Article 370: पूर्व रॉ चीफ अमरजीत सिंह दुलत ने अपनी किताब ‘The Chief Minister and the Spy’ में सनसनीखेज खुलासा किया है। दुलत के इस खुलासे ने नेशनल कॉन्फ्रेंस को मुश्किल में डाल दिया है। खासकर उनके इस दावे को लेकर कि पार्टी प्रमुख फारूक अब्दुल्ला अनुच्छेद 370 को हटाने के लिए दिल्ली के साथ काम करने को तैयार थे।

दुलत ने अपनी किताब में दावा किया है कि अब्दुल्ला ने उनसे कहा था कि हम मदद करते। जम्मू -कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने के मामले में हमें विश्वास में क्यों नहीं लिया गया?

बुधवार को अब्दुल्ला ने कहा कि वह किताब में कई गलतियों से दुखी हैं। उन्होंने कहा कि कोई दोस्त इस तरह नहीं लिखता। उन्होंने रानी एलिज़ाबेथ के शब्दों का हवाला दिया कि “यादें अलग-अलग हो सकती हैं”।

दुलत ने अपनी किताब में लिखा है, ‘जिस तरह भाजपा ने अनुच्छेद 370 के संबंध में कश्मीर के प्रति अपने इरादे कभी नहीं छिपाए, उसी तरह फारूक भी दिल्ली के साथ काम करने की अपनी इच्छा के बारे में बेहद खुले तौर पर बात करते रहे हैं।’

उन्होंने लिखा, ‘हो सकता है कि नेशनल कॉन्फ्रेंस जम्मू-कश्मीर विधानसभा में भी इस प्रस्ताव को पारित करवा सकती थी। 2020 में जब मैं उनसे मिला तो उन्होंने मुझसे कहा, ‘हम मदद करते। हमें विश्वास में क्यों नहीं लिया गया?’

इस खुलासे पर प्रतिक्रिया देते हुए पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष सज्जाद लोन ने कहा कि उन्हें इस बात पर कोई आश्चर्य नहीं है। लोन ने एक्स पर पोस्ट में लिखा कि दुलत साहब ने अपनी आने वाली किताब में खुलासा किया है कि फारूक साहब ने निजी तौर पर अनुच्छेद 370 को हटाने का समर्थन किया था। दुलत साहब की ओर से यह खुलासा बहुत विश्वसनीय है। दुलत साहब फारूक साहब के सबसे करीबी सहयोगी और दोस्त हैं । वस्तुतः उनके दूसरे व्यक्तित्व हैं।

लोन ने कहा कि अनुच्छेद 370 को हटाए जाने से ठीक पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सीनियर अब्दुल्ला तथा उनके बेटे उमर अब्दुल्ला के बीच हुई बैठक मेरे लिए कोई रहस्य नहीं है।

लोन ने कहा कि मैं फ़ारूक साहब को यह कहते हुए देख सकता हूं- हमें रोने दीजिए, आप अपना काम करें, हम आपके साथ हैं। बेशक राष्ट्रीय हित। अब ऐसा लगता है कि 2024, 2019 में की गई सेवाओं का पुरस्कार था।

पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के विधायक और युवा अध्यक्ष वहीद पारा ने कहा कि दुलत द्वारा किए गए खुलासे आखिरी बचा हुआ मुखौटा उतार देते हैं। पारा ने कहा कि उग्र भाषण, मंचीय आक्रोश, ‘भाजपा से लड़ने’ की सावधानी से गढ़ी गई छवि – यह सब नाटक था। जम्मू-कश्मीर के लोगों को यह विश्वास दिलाने के लिए एक नाटक तैयार किया गया कि नेशनल कॉन्फ्रेंस उनके अधिकारों की रक्षा कर रही है। सच तो यह है कि वे हमारे अधिकारों को छीनने में चुपचाप मदद करने वाले थे।

उन्होंने कहा, ‘उनकी (एनसी की) विरासत प्रतिरोध की नहीं, बल्कि राजनेता के रूप में सुविधाजनक चुप्पी की है। इस अच्छी तरह से रचे गए नाटक का केवल एक ही उद्देश्य है: 370 और 35A के निरस्तीकरण और 5 अगस्त, 2019 के बाद फैले डर और धमकी के माहौल को ‘लोकप्रिय सरकार’ के सुविधाजनक लेबल के तहत सामान्य बनाना।’

