हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में चुनावी नतीजों ने कई दलों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया, जिसमें चंद्रशेखर आजाद की आज समाज पार्टी और रालोद प्रमुख रहे। हरियाणा में भाजपा की लगातार तीसरी जीत का श्रेय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को दिया जा रहा है, जबकि कांग्रेस और अन्य सहयोगी दलों के बीच बढ़ते मतभेद स्पष्ट हो रहे हैं। राजस्थान में भाजपा विधायकों में उपमुख्यमंत्री की मांग को लेकर असंतोष है, जिससे पार्टी के अंदर फेरबदल की अटकलें तेज हो गई हैं। कांग्रेस की हार के बाद भूपिंदर सिंह हुड्डा को पार्टी की अंदरूनी कलह का दोषी ठहराया जा रहा है।

जमानत जब्त

हरियाणा व जम्मू-कश्मीर ने बाहर से आए दलों को पूरी तरह से नकार दिया। हरियाणा में चंद्रशेखर आजाद की आज समाज पार्टी ने दुष्यंत चौटाला की जजपा से गठबंधन किया था। दस सीट वाली जजपा का खाता भी नहीं खुल पाया तो भला आजाद की आसपा क्या चमत्कार कर पाती। अभी तो आजाद का उत्तर प्रदेश में भी खास जनाधार नहीं है। हां, नगीना में जरूर चंद्रशेखर आजाद ने लोकसभा चुनाव जीतकर कमाल दिखाया था। आसपा की तरह ही आम आदमी पार्टी, इनेलोद और बसपा के गुब्बारे की भी हवा निकल गई। कभी हरियाणा की सत्तारूढ़ पार्टी रही इनेलोद को एक और बसपा को भी एक सीट पर ही सब्र करना पड़ा है। आम आदमी पार्टी का तो कोई उम्मीदवार दूसरे स्थान पर भी नहीं आ पाया। जम्मू कश्मीर में मतदाताओं ने वहां की क्षेत्रीय पार्टी पीडीपी तक को भाव नहीं दिया तो फिर जयंत चौधरी की रालोद का क्या उठता। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों तक प्रभाव रखने वाली यह पार्टी अगर पड़ोसी और जाट बहुल हरियाणा में कुछ उम्मीदवार उतारती तो तुक समझ आ सकती थी। पर उसने जम्मू कश्मीर में उतार दिए अपने 13 उम्मीदवार। कोई जमानत तक नहीं बचा पाया। इसे रालोद के समर्थक भी जयंत चौधरी की सियासी अपरिपक्वता बता रहे हैं। संगठन और जमीनी कामकाज के बिना कोई पार्टी दूसरे इलाके में जाकर चुनाव लड़ने की सोच भी कैसे सकती है।

उपेक्षा का दर्द

राजस्थान में मंत्रिमंडल में फेरबदल की अटकलों को लेकर राजस्थान भाजपा के विधायकों ने लाबिंग तेज कर दी हैं। भजनलाल सरकार में अभी 24 मंत्री हैं। नियमानुसार अधिकतम 30 मंत्री हो सकते हैं। भजनलाल शर्मा को आलाकमान ने मुख्यमंत्री तो जरूर बना दिया पर वे वरिष्ठ विधायकों को काबू नहीं कर पा रहे हैं। उनके एक मंत्री किरोड़ीलाल मीणा ने तो चार महीने पहले ही इस्तीफा दे दिया था। जिसे मुख्यमंत्री ने स्वीकार नहीं किया। मीणा के समर्थक उन्हें उपमुख्यमंत्री बनाए जाने की मांग कर रहे हैं। विधानसभा की जिन सात सीटों पर उपचुनाव होना है, उनमें चार कांग्रेस, दो भाजपा और एक हलोपा की थी। पार्टी के सदस्यता अभियान की कार्यशाला से कई मंत्री, विधायक, सांसद और पार्टी पदाधिकारी नदारद दिखे तो प्रभारी राधामोहन दास अग्रवाल ने पार्टी के सूबेदार मदन राठौड़ की क्लास ले डाली। वरिष्ठ विधायकों का दर्द उपेक्षा से झलकना था ही।

