भारतीय राजनीति में इन दिनों हलचल तेज है। केरल में त्रिशूर जीत से उत्साहित भाजपा कांग्रेस को घेर रही है, जबकि प्रशांत किशोर बिहार में भाजपा-जदयू पर वार करके सुर्खियों में हैं। मतदाता सूची को लेकर विपक्ष और सत्ताधारी दल आमने-सामने हैं। वहीं उत्तर प्रदेश में सहयोगी दल भाजपा से नाराजगी जता रहे हैं। दूसरी ओर, मायावती ने रक्षाबंधन के मौके पर नया संकेत देकर राजनीतिक गलियारों में चर्चा बढ़ा दी है।

त्रिशूर का शूल

कांग्रेस को केरल में पिछले लोकसभा चुनाव में त्रिशूर में भाजपा को मिली सफलता हजम नहीं हो रही है। दक्षिण का यह राज्य अमूमन वाम नीत मोर्चे और कांग्रेस नीत मोर्चे के बीच दो ध्रुवीय सियासत तक सीमित रहा पर 2024 में भाजपा खाता खोलने में कामयाब हो गई। राज्य में उसके वोट फीसद भी बढ़े। जाहिर सी बात है कि अब भाजपा की नजर अगले विधानसभा चुनाव पर टिकी है। उसकी रणनीति वाम मोर्चे के साथ-साथ कांग्रेस को ज्यादा कमजोर करना है। भाजपा ने केरल से जीते सुरेश गोपी को केंद्र सरकार में मंत्री बना रखा है। कांग्रेस ने पिछले दिनों गोपी के लापता होने की खबर को खूब हवा दी। गुमशुदा कह उनका पता बताने वालों को इनाम देने तक की बात कही। आरोप लगाया कि वे छह महीने से अपने संसदीय क्षेत्र में नहीं गए। भाजपा ने भी पलटवार करने में देर नहीं लगाई। नहले पर दहला जड़ने के अंदाज में फरमाया कि प्रियंका गांधी ने वायनाड से लोकसभा उपचुनाव जीतने के बाद मुड़कर वहां के लोगों की तरफ नहीं देखा। तीन महीने से वायनाड नहीं गईं, प्राकृतिक आपदा के बावजूद। केरल में कांग्रेस और वाम मोर्चा का रिश्ता भी सियासी दुश्मनों की तरह रहा है। पिछले दिनों राहुल गांधी ने केरल की वाम नीत सरकार पर दक्षिणपंथी संगठन को फायदा पहुंचाने का आरोप लगाया था जिसका मुख्यमंत्री पी विजयन ने करारा जवाब दिया था।

पीके पैंतरा

कभी प्रशांत किशोर को बिहार के महागठबंधन के नेताओं ने भाजपा की ‘बी’ टीम बताया था। अब वही किशोर हाथ धोकर भाजपा के पीछे पड़ गए हैं। पिछले साल दो अक्तूबर को उन्होंने अपनी सियासी पारी की शुरुआत जन सुराज पार्टी के गठन से की थी। अब जद (एकी) और राजद के नेता भी उनके साथ जुड़ रहे हैं। कभी नीतीश कुमार के बेहद करीबी रहे आरसीपी सिंह अब जन सुराज पार्टी में हैं। इसी तरह जद (एकी) के राज्यसभा सदस्य रहे विदेश सेवा के पूर्व अफसर पवन वर्मा भी पीके के साथ हैं। अब पीके ने बिहार भाजपा अध्यक्ष दिलीप जायसवाल और बिहार के भाजपा नेता मंगल पांडे पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए हैं। जैसे-जैसे विधान सभा चुनाव नजदीक आ रहा है, पीके ने विपक्षी गठबंधन की जगह सत्तारूढ़ जद (एकी) व भाजपा पर हमले तेज कर दिए हैं। तभी तो अब हर कोई उन्हें गंभीरता से ले रहा है।

‘पिक्चर’ अभी बाकी है?

