फरवरी, 2020 में दिल्ली में हुए दंगों का सच जानने के लिए दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग ने एक फैक्ट फाइंडिंग कमेटी बनाई थी। इसकी रिपोर्ट जारी हुई है। 10 सदस्यों वाली इस कमेटी की सदारत एडवोकेट एमआर श्मशाद ने की। हमने उनसे जाना कि रिपोर्ट कैसे और किस आधार पर बनी?
रिपोर्ट में बीजेपी नेताओं के भड़काऊ भाषणों को दंगे भड़कने की एक वजह बताया गया। कमेटी ने जून के आखिरी हफ्ते में यह रिपोर्ट आयोग को सौंप दी थी। आयोग ने इस हफ्ते इसे जारी किया तो मीडिया में रिपोर्ट में शामिल बातों को कवर भी किया गया। पर यह रिपोर्ट कैसे बनी, कितने दिन काम हुआ, कैसे काम हुआ, कितने लोगों के बयान दर्ज हुए, किन लोगों के बयान दर्ज हुए?…आदि सवालों के जवाब जनसत्ता.कॉम ने कमेटी के चेयरमैन श्मशाद से जाने।
श्मशाद का कहना है कि लॉकडाउन के चलते आवाजाही बंद नहीं होती और दिल्ली पुलिस सहयोग करती तो रिपोर्ट की शक्ल कुछ और हो सकती थी। रिपोर्ट मुख्य रूप से पीड़ितों, पत्रकारों के बयानों पर आधारित है। बयान देने वाले ज्यादातर पीड़ित एक ही पक्ष के हैं। फिर, सरकारी जानकारी के विश्लेषण के आधार पर कुछ बातें भी रिपोर्ट में शामिल की गई हैं।
इस रिपोर्ट को बीजेपी ने एक-तरफा कह कर खारिज कर दिया है और पूछा है कि क्या ताहिर हुसैन का नाम इस रिपोर्ट में है? (पढ़ें, रिपोर्ट में क्या है?) इसके जवाब में श्मशाद का कहना है कि ताहिर के मामले में चार्जशीट दायर हो चुकी है। हमने रिपोर्ट में उन्हीं बातों पर ध्यान दिया है, जिन पर कार्रवाई की जरूरत है, लेकिन हुई नहीं है।
रिपोर्ट पर पुलिस और अन्य लोगों की प्रतिक्रियाओं से आप संतुष्ट हैं? श्मशाद ने इस पर जवाब दिया- पुलिस अपना काम अपने हिसाब से कर रही है। मैं नहीं कह रहा कि पुलिस ने सब गलत किया। मैं ये कह रहा कि पुलिस ने क्या नहीं किया। हमने पुलिस से सूचनाएं मांगी, पर उन्होंने नहीं दीं। अगर उन्होंने जानकारी दे दी होती, तो शायद तस्वीर कुछ और होती।
बकौल श्मशाद, “दंगों में जाहिर है कि मुस्लिमों की संपत्ति का अधिक नुकसान हुआ, जबकि जानें दोनों पक्ष की गईं। जब ये चार्जशीट फाइल करने की बात आई, तो चार्जशीट के एक सेट को प्राथमिकता दी गई और इससे एक नैरेटिव सेट हुआ कि इसमें साजिश रचने वाले मुस्लिम थे। यही परसेप्शन बना दिया गया। न्यूट्रल चीजें इसमें सामने नहीं आई हैं।”