Delhi High Court: दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में महाभारत में द्रौपदी के साथ किए गए व्यवहार का हवाला देते हुए महिलाओं को संपत्ति की तरह व्यवहार करने के खिलाफ चेतावनी दी है। हाई कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 497 के अब निरस्त प्रावधान के तहत व्यभिचार के आरोपों से जुड़े 2010 के एक मामले का फैसला सुनाया।
जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने 17 अप्रैल को दिए गए फैसले में कहा कि महाभारत में द्रौपदी की दुर्दशा और उसके बाद के परिणामों के बावजूद, हमारे समाज में महिलाओं के प्रति द्वेषपूर्ण और पितृसत्तात्मक मानसिकता अब भी व्याप्त है कि महिलाएं संपत्ति हैं।
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, हाई कोर्ट ने कहा, ‘महिला को पति की संपत्ति माना जाना और इसके विनाशकारी परिणाम महाभारत में अच्छी तरह से वर्णित हैं, जिसमें द्रौपदी को उसके अपने पति युधिष्ठिर द्वारा जुए के खेल में दांव पर लगा दिया गया था, जहां अन्य चार भाई मूक दर्शक बने हुए थे और द्रौपदी के पास अपनी गरिमा के लिए विरोध करने के लिए कोई आवाज नहीं थी। जैसा कि हुआ, वह जुए के खेल में हार गई और इसके बाद महाभारत का युद्ध हुआ, जिसमें बड़ी संख्या में लोगों की जान चली गई और परिवार के कई सदस्य मारे गए।’
कोर्ट ने आगे कहा कि एक महिला को एक संपत्ति के रूप में मानने की मूर्खता के परिणाम को प्रदर्शित करने के लिए ऐसे उदाहरण होने के बावजूद, हमारे समाज की स्त्री-द्वेषी मानसिकता को यह तभी समझ में आया जब सुप्रीम कोर्ट ने जोसेफ शाइन (सुप्रा) के मामले में धारा 497 आईपीसी को असंवैधानिक घोषित किया।’
बता दें, आईपीसी की धारा 497 के तहत व्यभिचार को अपराध माना जाता था, लेकिन इसके लिए केवल उस पुरुष को ही जिम्मेदार ठहराया जा सकता था, जिसके साथ विवाहित महिला का संबंध था। इसके अलावा, अगर महिला का पति ऐसे संबंध के लिए अपनी सहमति देता है, तो कोई अपराध नहीं बनता।
2018 में सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 497 को असंवैधानिक घोषित कर दिया था, क्योंकि कोर्ट ने कहा था कि यह इस धारणा पर आधारित है कि महिलाएं संपत्ति की तरह हैं। हालांकि, दिल्ली हाई कोर्ट के समक्ष व्यभिचार का मामला 2010 का है।
यह मामला 1998 में शादी करने वाले एक जोड़े से जुड़ा है। 2010 में पति को पता चला कि उसकी पत्नी का किसी दूसरे आदमी के साथ अवैध संबंध है। उसे अपनी पत्नी के कॉल लॉग से पता चला कि वह रात के अजीबोगरीब समय में उस आदमी से बात करती थी। बाद में उसे पता चला कि पत्नी लखनऊ के एक होटल में उस आदमी के साथ रात भर रुकी थी।
सबसे पहले उसने अपनी पत्नी को कानूनी नोटिस भेजा और उसे व्यभिचार बंद करने के लिए कहा। उसके बाद, उसने उस व्यक्ति के खिलाफ व्यभिचार का आपराधिक मामला दर्ज करवाया, जिसके साथ उसकी पत्नी का विवाहेतर संबंध था।
ट्रायल कोर्ट ने व्यभिचारी को यह कहते हुए बरी कर दिया कि पत्नी और पति के बीच किसी भी तरह के यौन संबंध के सबूत नहीं मिले। इस फैसले को सेशन कोर्ट ने पलट दिया और उस व्यक्ति को आपराधिक मुकदमे का सामना करने के लिए बुलाया।
इसके बाद उस व्यक्ति ने दिल्ली हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और उसे जारी किए गए समन को रद्द करने का आग्रह किया। इस बीच, पत्नी ने 2016 में अपने पति से तलाक ले लिया।
हाई कोर्ट ने इस बात पर विचार किया कि क्या सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित 2018 का जोसेफ शाइन फैसला , जिसने आईपीसी की धारा 497 को असंवैधानिक करार दिया था, 2010 में दर्ज वर्तमान मामले पर पूर्वव्यापी रूप से लागू होगा।
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कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि 2018 का निर्णय पूर्वव्यापी रूप से लागू होगा। अदालत ने कहा कि इस पहलू पर मेजर जनरल एएस गौराया एवं अन्य बनाम एसएन ठाकुर 1986 एआईआर 1440 के फैसले में विचार किया गया है, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने माना था कि शीर्ष अदालत द्वारा कानून की घोषणा पूर्वव्यापी प्रभाव के साथ भी सभी लंबित कार्यवाहियों पर लागू होती है।
हाई कोर्ट ने कहा कि निचली अदालत ने सही कहा है कि केवल इसलिए यौन संबंध की धारणा नहीं बनाई जा सकती कि पत्नी लखनऊ के एक होटल में पुरुष के साथ एक ही कमरे में रात भर रुकी थी। इसलिए, न्यायालय ने सम्मन आदेश को रद्द कर दिया और आरोपी व्यक्ति को आपराधिक मामले से मुक्त कर दिया।
कोर्ट ने कहा कि धारा 497 का मुख्य बिंदु यह है कि वे व्यभिचार के कृत्य में लिप्त रहे होंगे, यानी उन्होंने यौन संबंध बनाए होंगे, जिसके लिए कोई मौखिक या दस्तावेजी सबूत नहीं है, लेकिन यह एक अनुमान पर आधारित है, जिसे याचिकाकर्ता को बुलाने के लिए प्रथम दृष्टया नहीं माना जा सकता। इसलिए, धारा 497 आईपीसी के आवश्यक तत्व नहीं बनाए गए।
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