तमाम कोशिशों के बाद भी विपक्ष बिहार मतदाता सूची के मामले में पीछे हटता नजर नहीं आ रहा है। पहले संसद में सरकार पर निशाना और अब सोशल मीडिया में सामने आ रहे छोटे-छोटे वीडियो विपक्ष के दावों के आधार पर भारतीय जनता पार्टी व निर्वाचन आयोग को कठघरे में खड़े करते नजर आ रहे हैं। इसमें उन पांच तरीकों को गिनाया जा रहा है, जिनका दावा अब तक कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी सार्वजनिक मंचों पर करते नजर आए हैं। राहुल गांधी इस मामले में पहले ही कह चुके हैं कि ‘पिक्चर’ अभी बाकी है। इसका मतलब है कि विपक्ष के तरकश में और भी तीर हैं। आने वाले दिनों में बिहार को लेकर भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच तकरार बढ़ने के आसार हैं।

उग्र हुए अपने

उत्तर प्रदेश में भाजपा के सहयोगी दल अचानक उग्र हो गए हैं। वजह जगजाहिर है। एक तो सूबे में अगले साल पंचायत चुनाव होंगे, ऊपर से 2027 का विधानसभा चुनाव भी ज्यादा दूर नहीं है। अब तो माहौल ऐसा हो गया है कि एक चुनाव के खत्म होते ही, दूसरे चुनाव की तैयारी शुरू कर देते हैं। पिछले विधानसभा चुनाव के समय तब भाजपा के सामने एक दशक की सत्ता विरोधी हवा भी कुछ असर जरूर दिखाएगी। इन सहयोगी दलों में अनुप्रिया पटेल का अपना दल (एस) सबसे बड़ा है। उसके बाद ओमप्रकाश राजभर की सुभासपा है। रालोद है और निषाद पार्टी। इन दलों के फैसले हवा का रुख भांपकर होते हैं। मसलन, 2022 के चुनाव में राजभर समाजवादी पार्टी के साथ थे। उनकी पार्टी ने 19 सीट लड़ी और छह जीत ली। भाजपा को कई सीटों पर हरवाया। ये सारी पार्टियां मोटे तौर पर एक जाति विशेष पर आधारित हैं। अपना दल को कुर्मी बिरादरी की पार्टी माना जाता है तो सुभासपा का आधार राजभर हैं। निषाद पार्टी की ताकत मल्लाह हैं तो रालोद की जाट। सबका आधार ओबीसी हैं। चुनाव में ये सहयोगी दल भाजपा से ज्यादा सीट पाने के लिए अभी से पैंतरे दिखाने लगे हैं। अपना दल ने भाजपा के एक धड़े पर अपने खिलाफ साजिश का आरोप लगाया है तो निषाद पार्टी ने धमकी दी है कि निषाद अगर अनुसूचित जाति में शामिल नहीं किए गए तो भाजपा से नाता तोड़ लेगी। अभी तो भाजपा को अपनों के नखरे झेलने होंगे।

बहनजी की राखी

मायावती को अहसास हो गया है कि लगातार खिसक रही सियासी जमीन को बचाना है तो बदलना ही होगा। देश के सबसे बड़े सूबे की चार बार मुख्यमंत्री रह चुकीं मायावती पिछले दस साल से किसी भी सदन की सदस्य नहीं हैं। उनके अपने व्यवहार ने भी उनके करीबी नेताओं और समर्थकों को एक-एक कर उनसे दूरी बनाने में कम योगदान नहीं किया। लेकिन इस बार रक्षाबंधन पर खबर आई कि मायावती ने लखनऊ में अपनी पार्टी के नेताओं से राखी बंधवाई। उनका राखी का रिश्ता किसी दौर में भाजपा नेता लालजी टंडन के साथ था। उसके बाद भाजपा से रिश्ते तल्ख हो गए तो टंडन ने भी उनके घर राखी बंधवाना छोड़ दिया था। नेताओं को बसपा की तरफ से हिदायत थी कि बहिनजी से राखी बंधवाने का फोटो कहीं शेयर न करें। लेकिन बसपा के इकलौते विधायक उमा शंकर सिंह ने अपना फोटो सोशल मीडिया पर जारी कर दिया। जिसमें बहिनजी उन्हें राखी भी बांध रही हैं और माथे पर तिलक भी कर रही हैं। अभी तक मायावती अपने किसी भी नेता को अपने इतना करीब आने का अवसर नहीं देती थी। तभी तो इस बदलाव को लेकर आश्चर्य जताया जा रहा है।

(प्रस्तुति- मृणाल वल्लरी)