अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए संघ और उसके नेताओं का संघर्ष तीन दशक से भी ज्यादा पुराना है। कभी भाजपा का केंद्र रहे लालकृष्ण अडवाणी के नेतृत्व में मंदिर निर्माण को आंदोलन बना। इसमें तब एक आम भाजपा कार्यकर्ता के तौर पर नरेंद्र मोदी भी व्यवस्थापक के तौर पर शामिल रहे थे। हालांकि, बीते इतने सालों में जैसे-जैसे राम मंदिर निर्माण के रास्ते बदलते रहे, वैसे-वैसे संगठन में नेताओं की भूमिका में भी बदलाव आया। कभी मंदिर निर्माण के लिए आयोजित कार्यक्रमों में तालमेल बिठाने वाले मोदी अब उस सरकार के मुखिया हैं, जिसके अंतर्गत राम मंदिर का निर्माण हो रहा है।

1984 में भाजपा के खराब प्रदर्शन के साथ ही पार्टी की मुख्यधारा में आया था राम मंदिर का मुद्दा
गौरतलब है कि आरएसएस और उससे जुड़े संगठनों ने काफी पहले ही बाबरी मस्जिद वाली जगह पर राम मंदिर के निर्माण के लिए आवाज उठाना शुरू कर दिया था। हालांकि, भाजपा ने 1984 के लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन के बाद ही पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के लिए राम मंदिर के मुद्दे को मुख्यधारा में लाने का फैसला किया। पार्टी के इस फैसले का उसे अगले लोकसभा यानी 1989 के चुनाव में फायदा भी हुआ और भाजपा ने 89 सीटें जीतीं।

देशभर में मंदिर मुद्दे को जोर-शोर से उठाने और इसके जरिए चुनावों में अच्छी बढ़त पाने के बाद तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष लालकृष्ण अडवाणी ने राम मंदिर निर्माण को अभियान बना दिया और रथ यात्रा की योजना बनाई। तब मोदी भाजपा की राष्ट्रीय चुनाव समिति के सदस्य हुआ करते थे। उन्हें 25 सितंबर 1990 को गुजरात के सोमनाथ से शुरू हो कर मुंबई जाने वाली यात्रा के समन्वय की जिम्मेदारी दी गई थी।

2002 में नरेंद्र मोदी तब गुजरात के मुख्यमंत्री बने ही थे, जब अयोध्या से कारसेवा कर लौट रहे लोगों से भरी ट्रेन पर हमला हो गया था। इसमें 59 कारसेवकों की जलकर मौत हो गई थी। इसके बाद राज्य में दंगे हुए थे, जिसमें हजारों लोगों की जान भी गई थी। जहां मोदी दावा करते हैं कि उन्होंने दंगे रोकने के लिए पूरी ताकत लगा दी, वहीं उनके आलोचक उन पर मुस्लिमों की प्रति भेदभाव रखने का आरोप लगाते रहे।

इस पूरी घटना के बाद मोदी की छवि को गहरा झटका लगा। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने तो 2007 के गुजरात चुनाव अभियान में उन्हें ‘मौत का सौदागर’ तक करार दे दिया। 2004 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की हार के पीछे भी गुजरात हिंसा को एक वजह माना जाता है। तब खुद अटल बिहारी वाजपेयी ने एक टीवी चैनल से कहा था कि गुजरात दंगे का प्रभाव देशभर में महसूस किया जा सकता है। मोदी को इस घटना के बाद हटा दिया जाना चाहिए था। हालांकि, तब वे अडवाणी ही थे, जो पीएम मोदी के बचाव में आए थे।

गुजरात दंगों के बाद बनी हिंदूवादी नेता की छवि
इस घटनाक्रम के बीच मोदी एक हिंदूवादी नेता के तौर पर साने आए। अगले विधानसभा चुनावों में उन्होंने हिंदुत्व की ही लाइन भी थामी। हालांकि, 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी ने हिंदुत्व का दामन कम ही थामा और विकास को मुख्य मुद्दा बनाया। हालांकि, भाजपा के घोषणापत्र में राम मंदिर निर्माण को सांस्कृतिक विरासत के अंतर्गत जगह मिली। इसके बाद उत्तर प्रदेश में 2017 के चुनाव में अयोध्या मंदिर का मुद्दा एक बार फिर भाजपा के एजेंडें में शामिल रहा। केंद्र सरकार ने अक्टूबर 2016 में अयोध्या में रामायण म्यूजियम स्थापित करने का भी ऐलान कर दिया।

 

पीएम बनने के बाद मंदिर के जिक्र से बचते रहे मोदी
प्रधानमंत्री के तौर पर अपने पहले कार्यकाल में मोदी ने अयोध्या का दौरा तक नहीं किया। उनकी एक चुनावी रैली भी अयोध्या के बाहर ही रही। 2014 से पहले कई बार राम मंदिर का जिक्र करने वाले मोदी पीएम बनने के बाद लगातार मंदिर मुद्दे का खुले तौर पर जिक्र करने से भी बचते रहे। अयोध्या मामले पर पीएम का सबसे बड़ा बयान सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ही आया।

मोदी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राष्ट्र के नाम संबोधन में कहा कि आज 9 नवंबर है, इसी दिन जर्मनी में बर्लिन की दीवार ढहाई गई थी। आज ही करतारपुर कॉरिडोर का भी उद्घाटन हुआ और अब अयोध्या पर फैसला आया है। यह तारीख हमें हमेशा एकजुट रह कर आगे बढ़ने का संदेश देती रहेगी। उन्होंने आगे कहा था, “यह फैसला एक नई सुबह लेकर आया है। अब अगली पीढ़ियां नए भारत का निर्माण करेंगी। आज का दिन सभी तरह की कड़वाहटों को भुलाने का दिन है। नए भारत में डर, कड़वाहट और नकरात्मकता की कोई जगह नहीं है।”