किसान आंदोलन के 26 दिन (सिंघु बॉर्डर, दिल्ली-हरियाणा सीमा पर) हो चुके हैं। पर फिलहाल रास्ता नहीं निकल पाया है। केंद्र और अन्नदाता, दोनों अपने रुख पर अड़े हैं। सोमवार को किसान ने आंदोलन तेज करने का ऐलान कर दिया। किसान आंदोलनों ने तय किया है कि वे अब रिले (रोज कुछ किसान) भूख हड़ताल पर बैठेंगे। पंजाब के भारतीय किसान यूनियन (BKU) के सचिव बलवंत सिंह ने समाचार एजेंसी ANI को बताया, “हर दिन 11 किसान 24 घंटे की भूख हड़ताल पर बैठेंगे।”
उनके मुताबिक, “हम इस प्रकार (रोज की भूख हड़ताल) बताना चाह रहे हैं कि सरकार हमारी मांग नहीं मान रही है और हम इस तरह से अपनी मांग मनवाएंगे।” यही नहीं, 23 दिसंबर को प्रदर्शनकारियों ने किसान दिवस मनाने का फैसला लिया है। उन्होंने लोगों से अपील है कि उस दिन लोग खाना न बनाएं। साथ ही भोजन ग्रहण न करें और किसान आंदोलन को याद करें। वहीं, हरियाणा में 25 से 27 दिसंबर तक टोल फ्री किए जाएंगे। यह घोषणा रविवार को किसानों की ओर से की गई थी।
इसी बीच, Ministry of Agriculture & Farmers Welfare ने आंदोलनरत किसानों को खत लिख एक बार फिर से बातचीत का न्यौता भेजा है। इस पत्र में केंद्र की ओर से किसान नेताओं से होने वाली बैठक की तारीख को लेकर भी सुझाव मांगा है। पत्र के मुताबिक, सरकार किसानों की समस्याएं सुनने के लिए तैयार है। मंत्रालय के संयुक्त सचिव विवेक अग्रवाल ने किसानों के 40 संगठनों को पत्र लिखा है। कहा है कि केंद्र किसानों की सभी चिंताओं का उचित समाधान निकालने की खातिर ‘खुले मन से’ हरसंभव प्रयास कर रहा है।
अग्रवाल ने कहा कि सरकार नयी दिल्ली के विज्ञान भवन में अगली बैठक बुलाना चाहती है ताकि प्रदर्शन जल्द से जल्द समाप्त हों। नौ दिसंबर को भेजे गए मसौदा प्रस्ताव में सरकार ने कम से कम सात मुद्दों पर आवश्यक संशोधन करने का प्रस्ताव दिया है जिसमें वर्तमान एमएसपी को जारी रखने के बारे में ‘लिखित आश्वासन’ की बात भी शामिल है। लेकिन संगठनों ने वह प्रस्ताव खारिज कर दिया था। इसकी जानकारी क्रांतिकारी किसान यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष दर्शन पाल ने 16 दिसंबर को ईमेल के जरिए दी।
यह खत ऐसे वक्त पर लिखा गया, जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कोलकाता में कहा कि केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर एक या दो दिन में प्रदर्शनकारी समूहों से उनकी मांगों पर बातचीत कर सकते हैं।
उधर, नारनौल में हरियाणा सीएम मनोहर लाल खट्टर ने कहा है कि एमएसपी थी, है और रहेगी। इसे समाप्त करने की कोशिश अगर किसी ने की तो खट्टर राजनीति छोड़ देगा। एमएसपी समाप्त नहीं होगी, हमारी मंशा है कि MSP से ऊपर कैसे जाएं, उसके लिए रास्ते बनाए जा रहे हैं। इसी बीच, बीजेपी सांसद मनोज तिवारी ने भी कहा है कि अगर इन कानूनों से किसानों का नुकसान हुआ, तो वह सांसदी छोड़ देंगे।

बता दें कि नए कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर दिल्ली की सीमाओं पर हजारों किसान डटे हुए हैं। केंद्र से किसानों की अब तक पांच दौर की वार्ता हो चुकी है जो विफल रही है। किसानों के संगठनों की एक बार केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ भी बैठक हो चुकी है, लेकिन उसका नतीजा भी शून्य रहा है।
दरअसल, केंद्र सितम्बर में पारित तीन नए कृषि कानूनों को कृषि क्षेत्र में बड़े सुधार के तौर पर पेश कर रही है, जबकि प्रदर्शनरत किसानों की आशंका कि इनसे एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) और मंडी व्यवस्था खत्म हो जाएगी और वे बड़े कॉरपोरेट पर निर्भर हो जाएंगे।