एक अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य संबंधी रिपोर्ट (लैंसेट प्लेटनरी हेल्थ रिपोर्ट) ने खुलासा किया है कि सिर्फ वायु प्रदूषण से पिछले साल 2019 में 17 लाख भारतीयों की मौत हो चुकी है। यह कुल मौतों का 18 फीसदी है। देश में खतरनाक तरीके से वायु प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है, हालांकि सरकारें प्रदूषण से लड़ने के लिए तमाम तरह की योजनाओं और कार्यक्रमों की बातें कहती हैं, लेकिन प्रदूषण से जान जाने का सिलसिला लगातार जारी है।

“द इंडिया स्टेट लेवल डिजीज बर्डन इनिशिएटिव” नाम की ताजी लैंसेट रिपोर्ट में भीतरी (इनडोर) और बाहरी (आउटडोर) स्रोतों से होने वाले वायु प्रदूषण के स्वास्थ्य और आर्थिक प्रभावों का आकलन किया गया है। 21 दिसंबर 2020 को जारी नवीनतम रिपोर्ट में कहा गया है, “वर्ष 2019 में भारत में 17 लाख मौतें वायु प्रदूषण के कारण हुईं, जो देश में होने वाली कुल मौतों का 18 फीसदी थी।”

रिपोर्ट के मुताबिक घर के अंदर या भीतरी वायु प्रदूषण से कम मौतें हो रही हैं। घरों में वायु प्रदूषण के कारण मृत्यु दर में 64 प्रतिशत की कमी आई है। दूसरी तरफ बाहरी वायु प्रदूषण या परिवेशीय वायु प्रदूषण से ज्यादा मौते हो रही हैं। अध्ययन के अनुसार, “बाहरी परिवेश में वायु प्रदूषण से मृत्यु दर इस अवधि में 115 फीसदी बढ़ गई है।”

वाशिंगटन विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ मेडिसिन में स्वास्थ्य मेट्रिक्स और मूल्यांकन संस्थान के निदेशक और रिपोर्ट के सह-लेखक क्रिस्टोफर मरे ने कहा, “यह आवश्यक है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए नीति निर्माता स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर इस गंभीर खतरे को दूर करने के लिए निर्णायक कदम उठाएं।”

वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों और रुग्णता के कारण भारत ने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 1.4 प्रतिशत नुकसान उठाया है। मौद्रिक अवधि में 260,000 करोड़ या 2020-21 के लिए केंद्रीय बजट में स्वास्थ्य सेवा के लिए आवंटन का चार गुना से अधिक। वायु प्रदूषण के कारण होने वाली फेफड़ों की बीमारियों में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी 36.6 फीसदी रही।।