पीडीपी की इल्तिजा मुफ़्ती ने कहा कि जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म किए जाने से कुछ दिन पहले अब्दुल्ला और प्रधानमंत्री मोदी के बीच क्या हुआ? इस पर पहले से ही संदेह था। उन्होंने कहा कि दुलत साहब , जो अब्दुल्ला के कट्टर समर्थक हैं। उन्होंने साझा किया है कि कैसे फारूक साहब अनुच्छेद 370 को खत्म करने के दिल्ली के कदम से सहमत थे। उन्होंने कहा कि इससे यह स्पष्ट है कि फारूक साहब ने जम्मू-कश्मीर के संविधान को खत्म करने और उसके बाद विश्वासघात को सामान्य बनाने में मदद करने के लिए संसद के बजाय कश्मीर में रहना चुना।

जम्मू-कश्मीर जेडी(यू) के अध्यक्ष जीएम शाहीन ने कहा कि उन्होंने जो कहा वह बिल्कुल सही था, क्योंकि वह नेशनल कॉन्फ्रेंस के आंतरिक मामलों को जानते थे। वह नेशनल कॉन्फ्रेंस और बीजेपी के बीच मध्यस्थ थे। उन्होंने कहा कि फारूक अब्दुल्ला ने अपने बेटे और एक अन्य के साथ प्रधानमंत्री के साथ बैठक की थी और उन्हें अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बारे में पता था। नेशनल कॉन्फ्रेंस वोटों के लिए दोहरा मापदंड अपना रही है। उन्होंने यासीन मलिक के साथ भी इसी के लिए प्रतिबद्धता जताई थी और वह स्वतंत्र रूप से घूमते थे। फारूक अब्दुल्ला सरकार ने 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का पूरा समर्थन किया था। उन्हें वक्फ बिल के बारे में भी पता था।

‘Waqf कानून पर हो रही हिंसा व्यथित करने वाली’, CJI संजीव खन्ना बोले- अगर मामला यहां लंबित है तो ऐसा नहीं होना चाहिए

इस बीच अब्दुल्ला ने श्रीनगर में कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि उन्होंने मुझे दोस्त कहा, एक दोस्त ऐसा नहीं लिख सकता। उन्होंने ऐसी बातें लिखी हैं जो सच नहीं हैं। इंग्लैंड के शाही परिवार के बारे में उनके परिवार के एक सदस्य ने एक किताब लिखी थी। (रानी) एलिज़ाबेथ ने केवल एक शब्द का इस्तेमाल किया – ‘यादें अलग-अलग हो सकती हैं’।”

अब्दुल्ला ने कहा कि दुलत ने लिखा है कि उन्होंने (अब्दुल्ला ने) उनसे पूछा था कि 1996 के चुनाव जीतने के बाद किसे मंत्री बनाया जाए। “वह कहते हैं कि मैंने (दुलत ने) उनसे एक छोटा मंत्रिमंडल बनाने के लिए कहा था। मेरे मंत्रिमंडल में 25 मंत्री थे; मैं उनसे क्यों पूछूं?” अब्दुल्ला ने कहा। “उन्होंने लिखा है कि हम (एनसी) भाजपा से हाथ मिलाने के लिए तैयार थे। यह गलत है… अगर हमें (अनुच्छेद) 370 को तोड़ना होता, तो फारूक अब्दुल्ला विधानसभा में दो-तिहाई बहुमत से (स्वायत्तता पर प्रस्ताव पारित) क्यों करते?”

अब्दुल्ला ने कहा कि दुलत ने उन्हें 1996 का चुनाव लड़ने के लिए मनाने का श्रेय लिया था। उन्होंने कहा, “यह पूरी तरह से गलत है।” उन्होंने आगे कहा कि भारत में तत्कालीन अमेरिकी राजदूत फ्रैंक विस्नर ने उन्हें चुनाव लड़ने के लिए प्रेरित किया था।

नेशनल कॉन्फ्रेंस के मुख्य प्रवक्ता तनवीर सादिक ने कहा: “वह (दुलत) खुद को प्रासंगिक बनाना चाहते हैं, वह इसे (पुस्तक को) विवादास्पद बनाना चाहते हैं। पुस्तक अपने आप में विरोधाभासी है। इसमें कहा गया है कि सात महीनों तक केंद्र फारूक साहब की भावना को भांपने की कोशिश कर रहा था । अगर यह सच होता, तो क्या फारूक साहब सात महीने बाद (जब वह रिहा हुए) PAGD (पीपुल्स अलायंस फॉर गुपकार डिक्लेरेशन) चलाते?”

(इंडियन एक्सप्रेस के लिए बशारत मसूद)

यह भी पढ़ें-

अमेरिका के साथ टैरिफ पर बनेगी बात? भारत आ रहे हैं ट्रंप के डिप्टी, इन तीन शहरों का करेंगे दौरा

उद्धव ठाकरे ने कर दी BJP को फंसाने वाली मांग, बोले- कहीं और ट्रांसफर करो राज्यपाल का निवास, राजभवन में बनाओ…