2020 के दिल्ली दंगों की जांच को लेकर पुलिस की फजीहत खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। आगजनी और बलवे के एक केस में दिल्ली की कोर्ट ने आरोपी को रिहा करने का आदेश देते हुए पुलिस को तीखी फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कि केस सॉल्व करने के लिए पुलिस ने मुस्लिम शख्स को नाहक ही फंसा दिया। केस कमजोर न पड़े इसके लिए शिकायतकर्ता से झूठी गवाही दिलवाई और हवलदार को गवाह बनाकर खड़ा कर दिया।

पुलिस की थ्योरी के मुताबिक दिल्ली दंगों के दौरान एक शख्स मो. राशिद की दुकान को भीड़ ने फूंक दिया था। पुलिस ने केस दर्ज कर लिया लेकिन आरोपी का पता नहीं लगा सकी। बाद में पुलिस ने कहानी गढ़ी कि एक दिन खजूरी खास थाने में मो. राशिद अपने केस को लेकर आया था। उसी दौरान उसने थाने में मौजूद शख्स नूर मोहम्मद को देखा तो कहा कि ये शख्स भी उस भीड़ का हिस्सा था जिसने उसकी दुकान को फूंका। नूर मोहम्मद किसी और केस के सिलसिले में खजूरी खास थाने में आया था। 2 अप्रैल 2020 को मो. राशिद का बयान दर्ज करके आरोपी को अरेस्ट किया गया।

थाने में आरोपी को पहचाना पर कोर्ट में मुकर गया शिकायतकर्ता

लेकिन कड़कड़डूमा कोर्ट में ट्रायल के दौरान मो. राशिद अपने बयान से मुकर गया। उसका कहना था कि न तो उसने थाने में नूर मोहम्मद की आरोपी के तौर पर पहचान की थी और न ही पुलिस ने उसे उसके सामने अरेस्ट किया था। लेकिन पुलिस ने हिम्मत नहीं हारी और अपने हवलदार को ही इस मामले में अहम गवाह के तौर पर पेश कर दिया। पुलिस रिपोर्ट के मुताबिक हवलदार ने खुद नूर मोहम्मद को दंगाईयों की भीड़ में देखा था।

हवलदार भी क्रास एग्जामिनेशन के दौरान बयान पर नहीं रहा कायम

हालांकि क्रास एग्जामिनेशन के दौरान हवलदार ने माना कि उसने घटना के बारे में न तो IO को कभी सूचना दी थी और न ही अपने अफसरों को ऐसा कहा था कि वो भीड़ में शामिल लोगों की पहचान कर सकता है। चीफ मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट शिरीष अग्रवाल ने अपने आदेश में कहा कि ऐसा लगता है कि थाना प्रभारी ने केस सुलझाने की नीयत से अपने ही हवलदार को मामले में गवाह बना दिया। अफसर की बात को हवलदार टाल नहीं सका।

कोर्ट ने कहा कि आरोपी की शिनाख्त परेड भी पुलिस ने नहीं कराई, क्योंकि उसे पता था कि ये केस झूठा है। पुलिस को पता था कि आरोपी को गुनाहगार साबित करने के लिए बेसिरपैर की थ्योरी गढ़ी गई और झूठे गवाह खड़े कर दिये गए। क्रास एग्जामिनेशन में सारे भाग खड़े हुए।