Delhi Assembly Elections 2025: दिल्ली में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर चुनावी कार्यक्रम घोषित कर दिया है। आयोग के मुताबिक 5 फरवरी को विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग होगी और तीन दिन बाद 8 फरवरी को यह पता चल जाएगा कि दिल्ली में किस पार्टी की सरकार बनने वाली है। राज्य में मुख्य मुकाबला तीन राजनीतिक पार्टियों आम आदमी पार्टी, बीजेपी और कांग्रेस के बीच है। इन सभी की सियासी साख इस बार दांव पर है।
2024 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा था, लेकिन दिल्ली में उसे फायदा हुआ था। वहीं कुछ महीने पहले हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में आश्चर्यजनक वापसी के बाद बीजेपी दिल्ल की चुनावी जंग काफी अहम पहलू बन गई है। दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोनों की ब्रांड वैल्यू दांव पर लगी है।
सबसे मुश्किल चुनाव का सामना कर रही है AAP
आम आदमी पार्टी अपने अब तक के सबसे कठिन चुनाव का सामना कर रही है, जबकि भाजपा ढाई दशक से अधिक समय के बाद सत्ता में वापसी की उम्मीद कर रही है। दूसरी ओर, कांग्रेस एक चमत्कार की उम्मीद कर रही है, ताकि वह पार्टी फिर से उभर सके, जिसे एक दशक पहले आप ने धूल चटा दी थी।
साल 2013 में भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के बाद बनी AAP ने दिल्ली में तूफान मचा दिया था, 70 में से 28 सीटें जीतकर 29.49% वोट शेयर हासिल किया था। इसके दो साल बाद 2015 में इसने अपने विरोधियों को धूल चटा दी, जब इसने 54.34% वोट शेयर के साथ 67 सीटें अपने नाम की थी। उसने 2015 की ही कहानी 2020 में भी दोहराई। हालांकि इसकी संख्या मामूली रूप से घटकर 62 रह गई लेकिन AAP ने 2020 के विधानसभा चुनावों में 53.57% वोट शेयर बनाए रखा।
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AAP के लिए क्यों हैं मुश्किलें
AAP जो कभी खुद को बदलाव का वाहक बताती थी, अब भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रही है। केजरीवाल खुद भी करीब छह महीने जेल में रहे, जब उन्हें पहले प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और बाद में सीबीआई ने दिल्ली आबकारी नीति घोटाले में उनकी भूमिका के लिए गिरफ्तार किया। पिछले साल सितंबर में उन्हें जमानत मिली थी। केजरीवाल के सहयोगी और दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया भी आबकारी नीति मामले में 17 महीने से अधिक समय जेल में रहे। एक अन्य पूर्व मंत्री सत्येंद्र जैन और राज्यसभा सांसद संजय सिंह भी गिरफ्तार हुए और जमानत पर बाहर हैं।
2015 से दिल्ली के राजनीतिक परिदृश्य पर हावी होने और 2022 में पंजाब जीतने के साथ, आप भारत में हाल के दिनों में देखी गई सबसे सफल राजनीतिक स्टार्टअप पार्टी है, जिसमें केजरीवाल का कल्याण मॉडल शामिल है, जिसमें मोहल्ला क्लीनिक, सरकारी स्कूलों में सुधार, बिजली और पानी की सब्सिडी शामिल हैं, जो पार्टी का मुख्य आधार है।
यह दिल्ली मॉडल ही था जिसने आप को गरीब और निम्न मध्यम वर्ग के वोट बैंक पर कब्ज़ा करने और कांग्रेस की हवा निकालने में मदद की, जिसे कभी इन वर्गों का काफ़ी समर्थन प्राप्त था। भाजपा, जिसे उच्च मध्यम वर्ग और पंजाबी और व्यापारिक समुदाय का समर्थन प्राप्त है, को अपने वोट बैंक में इस तरह की गिरावट का सामना नहीं करना पड़ा है।
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किस उम्मीद में हैं आम आदमी पार्टी?
