Rahat Indori News: जाने-माने उर्दू शायर राहत इंदौरी नहीं रहे। मंगलवार को उन्हें दो बार दिल का दौरा पड़ा, जिसके बाद उनका देहांत हो गया। शाम पांच बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। 70 वर्षीय उर्दू शायर COVID-19 से संक्रमित थे और अस्पताल में थे। जिलाधिकारी मनीष सिंह ने “पीटीआई-भाषा” को बताया, “कोविड-19 से संक्रमित इंदौरी का अरबिंदो इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (सैम्स) में इलाज के दौरान निधन हो गया।”
गंभीर बीमारियों से ग्रसित थे इंदौरीः उन्होंने बताया कि इंदौरी हृदय रोग, किडनी रोग और मधुमेह सरीखी पुरानी बीमारियों से पहले से ही पीड़ित थे। सैम्स के छाती रोग विभाग के प्रमुख डॉ. रवि डोसी ने बताया, “इंदौरी के दोनों फेफड़ों में निमोनिया था और उन्हें गंभीर हालत में अस्पताल लाया गया था।” उन्होंने बताया, “सांस लेने में तकलीफ के चलते उन्हें आईसीयू में रखा गया था और ऑक्सीजन दी जा रही थी। लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद हम उनकी जान नहीं बचा सके।”
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कोरोना के कारण 4 माह से थे घर परः इससे पहले, इंदौरी ने मंगलवार सुबह खुद ट्वीट कर अपने संक्रमित होने की जानकारी दी थी। इंदौरी ने अपने ट्वीट में यह भी कहा था, “दुआ कीजिये (मैं) जल्द से जल्द इस बीमारी को हरा दूं।” इंदौरी के बेटे और युवा शायर सतलज राहत ने पिता की मौत से पहले मंगलवार सुबह “पीटीआई-भाषा” को बताया था, “कोविड-19 के प्रकोप के कारण मेरे पिता पिछले साढ़े चार महीनों से घर में ही थे। वह केवल अपनी नियमित स्वास्थ्य जांच के लिये घर से बाहर निकल रहे थे।”
राहत साहब का Cardiac Arrest की वजह से आज शाम 05:00 बजे इंतेक़ाल हो गया है…..
उनकी मग़फ़िरत के लिए दुआ कीजिये….
— Dr. Rahat Indori (@rahatindori) August 11, 2020
5 दिनों से नासाज़ थी तबीयतः उन्होंने बताया कि इंदौरी को पिछले पांच दिन से बेचैनी महसूस हो रही थी और डॉक्टरों की सलाह पर जब उनके फेफड़ों का एक्स-रे कराया गया, तो इनमें निमोनिया की पुष्टि हुई थी। बाद में जांच में वह कोरोना वायरस से संक्रमित पाये गये थे।
फिल्मों के लिए लिख चुके थे गीतः बता दें कि इंदौरी का जन्म मध्य प्रदेश के इंदौर में एक जनवरी 1950 को हुआ था। शायरी की दुनिया में कदम रखने से पहले, वह एक चित्रकार और उर्दू के प्रोफेसर थे। उन्होंने हिन्दी फिल्मों के लिये गीत भी लिखे थे और दुनिया भर के मंचों पर काव्य पाठ किया था।
अवाम के दिल का हाल, उसी की जुंबा में करते थे बयानः इंदौरी साहब की खास बात थी कि वह लोगों के जज्बातों और ख्यालों को शायरी में गढ़ कर पढ़ देते थे। क्या दिल्ली, क्या इंदौर और क्या लखनऊ…जहां जाते बस छा जाते। उनके शेर-ओ-शायरी की ही बात होती। (भाषा इनपुट्स के साथ)
ये रहे इंदौरी साहब के कुछ शेरः
फिर वही मीर से अब तक के सदाओं का तिलिस्म
हैफ़ राहत कि तुझे कुछ तो नया लिखना था
अभी तो कोई तरक़्की नहीं कर सके हम लोग
वही किराए का टूटा हुआ मकां है मिया
अब के जो फैसला होगा वह यहीं पे होगा
हमसे अब दूसरी हिजरत नहीं होने वाली
मेरी ख़्वाहिश है कि आंगन में न दीवार उठे
मेरे भाई मेरे हिस्से की ज़मी तू रख ले
बुलाती है मगर जाने का नईं
वो दुनिया है उधर जाने का नईं
“मैं मर जाऊं तो मेरी अलग पहचान लिख देना
लहू से मेरी पेशानी पे हिन्दुस्तान लिख देना।
शाख़ों से टूट जाएँ, वो पत्ते नहीं हैं हम
आँधी से कोई कह दे कि औक़ात में रहे”
“आँख में पानी रखो होंठों पे चिंगारी रखो
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो
उस आदमी को बस इक धुन सवार रहती है
बहुत हसीन है दुनिया इसे ख़राब करूं
बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने पर
जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियां उड़ जाएं”
“किसने दस्तक दी, दिल पे, ये कौन है
आप तो अन्दर हैं, बाहर कौन है
ये हादसा तो किसी दिन गुजरने वाला था
मैं बच भी जाता तो एक रोज मरने वाला था
मेरा नसीब, मेरे हाथ कट गए वरना
मैं तेरी माँग में सिन्दूर भरने वाला था”