रूठों को मनाना जानते हैं…

हरियाणा में सत्ता विरोधी लहर को पीछे छोड़ते हुए भारतीय जनता पार्टी की लगातार तीसरी जीत का कोई कुछ भी कारण बताए। पार्टी के नेता तो इस जीत के लिए श्रेय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को देना नहीं भूल रहे हैं। हालांकि, अब तक इस मुद्दे पर भाजपा का कोई नेता खुलकर नहीं बोला है लेकिन पत्रकारों से बातचीत में वे खुलकर स्वीकार रहे हैं कि कैसे स्वयंसेवक घर-घर पहुंचे और उन्होंने भाजपा के कार्यों को लोगों तक पहुंचाया। सत्ता विरोधी लहर को कम करने में भी आरएसएस ने अहम भूमिका निभाई ही साथ ही किसानों को भी साथ लिया। पार्टी के एक नेता ने कहा कि स्वयंसेवक नाराज से नाराज व्यक्ति को आसानी से मना लेते हैं। लोगों से जुड़ने में संघ कार्यकर्ता बेजोड़ हैं।

अ-सहयोगी

हरियाणा में हार क्या हुई, कांग्रेस के प्रति उसके सहयोगियों का नजरिया बदल गया। दिल्ली में आम आदमी पार्टी और उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी ने हल्ला बोला। जम्मू कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस के उमर अब्दुल्ला ने भी उम्मीद से कम सीटें मिलने का ठीकरा अपनी सहयोगी कांगे्रस के सिर ही फोड़ दिया। तीन निर्दलियों के साथ आने के दम पर यह हवा अलग बनाई कि कांग्रेस के छह विधायकों के बिना भी बन जाएगी उनकी सरकार। केंद्र की मोदी सरकार के प्रति नजरिया भी नरम हो गया। दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने कह दिया कि अगले साल वह विधानसभा चुनाव अकेले लड़ेगी। राहुल हरियाणा में आम आदमी पार्टी और सपा के साथ तालमेल के खिलाफ नहीं थे। पर हुड्डा ने कह दिया कि उनकी औकात नहीं सो कांग्रेस अकेले लड़ेगी। अखिलेश ने भी उपचुनाव वाली दस में से उत्तर प्रदेश की छह विधानसभा सीटों के अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए। जबकि लग रहा था कि दोनों पार्टी लोकसभा की तरह उपचुनाव भी मिलकर लड़ेगी। कांग्रेस पांच सीटें मांग रही थी। अखिलेश तीन सीटें देने को राजी भी थे। वे तो अब भी यही दावा कर रहे हैं कि जिस तरह दोनों दलों ने हरियाणा में मिलकर चुनाव लड़ा, उसी तरह उत्तर प्रदेश में भी लड़ेंगे। हरियाणा में कांग्रेस के लिए सपा ने त्याग किया तो उत्तर प्रदेश में वैसा ही त्याग कांग्रेस को सपा के लिए करना चाहिए। हालात को देख कर अखिलेश की यह मांग जायज ही है।

अब दरकिनार किए क्या होत?

अब पछताए क्या होत…हरियाणा में यह कहावत बदल कर कही जा रही, अब दरकिनार किए क्या होत? हरियाणा में कांग्रेस को बहुमत ही नहीं कम से कम 55 सीटें जीतने का विश्वास था। पर मिली केवल सैंतीस। पार्टी की लुटिया डुबोने का दोष हार के बाद राहुल गांधी ने भूपिंदर सिंह हुड्डा को ठीक ही दिया है। हार की समीक्षा के लिए बुलाई पार्टी की बैठक से भी हुड्डा को दूर रखा। हर कोई मान रहा है कि हुड्डा ने मनमानी करके न तो कई वर्ष से हरियाणा में कांग्रेस का संगठन खड़ा होने दिया और न टिकटों के वितरण में किसी को भाव दिया। किरण चौधरी और अशोक तंवर ने पार्टी हुड्डा के कारण ही छोड़ी। बाकी बेड़ा गर्क चुनाव के मौके पर कोप भवन में जाकर सैलजा ने कर दिया। मतदाताओं के बीच मोटे तौर पर जाट और गैर जाट का ऐसा ध्रूवीकरण हुआ कि भाजपा 2014 से भी एक सीट ज्यादा जीत गई। अतीत से भी हुड्डा ने सबक नहीं लिया। याद कीजिए 1987 के चुनाव को। तब देवीलाल ने कांग्रेस के खिलाफ विपक्ष का एक मजबूत मोर्चा बनाकर नब्बे में से पच्चासी सीटें जीती थी और इतिहास रचा था।