हालांकि आप को पूरा भरोसा है कि उसकी लोकलुभावन/कल्याणकारी राजनीति उसे बीजेपी के हमले से बचाने में मदद करेगी। जब बात चुनाव प्रचार और जमीनी स्तर पर जुड़ाव की आती है, तो आप ने अक्सर साबित कर दिया है कि वह किसी से पीछे नहीं है। आप को सत्ता से बेदखल करने के लिए BJP को भी अपने वोट शेयर में भारी अंतर को पाटना होगा। 2020 में भाजपा ने दो दशकों में अपना सर्वश्रेष्ठ वोट शेयर (38.51%) दर्ज किया, लेकिन फिर भी वह आप से 15 प्रतिशत अंक पीछे थी। 2015 में दोनों पार्टियों के बीच वोट शेयर में 22 प्रतिशत से अधिक का अंतर था।
BJP के लिए है काफी चुनौतियां
पंजाब को छोड़कर दिल्ली उत्तर भारत का एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां बीजेपी ने पिछले दो दशकों में सत्ता का स्वाद नहीं चखा है। पिछले तीन दशकों में BJP के वोट शेयर पर नज़र डालने से पता चलता है कि पार्टी ने अपना काफी समर्थन आधार बनाए रखने में कामयाबी हासिल की है। 1998 से दिल्ली में सत्ता से बाहर होने के बावजूद बीजेपी छह विधानसभा चुनावों में कभी भी 32% से कम वोट शेयर नहीं ले पाई। वास्तव में, 2015 में भी, जब AAP ने चुनावों में जीत दर्ज की और बीजेपी को केवल तीन सीटें मिलीं, तब भी पार्टी ने 32.19% वोट शेयर हासिल किया था। पांच साल बाद, जब उसने आठ सीटें जीतीं, और AAP ने फिर से बाकी सीटें जीतीं, तो बीजेपी का वोट शेयर बढ़कर 38.51% हो गया।
BJP को लगातार मिल रहे वोट शेयर के अलावा जो बात उम्मीद देती है, वह यह है कि 2014 के बाद से उसने दिल्ली की सभी सातों लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की है। 1998 में सत्ता खोने के बाद से BJP लगातार तीन चुनाव हार चुकी है – 1998, 2003 और 2008 – कांग्रेस से और तीन – 2013, 2015 और 2020 – AAP से। पार्टी के लिए एक बड़ी कमी कांग्रेस की शीला दीक्षित और 2013 से AAP के केजरीवाल की तुलना में एक लोकप्रिय चेहरे की अनुपस्थिति रही है।
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हरियाणा और महाराष्ट्र जीतने के बाद जोश में है BJP
2015 में बीजेपी ने अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का अहम हिस्सा रहीं पूर्व आईपीएस अधिकारी किरण बेदी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाकर बड़ा दांव खेला था, लेकिन यह दांव कामयाब नहीं हुआ। उत्तरी क्षेत्र में मोदी लहर के बावजूद, दिल्ली बीजेपी की पहुंच से दूर रही। इस बार पार्टी दिल्ली में अपना सबसे आक्रामक अभियान चलाने जा रही है, जिसमें मोदी सबसे आगे रहेंगे।
पार्टी का मानना है कि उच्च मध्यम वर्ग, व्यापारी और पंजाबी समुदायों के बीच उसका वोट शेयर बरकरार है और पूर्वांचली मतदाताओं के एक बड़े हिस्से का भी उसे समर्थन हासिल है। और अब वह निम्न मध्यम वर्ग, दलितों और गरीबों में सेंध लगाने के लिए ठोस प्रयास कर रही है। लोकसभा में मिली हार के बाद बीजेपी ने हरियाणा और महाराष्ट्र में वापसी की है। वह दिल्ली में भी अपनी जीत का सिलसिला जारी रखना चाहेगी ताकि विपक्ष को करारा झटका दिया जा सके।
कांग्रेस के लिए ताकत दिखाने का मौका है ये चुनाव
दिल्ली में कांग्रेस का उत्थान और पतन बेहद हैरान करने वाला रहा। पार्टी 1998 में दिल्ली में सत्ता में आई थी, लोकसभा चुनावों में उसे हार का सामना करना पड़ा था। दिल्ली में भी बीजेपी ने सात में से छह सीटें जीती थीं। कांग्रेस की एकमात्र विजेता मीरा कुमार करोल बाग सीट से थीं। मुख्यमंत्री बनीं दीक्षित पूर्वी दिल्ली सीट पर भाजपा के लाल बिहार तिवारी से हार गई थीं।
नवंबर 1998 में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने 47.76% वोट शेयर के साथ 70 में से 52 सीटें जीतीं और कांग्रेस सरकार की मुखिया के तौर पर संदीप दीक्षित ने 15 साल तक दिल्ली की सत्ता संभाली। 2013 में यह सत्ता खत्म हो गई जब कांग्रेस सिर्फ आठ सीटों पर सिमट गई और दीक्षित खुद केजरीवाल से हार गईं। 2015 में पार्टी को बड़ा झटका लगा जब वह अपना खाता खोलने में असफल रही और इसका वोट शेयर 10% से भी कम हो गया, जो 2008 में प्राप्त 40.31% और 2013 में प्राप्त 24.55% से काफी कम था।
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2020 में सिमट गई थी कांग्रेस
पिछले विधानसभा चुनाव, यानी 2020 में तो पार्टी और भी पीछे चली गई थी, उसे मात्र 4.26% वोट मिले थे, जबकि उसके 66 में से 63 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी। पार्टी के 15 साल के शासन का श्रेय जहां दीक्षित को जाता है, वहीं उस समय दिल्ली में कांग्रेस का संगठनात्मक ढांचा भी मजबूत था, जिसमें लगभग सभी समुदायों के नेता शामिल थे।
कांग्रेस का दिल्ली में इसका संगठन बिखर चुका है और वोट बैंक भी नहीं है। पार्टी के नेता मानते हैं कि मुस्लिम भी शिकायतों के बावजूद आप को तरजीह देंगे क्योंकि समुदाय का मानना है कि केवल केजरीवाल की अगुआई वाली पार्टी ही भाजपा का मुकाबला करने की स्थिति में है। कांग्रेस भी इस बात को लेकर असमंजस में है कि दिल्ली में उसका प्रतिद्वंद्वी कौन है।
आप ने सभी 70 सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है और कांग्रेस के साथ गठबंधन से इनकार कर दिया है, लेकिन कहा जा रहा है कि पार्टी का आलाकमान केजरीवाल को व्यक्तिगत रूप से निशाना बनाने के खिलाफ है। माकन द्वारा हाल ही में केजरीवाल को “देशद्रोही” कहने के लिए घोषित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को अंतिम समय में रद्द कर दिया गया, कांग्रेस के सूत्रों ने बताया कि नेतृत्व आप सुप्रीमो के खिलाफ इस तरह के हमले से नाराज है। दिल्ली चुनाव से जुड़ी अन्य खबरें पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें।