इन दिनों जब मानवता सिसक रही है, देश में तमाम नेता दावों की खेती करने में जुटे हैं। हमने यह किया…हमने वो किया। एक जन को कुछ नहीं मिलता तो वे ऑक्सीजन के टैंकरों की फोटो ट्वीट करते रहते हैं कि प्राणवायु पहुंचने ही वाली है। लेकिन, हकीकत यह है कि सत्ताधारियों ने इन दुर्दिनों को न्योता देकर बुलाया है। आखिर कोविड की पहली लहर के दौरान खड़ा किया गया चिकित्सा का ढांचा ढहाने की क्या ज़रूरत थी? जब हर पढ़ा-लिखा आदमी जानता था कि महामारियों की दूसरी और यहां तक कि तीसरी-चौथी लहर भी आती है तो हमने क्यों माना कि सब कुछ चंगा हो गया है। हालत यह है कि कल तक रांची के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स में हाइ रेज़ल्यूशन सीटी स्कैन नहीं था। अदालत को आदेश करना पड़ा।
यूपीः कोविड की सबसे अधिक मार खाने वाले राज्यों में एक इस प्रदेश ने पहली लहर में 503 कोविड अस्पताल खड़े किए थे, जिनमें डेढ़ लाख बेड थे। लेकिन फरवरी 2021 में सिर्फ 83 अस्पताल ही ऐसे बचे थे जहां कोविड का इलाज हो रहा
था। आज इस प्रदेश में हड़बोंग मचा है।
दिल्लीः दिल्ली को ज्यादा सचेत होना चाहिए था क्योंकि वहां कोरोना की पहली के बाद दूसरी लहर ने भी काफी परेशान किया था। लेकिन नहीं। वहां चार टेम्परेरी अस्पताल खड़े किए गए थे। इनमें सबसे बड़ा था छतरपुर वाला। आइटीबीपी संचालित इस अस्पताल में दस हजार बेड थे। इनमें हजार थे आक्सीजन वाले। यह अस्पताल और धौला कुआं आदि में खुले चार अस्पताल खत्म कर दिए गए। अब इन्हें फिर से खड़ा किया जा रहा है।
बिहारः यहां डॉक्टरों की भारी किल्लत है। पांच हजार पद खाली पड़े हैं। ये पद साल भर से चल रहे कोरोना काल में भी नहीं भरे जा सके। कोविड की पहली लहर में मांग की गई थी कि हर जिले को कम से कम दस वेंटीलेटर उपलब्ध कराए जाएं। कुछ नहीं हो सका। आज बिहार के सिर्फ दस जिलों अस्पतालों में वेंटीलेटर हैं। हर एक में पांच। यानी पूरे सूबे में सिर्फ पचास। इस राज्य के पास अपना ऑक्सीजन प्लांट भी नहीं है। झारखंड से मांग कर काम चलाता रहता है।
कर्नाटकः देश में सबसे तेजी से विकसित होते इस प्रदेश में कोविड पूरे रौद्र रूप में है। संक्रमण के लिहाज से इसका दूसरा नम्बर है। पढ़े-लिखे-संपन्न लोगों के इस प्रदेश का आलम यह है कि पहली लहर के बाद यहां केवल 18 आइसीयू वेंटीलेटर युक्त बेड बढ़ाए गए हैं।
पुणेः देश में सर्वाधिक पीड़ित शहरों में एक इस महानगर में मस्ती का यह आलम रहा कि 800 बेड वाला अस्पताल खत्म कर दिया। मार्च के बाद उसे फिर शुरू किया गया है।
दरअसल हुआ यह कि पहली लहर के बाद लगभग हर राज्य में फटाफट बना कर खड़ा किया गया स्वास्थ्य-सेवा का ढांचा फटाफट ढहा भी दिया गया। पंडाल खड़े कर के बनाए गए अस्पताल खत्म कर दिए गए। संविदा पर रखे गए कर्मचारियों की भी छुट्टी कर दी गई। यह भी भूल गए कि महामारी के दौरान ऑक्सीजन और वेंटीलेटरों की कितनी मारामारी रही थी। कोरोना ने जो मोहलत दी थी, उसमें ऑक्सीजन का बंदोबस्त तो किया ही जा सकता था! एम्स दिल्ली के एक सीनियर डॉक्टर ने कहा कि आज भी पैनिक सिर्फ दो चीज़ों के लिए है। एक बेड और दूसरी चीज ऑक्सीजन। खाली सिलिंडर धूल फांकते रहे थे, उन दिनों कोविड अपनी ताकत बढ़ाते हुए नए-नए रूप धर रहा था। एक्सपर्ट कोविड का छलावा जानते थे।