अक्टूबर 2022 से कांग्रेस पार्टी में 22 साल बाद अध्यक्ष पद के चुनाव हुए थे। इससे पहले बीजेपी लगातार कांग्रेस पर आरोप लगाती थी कि कांग्रेस पार्टी गांधी परिवार के इशारों पर एक कॉरपोरेट कंपनी की तरह चल रही है। कांग्रेस को लेकर बीजेपी का आरोप हमेशा यही रहा था कि पार्टी में गांधी परिवार के बाहर का अध्यक्ष नहीं हो सकता है लेकिन 2022 में सब पलट गया। चुनाव भी हुए और जीतकर कांग्रेस की अध्यक्षता मल्लिकार्जुन खड़गे ने संभाली। कांग्रेस को बीजेपी के इन आरोपों से मुक्ति तो मिला लेकिन अब अध्यक्ष पद को लेकर बीजेपी में एक बड़ा बदलाव हुआ है जिसमें पार्टी के अध्यक्ष और संसदीय बोर्ड को कुछ ज्यादा ही ताकत दे दी गई है। इसके चलते यह सवाल खड़े होने लगे हैं कि क्या बीजेपी कहीं कांग्रेस की राह पर तो नहीं चल पड़ी है।
दरअसल, दिल्ली के भारत मंडपम में हुए बीजेपी के दो दिवसीय राष्ट्रीय अधिवेशन में पार्टी ने संविधान में एक बड़ा बदलाव किया है। इसमें शीर्ष संगठनात्मक निकाय या संसदीय बोर्ड को आपात स्थिति में अपने अध्यक्ष से जुड़े फैसले लेने की अनुमति दी गई है। खास बात यह है कि इसमें अध्यक्ष के कार्यकाल और कार्यकाल के विस्तार से जुड़े फैसले लेने की शक्ति भी दे दी गई है। इस बदलाव का प्रस्ताव महासचिव सुनील बंसल ने दिया था जिसे सर्वसम्मति से स्वीकृति भी मिल गई है।
बीजेपी के संविधान में अचानक हुए बदलाव के चलते अब बीजेपी में अध्यक्ष बदलने के लिए किसी प्रकार के चुनाव की कोई आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी। आम तौर पर यह चुनाव संगठनात्मक चुनावों के माध्यम से ही किया जाता है जिसमें निर्वाचक द्वारा मंडल की अहम भूमिका होती है। इसमें राष्ट्रीय और प्रदेश परिषद के सदस्य शामिल होते हैं। बीजेपी के संविधान की बात करें तो निर्वाचक मंडल में से कोई भी बीस सदस्य राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव लड़ने वाले व्य्क्ति के नाम का संयुक्त प्रस्ताव कर सकते हैं। यह न्यूनतम 5 प्रदेशों से आना चाहिए जहां के राष्ट्रीय परिषद के चुनाव पूरे हो चुके हों।
अचानक क्यों बदला गया संविधान?
