यूपी में चुनाव आते ही फिर हिंदू-मुसलमान के सुर सुनाई पड़ने लगे हैं। सभी राजनीतिक दलों पर तुष्टिकरण के आरोप लगने लगे। अब्बा जान-चचा जान की बातें होने लगी हैं। इसको लेकर सभी मंचों पर भी चर्चा शुरू हो गई है। टीवी चैनलों के डिबेट से लेकर बड़े कॉनक्लेव में भी इस पर बहस शुरू हो गई है। हालांकि सभी दल इसके लिए खुद को जिम्मेदार मानने से बच रहे हैं। हर कोई अपने को साफ-सुथरा बताते हुए दूसरे पर तोहमत मढ़ रहा है।
टीवी चैनल न्यूज 24 के मंथन कार्यक्रम में एंकर संदीप चौधरी के साथ बातचीत के दौरान बहुजन समाज पार्टी के नेता एमएच खान ने कहा, “हम बजरंग बली को भी मानते हैं और अली को भी मानते हैं। हम हिंदू और मुसलमान को लेकर कोई भेदभाव नहीं करते हैं। यह भाजपा करती है।” कहा कि योगी जी की भाषा भेदभावपूर्ण है। वह कहते हैं कि “बजरंग बली हमारे, अली तुम्हारे, यह कौन सी भाषा है।”
बोले कि योगी जी ने कहा था कि “हनुमान जी दलित थे, हनुमान जी आदिवासी थे, अरे जब हनुमान जी दलित और आदिवासी थे, तो दे दीजिए सभी दलितों और आदिवासियों को सभी मंदिरों की जिम्मेदारी। वे पूजा पाठ करेंगे। क्यों आप कब्जा किए हुए हैं।” भाजपा के नेता राकेश त्रिपाठी ने कहा, “भाजपा में सबको साथ लेकर चलने की परंपरा है। दूसरे दलों की सरकारों में हिंदू और मुसलमान को लेकर ध्रूवीकरण और तुष्टिकरण किया जाता है।”
कहा कि “समाजवादी पार्टी ने एमवाई कहकर एक खास जाति और वर्ग को बढ़ावा दिया। बसपा सुप्रीमो मायावती ने सहारनपुर की एक सभा में सभी मुसलमानों से एकजुट होकर भाजपा को हराने का आह्वान किया था। क्या यह झूठ है। सपा सरकार में खाद्यान्न घोटाला हुआ था, क्या यह झूठ है?”
समाजवादी पार्टी के नेता जावेद अली ने कहा कि “हमारी पार्टी ने कभी भी एमवाई शब्द का नाम नहीं लिया। उनके किसी भी घोषणा पत्र में इस शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है।” कहा कि “अभी हाल ही में अखिलेश यादव जी ने जरूर एमवाई शब्द बोला था, लेकिन उनका मतलब एम से महिला और वाई से यूथ था।” कहा कि “मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पिछले साढ़े चार साल में कोई विकास कार्य नहीं किया तो वे अब बौखलाए हुए है। उनकी मन:स्थिति को समझ सकते हैं।”