महिला मतदाता, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का साथ, स्थानीय चेहरे और मुद्दे, जमीनी स्तर पर सक्रिय समर्पित कार्यकर्ता – महाराष्ट्र में भाजपा के लिए ये सभी ब्रह्मास्त्र साबित हुए और लोकसभा चुनाव में पिछड़ जाने के बावजूद भाजपा ने न सिर्फ अपनी खोई जमीन हासिल कर ली। बल्कि, विपक्षी धड़े को अच्छा-खासा नुकसान पहुंचाया। भाजपा नेतृत्व ने उन 105 सीटों पर हर समीकरण साध लिए, जहां-जहां से लोकसभा चुनाव में विपक्षी दलों को बढ़त मिली थी। भाजपा के एक नेता ने महाराष्ट्र में संघ के साथ समन्वय को ‘अनुकरणीय’ बताया, दूसरे ने महिला योजनाओं और वित्तीय सहायता का हवाला देते हुए कहा कि इससे पार्टी को लाभ हुआ, जबकि कांग्रेस और उनके सहयोगी दल लोकसभा में मिली बढ़त को आगे बढ़ाने के लिए कुछ भी करने में विफल रहे।

जमीनी स्तर पर मदद के लिए आरएसएस की ओर मजबूती से किया रुख

भाजपा ने जमीनी स्तर पर अपने विशाल नेटवर्क से मदद के लिए आरएसएस की ओर मजबूती से रुख किया, जिससे लोकसभा चुनावों में दोनों के बीच का अंतर कम हो गया। आरएसएस ने महाराष्ट्र में जमीनी स्तर पर प्रचार की कमान संभाली, और भाजपा ने पार्टी के खिलाफ देखी जा रही मराठा विरोधी भावना पर काबू पाने के लिए विभिन्न वर्गों को शामिल किया। आरएसएस की मदद के अलावा, पार्टी नेताओं का मानना है कि महिला मतदाताओं और स्थानीय नेतृत्व पर ध्यान केंद्रित करना महाराष्ट्र के प्रदर्शन का बड़ा कारण है। अब तक भाजपा के अभियान मोदी, उनकी लोकप्रियता और शासन रिकार्ड के इर्द-गिर्द ही घूमते रहे। हरियाणा की 90 सीटों के लिए विधानसभा चुनावों के दौरान मोदी ने सिर्फ चार रैलियां कीं, जबकि महाराष्ट्र (288 सीटों के लिए) में उन्होंने एक दर्जन और झारखंड की 81 सीटों के लिए छह रैलियां कीं।

महाराष्ट्र में इस साल के बजट में माझी लड़की बहन योजना शुरू की गई थी

अतीत की तरह महाराष्ट्र में भी भाजपा ने अपनी जीत का श्रेय ‘महिलाओं के मूक समर्थन’ को दिया है। महाराष्ट्र में इस साल के बजट में माझी लड़की बहन योजना शुरू की गई थी। चुनावी वादा किया गया था कि अगर गठबंधन सत्ता में वापस आता है तो नकद राशि दोगुनी कर दी जाएगी।

दूसरी ओर, कांग्रेस और राहुल गांधी लोकसभा में विपक्ष की बढ़त को आगे बढ़ाने के लायक आश्वस्त करने वाला कोई भी संदेश दे पाने में विफल रहे। भाजपा ने आरएसएस के साथ मतभेदों को जिस प्रकार से सुलझाया, उससे मतदाताओं का एक वर्ग उत्साहित हो गया। भाजपा ने अपने कट्टर हिंदुत्व को आगे बढ़ाया, जिसे ‘एक हैं तो सुरक्षित हैं’ और ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ जैसे नारों से दर्शाया गया। आरएसएस से जुड़े सभी 35 संगठनों ने भाजपा और उसके गठबंधन सहयोगियों के लिए सक्रिय रूप से प्रचार किया।

संघ के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘हमने अपने कार्यकर्ताओं को घर-घर जाकर अभियान चलाने के लिए तैनात करके चुनावों को गंभीरता से लिया।’ लोकसभा चुनाव के बाद, भाजपा ने युद्ध स्तर पर खामियों को पहचानने और उन्हें दूर करने के लिए काम करना शुरू कर दिया। मध्य प्रदेश से सीख लेते हुए, महायुति सरकार ने लोकप्रिय फ्लैगशिप योजना माझी लाडकी बहिन योजना लागू की।