बीजेपी के संविधान में हुए बदलावों को लेकर सूत्रों का कहना है कि ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि विधानसभा या लोकसभा चुनावों के दौरान चुनाव कराना मुश्किल होता है। हालांकि इसको लेकर आधिकारिक तौर पर कोई कारण नहीं बताया गया है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि बीजेपी क्या धीरे-धीरे कांग्रेस की राह पर निकल पड़ी है। इसकी वजह यह है कि लंबे वक्त तक कांग्रेस में भी अध्यक्ष या अन्य किसी भी तरह के संगठन से जुड़े चुनाव नहीं हुए थे और सोनियां गांधी लंबे वक्त तक पार्टी की अध्यक्ष रही थीं।
लंबे वक्त तक अध्यक्ष रहीं सोनिया गांधी
कांग्रेस में मल्लिकार्जुन खड़गे चुनाव जीतकर अध्यक्ष बने थे लेकिन उनसे पहले लगभग दो दशकों तक कांग्रेस अध्यक्ष का पद गांधी परिवार की प्रमुख सोनिया गांधी के पास था। खास बात यह कि सोनिया गांधी वर्किंग कमेट के जरिए अध्यक्ष बनी थीं और चुनाव जीतकर अध्यक्ष बने सीताराम केसरी को पार्टी ने काफी अपमानित किया था। इसके बाद लगातार सोनिया गांधी अध्यक्ष बनती रहीं। 2004, 2009, 2014 में उनकी लीडरशिप में ही कांग्रेस चुनाव लड़ी थी। 2004, 2009 में मिली जीत के बाद 2014 में कांग्रेस बुरी तरह हारी थी। 2017 में पार्टी की कमान राहुल गांधी को सौंप दी गई थी लेकिन राहुल ने 2019 में बुरी हार के पद से इस्तीफा दे दिया था। इसके चलते जब पुनः मीटिंग हुई तो कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने एक बार फिर कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर सोनियां गांधी को ही चुना।
चुनावी प्रक्रिया दरकिनार
सोनिया गांधी के लंबे कार्यकाल को लेकर लगातार उन पर और पूरे गांधी परिवार पर बीजेपी ने खूब आरोप लगाए लेकिन अब संविधान बदलने के बाद बीजेपी को अध्य़क्ष चुनने की कोई प्रक्रिया ही नहीं अपनानी होगी। पार्टी का शीर्ष नेतृत्व ही तय कर लेगा कि अगला अध्यक्ष कौन होगा। भले ही बीजेपी में अध्यक्ष किसी एक परिवार से नहीं बन रहा है लेकिन अध्यक्ष हाई कमान के जरिए ही तय हो रहे हैं और अब संविधान बदलने के बाद शीर्ष नेतृत्व ज्यादा शक्तिशाली हो गया है। इसके चलते सवाल उठने लगे हैं कि क्या बीजेपी ने अध्यक्ष पद के लिए चुनावी प्रक्रिया को पूरी तरह दरकिनार कर दिया है।
बीजेपी में कांग्रेसी हाईकमान कल्चर?
पिछले दस साल के बीजेपी के कामकाज को देखें तो साफ नजर आता है कि बीजेपी के सारे बड़े फैसले दिल्ली में बड़े नेताओं की सहमति पर ही होते हैं। इसमें मुख्य भूमिका पीएम मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा और संगठन महासचिव बीएल संतोष की ही होती है। मध्य प्रदेश से लेकर राजस्थान, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, झारखंड हरियाणा गुजरात महाराष्ट्र सभी राज्यों मे मुख्यमंत्रियों का चुनाव हो या फिर शीर्ष नेताओं की नियुक्ति सबकुछ हाई कमान के इशारे पर ही होता है। इतना ही नहीं, राज्यों में मुख्यमंत्रियों की कैबिनेट लिस्ट भी दिल्ली में ही बनने की खबरें आती रहती हैं। यह बताता है कि पार्टी पूरी तरह से कांग्रेस के हाई कमान कल्चर को फॉलो कर रही है।
कांग्रेसी नेताओं को ज्यादा अहमियत
बीजेपी के कांग्रेस की राह पर निकलने का सवाल इसलिए भी पुख्ता होता जा रहा है क्योंकि पार्टी में कांग्रेसी नेताओं की एक बड़ी फौज आ गई है, जिन्हें अहम पद दिए गए हैं। हिमंत बिस्वा सरमा से लेकर माणिक साहा, ज्योतिरादित्य सिंधिया, नारायण राणे जितिन प्रसाद, आरपीएन सिंह, अशोक चव्हाण, हार्दिक पटेल, सुनील जाखड़, अश्वनी कुमार, और अशोक चौधरी जैसे कुछ प्रमुख नाम हैं, जिन्हें पार्टी और सरकार में अहम पद दिए गए हैं और राज्यसभा तक में भेजा गया है, जो यह दिखाता है कि कांग्रेसी नेताओं का कद धीरे-धीरे बढ़ रहा है जो कि बीजेपी के अंदर भी एक असंतोष फैला रहा है।