रूस से कच्चे तेल आयात को लेकर अमेरिका से बार-बार धमकी के बावजूद अक्तूबर में मास्को से नई दिल्ली का तेल आयात बढ़ गया। बुधवार को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनसे बातचीत में वाशिंगटन को रूस से तेल नहीं खरीदने का आश्वासन दिया था, जिसका गुरुवार को भारत ने खंडन कर दिया कि मोदी व ट्रंप के बीच ऐसी कोई बात नहीं हुई, न कोई आश्वासन दिया।

रूस से भारत का कच्चा तेल आयात अक्तूबर के पहले पखवाड़े में मजबूत हुआ, जिससे जुलाई-सितंबर के दौरान आवक में तीन महीने की गिरावट थम गई। जहाजों की आवाजाही से जुड़े आंकड़ों से यह जानकारी मिली। त्योहारी मांग को पूरा करने के लिए रिफाइनरियां पूरी तरह से काम पर लौट आई हैं। रूस से आयात जून में 20 लाख बैरल प्रतिदिन से घटकर सितंबर में 16 लाख बैरल प्रतिदिन रह गया था। अक्तूबर के आरंभ में हालांकि आंकड़ों से सुधार का संकेत मिलता है। भारत को यूराल और अन्य रूसी ‘ग्रेड’ के आयात में तेजी आई है जिसे पश्चिमी बाजारों में कमजोर मांग के बीच नए सिरे से छूट से समर्थन मिला है।

वैश्विक व्यापार विश्लेषण कंपनी ‘केप्लर’ के प्रारंभिक आंकड़ों से पता चला है कि अक्तूबर में आयात लगभग 18 लाख बैरल प्रति दिन (बीपीडी) रहा, जो पिछले महीने की तुलना में लगभग 2,50,000 बीपीडी की वृद्धि है (हालांकि चालू महीने के आंकड़ों में संशोधन हो सकता है)। ये आंकड़े अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के 15 अक्तूबर के उस बयान से पहले के हैं जिसमें उन्होंने दावा किया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रूसी कच्चे तेल के आयात को रोकने पर सहमत हो गए हैं।

‘भारत रूस से तेल नहीं खरीदेगा’, ट्रंप के दावे पर विदेश मंत्रालय ने क्या कहा?

हालांकि, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि उन्हें ऐसी किसी बातचीत की जानकारी नहीं है। केप्लर में प्रमुख शोध विश्लेषक (रिफाइनिंग एवं माडलिंग) सुमित रिटोलिया का मानना है कि ट्रंप का बयान किसी आसन्न नीतिगत बदलाव का प्रतिबिंब होने के बजाय व्यापार वार्ता से जुड़ी दबाव की रणनीति अधिक है। उन्होंने कहा, ‘आर्थिक, संविदात्मक और रणनीतिक कारणों से रूसी तेल का भारत की ऊर्जा प्रणाली में अहम स्थान है।’

भारतीय रिफाइनरियों ने भी कहा कि सरकार ने अभी तक उनसे रूसी तेल आयात बंद करने को नहीं कहा है। पारंपरिक रूप से पश्चिम एशियाई तेल पर निर्भर भारत ने फरवरी, 2022 में रूसी सेना के यूक्रेन पर आक्रमण के बाद रूस से अपने आयात में उल्लेखनीय वृद्धि की। पश्चिमी प्रतिबंधों और यूरोपीय मांग में कमी के कारण रूसी तेल भारी छूट पर उपलब्ध हो रहा है। पश्चिमी देशों द्वारा फरवरी 2022 में यूक्रेन पर आक्रमण के बाद मास्को पर प्रतिबंध लगाने और उसकी आपूर्ति बंद करने के बाद, भारत ने छूट पर बेचे जाने वाले रूसी तेल की खरीदारी शुरू कर दी।

परिणामस्वरूप, 2019-20 (वित्त वर्ष 20) में कुल तेल आयात में मात्र 1.7 प्रतिशत हिस्सेदारी से, 2023-24 में रूस की हिस्सेदारी बढ़कर 40 प्रतिशत हो गई, जिससे यह भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता बन गया। अक्तूबर के पहले पखवाड़े में भी रूस का यही दर्जा बरकरार रहा।

हर बार वही दावा, हर बार वही खंडन, ट्रंप की बयानबाजी में कितना सच, उठे सवाल?

