चौबे की गिनती बिहार में भाजपा के कद्दावर नेताओं में होती है। इसी बुधवार को बक्सर में एक कार्यक्रम में नीतीश कुमार की तारीफ करते हुए फरमाया कि नरेंद्र मोदी और नीतीश की जोड़ी राम-लक्ष्मण की तरह है। अब नीतीश कुमार को राजग का संयोजक बना दिया जाना चाहिए। बिहार के लिए बेहतर होगा कि वे मोदी के साथ केंद्र की सरकार में उपप्रधानमंत्री बन जाएं। अविश्वी चौबे के इस बयान काएक संकेत हर कोई लगा रहा है कि भाजपा अब बिहार में नीतीश की अधीनता से ऊब चुकी है। नीतीश 74 के हो चुके हैं पर मुख्यमंत्री पद से हटने को तैयार नहीं। तभी तो जद (एकी) के नेता चौबे की सलाह को उनका निजी बयान बता रहे हैं। केंद्रीय मंत्री ललन सिंह ने भी सफाई देने में देर नहीं लगाई कि नीतीश कुमार बिहार में ही हैं और रहेंगे। खुद गृहमंत्री अमित शाह बिहार आकर एलान कर चुके हैं कि अगला विधानसभा चुनाव राजग नीतीश के नेतृत्व में ही लड़ेंगे। भाजपाइयों का एक वर्ग मान रहा है कि चौबे ने पार्टी आलाकमान की भावी रणनीति का ही तो खुलासा किया है, भला इसमें किसी को अचरज क्यों होना चाहिए।
(संकलन- मृणाल वल्लरी)