इस योजना के तहत 18 से 65 वर्ष की आयु वर्ग की महिलाओं को 1,500 रुपये मासिक भत्ता दिया गया (सत्ता में वापस आने के बाद इसे बढ़ाकर 2,100 रुपये करने का वादा किया गया)। पात्र लाभार्थियों की अनुमानित संख्या 2.25 करोड़ महिलाएं या कुल महिलाओं की संख्या का 55% थी। इसकी शुरुआत के बाद से चार महीनों में, पात्र महिला लाभार्थियों को उनके बैंक खातों में 7,500 रुपये मिले हैं। 52 लाख नए मतदाताओं सहित महिला मतदाताओं में छह प्रतिशत की वृद्धि ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

महाराष्ट्र में मराठा आंदोलन से ओबीसी का ध्रुवीकरण होने की आशंका थी और भाजपा ने एक विशाल आउटरीच योजना के माध्यम से विखंडित 353 समुदायों को एकजुट करने के मिशन पर काम शुरू किया। ओबीसी का सूक्ष्म प्रबंधन एक महत्त्वपूर्ण कारक था। 38% आबादी के साथ, ओबीसी राज्य की 288 सीटों में से 175 पर चुनावी नतीजे तय करने में एक प्रमुख कारक है। कांग्रेस के आरक्षण और किसान वाले मुद्दे पर फिलहाल मतदाताओं ने नकार दिया है।

क्या रहे सीटवार समीकरण

लोकसभा चुनाव में भाजपा ने नौ सीटें जीतीं, एकनाथ शिंदे की अगुआई वाली शिवसेना को सात और अजित पवार की अगुआई वाली एनसीपी को एक सीट मिली, यानी कुल 125 विधानसभा सीटें, जो सदन में बहुमत के 145 के आंकड़े से काफी कम हैं। तब एमवीए ने 30 लोकसभा सीटें जीतीं – 13 कांग्रेस ने, नौ उद्धव ठाकरे की अगुआई वाली शिवसेना ने और आठ शरद पवार की अगुआई वाली एनसीपी (एसपी) ने – जिससे गठबंधन 153 विधानसभा क्षेत्रों में आगे हो गया था।

लोकसभा के ये रुझान विधानसभा चुनावों में नहीं दिखे। 149 सीटों पर चुनाव लड़कर 125 सीटें जीतने के साथ, भाजपा ने 2019 के विधानसभा के मुकाबले 105 सीटों पर सुधार किया और 2024 के लोकसभा विधानसभा क्षेत्र-स्तर पर 79 सीटों पर वापसी की। शिवसेना ने लोकसभा चुनावों में 40 विधानसभा क्षेत्रों से इस बार 55 विधानसभा सीटों पर सुधार किया, इसी तरह एनसीपी ने छह से 38 सीटों पर सुधार किया। लोकसभा चुनावों की तुलना में, महायुति ने इस बार 125 क्षेत्रों में से आठ को छोड़कर सभी को बरकरार रखा – एमवीए सात और एक निर्दलीय को जिताने में कामयाब रहा।

महायुति ने 105 सीटों पर कब्जा कर लिया, जो लोकसभा चुनाव में विपक्षी दलों ने जीती थीं। इनमें से 53 सीटों पर अकेले भाजपा ने कब्जा किया, जबकि 28 सीटों पर शिवसेना और 24 सीटों पर एनसीपी ने कब्जा किया।

इन बदलावों के विश्लेषण से स्पष्ट है कि भाजपा ने कांग्रेस से 26, शिवसेना (यूबीटी) से 15 और एनसीपी (एसपी) से 10 विधानसभा सीटें छीन लीं। जबकि एनसीपी ने एनसीपी (एसपी) से 13 सीटें छीनीं, इसने क्रमश: शिवसेना (यूबीटी) और कांग्रेस से छह और चार सीटें छीनीं। शिवसेना ने शिवसेना (यूबीटी) से 14, कांग्रेस से 10 और एनसीपी (एसपी) से दो सीटें छीनीं। महायुति ने पांच और सीटें छीनीं, जिनमें एआईएमआईएम से एक और निर्दलीय से चार सीटें शामिल हैं।