इराक लगभग 1.01 मिलियन बैरल प्रतिदिन के साथ भारत का दूसरा सबसे बड़ा कच्चा तेल आपूर्तिकर्ता था, उसके बाद सऊदी अरब 8,30,000 बैरल प्रतिदिन के साथ दूसरे स्थान पर था। अमेरिका 647,000 बैरल प्रतिदिन के साथ संयुक्त अरब अमीरात को पीछे छोड़कर भारत का चौथा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता बन गया है। केप्लर के अनुसार, संयुक्त अरब अमीरात ने 394,000 बैरल प्रतिदिन की आपूर्ति की।

रिटोलिया ने कहा कि रूसी कच्चा तेल भारत के लिए संरचनात्मक रूप से महत्वपूर्ण बना हुआ है, जो उसके कुल आयात का लगभग 34 प्रतिशत है। औसतन छूट 3.5-5 अमेरिकी डालर प्रति बैरल के बीच है, जो जुलाई/अगस्त के 1.5-2 अमेरिकी डालर से ज्यादा है। रूसी कच्चे तेल की जगह लेना मुश्किल नहीं है, क्योंकि मध्य पूर्व, लैटिन अमेरिका और अमेरिका से ज्यादा बैरल आ सकते हैं, ठीक वैसे ही जैसे भारत के 2022 से पहले के कच्चे तेल के भंडार में होता है।

वास्तविकता यह है कि रूसी आयात में कटौती करना मुश्किल, महंगा और जोखिम भरा होगा। प्रतिस्थापन के लिए कई आपूर्तिकर्ताओं से तेजी से विस्तार करना होगा, और वह भी ज्यादा लागत (माल ढुलाई, कम छूट) पर। अगर मार्जिन कम हो जाता है या खुदरा कीमतें बढ़ जाती हैं, तो इसका नतीजा मुद्रास्फीति, राजनीतिक प्रतिक्रिया और तेल शोधन कंपनियों की कमजोर लाभप्रदता हो सकती है।

भारत ने आर्थिक हितों और कूटनीतिक संबंधों के बीच संतुलन बनाते हुए लगातार एक स्वतंत्र विदेश और ऊर्जा नीति अपनाई है। रूसी कच्चे तेल से अचानक दूरी उसकी ऊर्जा सुरक्षा रणनीति को कमजोर करेगी और ऐसा तब तक संभव नहीं है जब तक ईरान या वेनेजुएला जैसे औपचारिक प्रतिबंध नहीं लगाए जाते।

इस समय, यह असंभव है कि भारत केवल अमेरिका और यूरोपीय संघ के राजनीतिक दबाव को शांत करने के लिए संरचनात्मक कटौती लागू करेगा। अगर वाशिंगटन दबाव बढ़ाता है, तो भारतीय रिफाइनर विविधीकरण का प्रदर्शन करने और पश्चिमी भागीदारों को खुश करने के लिए लगभग 1,00,000-2,00,000 बैरल प्रतिदिन की सांकेतिक कटौती कर सकते हैं। ट्रंप को खुश करने के लिए अमेरिका से अधिक मात्रा में आयात करना एक विकल्प है, लेकिन इसकी अधिकतम सीमा लगभग 4,00,000-5,00,000 बैरल प्रतिदिन है। ऐसा इसलिए है क्योंकि अमेरिकी ग्रेड को भारतीय रिफाइनिंग प्रणालियों के साथ रसद संबंधी कमियों, आर्थिक और अनुकूलता संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

केप्लर के आंकड़ों से पता चलता है कि 2025 में अब तक अमेरिकी कच्चे तेल का भारतीय आयात औसतन 310,000 बीपीडी रहा है, जो 2024 के 199,000 बीपीडी से बढ़कर लगभग 500,000 बीपीडी के वार्षिक उच्च स्तर पर पहुंच गया है (अक्टूबर में अपेक्षित)।