RJD MP Manoj Jha On ED Director: ईडी डायरेक्टर संजय मिश्रा के सेवा विस्तार को लेकर राजनीतिक बयानबाजी तेज हो गई। शुक्रवार को आरजेडी सांसद मनोज ने इस मुद्दे को लेकर केंद्र सरकार पर निशाना साधा। मनोज झा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के यह कहने के बाद भी कि इस व्यक्ति (ईडी निदेशक एसके मिश्रा) का कार्यकाल विस्तार अवैध है। उसके बाद केंद्र सरकार का एक प्रतिनिधिमंडल उसी अदालत में गया और ‘काल्पनिक कारणों’ से इसे 1.5 महीने तक बढ़ाने की अपील की।
आरजेडी सांसद ने कहा कि यह विस्तार कुछ राज्यों में राजनीतिक अशांति पैदा करने के लिए दिया गया है। केंद्र द्वारा एजेंसी का दुरुपयोग किया जा रहा है।
इससे पहले ED के निदेशक संजय कुमार मिश्रा का कार्यकाल 15 अक्टूबर तक बढ़ाने की केंद्र की मांग पर सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को सुनवाई हुई थी। इसके बाद कोर्ट ने मिश्रा का कार्यकाल बढ़ाकर 15 सितंबर तक करने की अनुमति दी। इसके पीछे कोर्ट ने देश हित का हवाला दिया।
सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि हमने सभी याचिकाकर्ताओं को सूचित किया है। हम जानते हैं कि आपने उन्हें हटाने का निर्देश दिया है, लेकिन परिस्थिति असाधारण है। इस पर जस्टिस बी.आर. गवई ने कहा कि क्या आप यह छवि नहीं बना रहे हैं कि बाकी सभी अधिकारी अयोग्य हैं? सिर्फ एक ही अधिकारी काम करने में सक्षम है।
जस्टिस गवई की टिप्पणी पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि ऐसा नहीं है। बात नेतृत्व की है। यह अधिकारी लगभग पांच साल से इस मामले की तैयारी से जुड़े हैं। भारत को जो रेटिंग मिलेगी उसका देश को व्यापक फायदा मिलेगा। वर्ल्ड बैंक की क्रेडिट रेटिंग वगैरह पर भी सकारात्मक असर पड़ेगा। इस पर न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि हमने समय दिया था कि एजेंसी में नेतृत्व परिवर्तन हो सके।
सॉलिसिटर जनरल मेहता ने कहा कि कई देश ग्रे लिस्ट में हैं। जैसे कि कुछ समय पहले तक पाकिस्तान भी था। इस पर जज ने सवाल किया कि हमारी अभी रेटिंग क्या है? इसका जवाब देते हुए मेहता ने कहा कि अच्छी है। उसे और बेहतर करना है। एडिशनल सॉलिसिटर जनरल राजू ने कहा कि कई देश इस कोशिश में हैं कि भारत की रेटिंग गिरे।
अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि यह लोग ऐसी छवि बना रहे हैं जैसे देश का सारा भार एक ही व्यक्ति (संजय मिश्रा) के कंधों पर है। इस व्यक्ति को दो साल पहले पद से हटना था। एफएटीएफ रिव्यू 1 साल तक चलेगा। इस तरह से तो इन्हें 2024 तक के कार्यकाल की मांग करनी चाहिए थी। क्या इनकी दलीलों को स्वीकार किया जा सकता है?