Narendra Modi-Nitish Kumar Political Relation: साल 2025 की आखिरी तिमाही में बिहार में विधानसभा चुनाव (Bihar Vidhan Sabha Chunav) होने हैं। इस बार सीएम नीतीश कुमार की कुर्सी दांव पर है जो कि 2005 के बाद से राज्य की सत्ता पर काबिज हैं। नीतीश ने सीएम पद की कुर्सी पहली बार बीजेपी के साथ संभाली थी और अभी भी उनके पास बीजेपी का ही समर्थन है लेकिन खास बात यह है कि अपने लगभग 20 साल के कार्यकाल के दौरान आरजेडी से भी हाथ मिलाया और मोदी से टकराव के चलते बीजेपी को झटका भी दिया था।

नीतीश कुमार ने कभी नरेंद्र मोदी की वजह से बीजेपी से अपना रिश्ता तोड़ा था और हाशिए पर जा चुके आरजेडी-कांग्रेस (RJD-Congress) से गठबंधन करके उन्हें सियासी जीवनदान देने में अहम भूमिका निभाई थी। एक दौर ऐसा भी आया आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव के भ्रष्टाचार के मामलों से लेकर सरकार चलाने में आने वाली दिक्कतों के चलते नीतीश ने नरेंद्र मोदी से हाथ मिला लिया। आज की स्थिति में नीतीश की पार्टी JDU को अपने चुनाव प्रचार के लिए पीएम नरेंद्र मोदी की सबसे ज्यादा आवश्यकता पड़ती है, लेकिन ये मोदी-नीतीश रिश्ते का इतिहास क्या है, चलिए आज समझते हैं।

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गुजरात दंगा बना मोदी नीतीश की दूरियों की वजह

साल 2000 में जब नीतीश कुमार ने बीजेपी की सहायता से बिहार के सीएम की कुर्सी संभाली थी तो साथ तो सात दिन में ही उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था, उनके पास उस समय बहुमत नहीं था। 2003 में समता पार्टी को तोड़कर, उसमें जनता दल के लोगों को मिलकर नीतीश कुमार ने जनता दल यूनाइडेट बना ली। उस दौर में दूसरे समाजवादी नेता गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की बुराई करते थे। दूसरी ओर मोदी की बुराई कर रहे होते थे और आदिपुर (कच्छ) में एक रेलवे प्रोजेक्ट का केन्द्रीय सरकार में मंत्री के रूप में उद्घाटन करते हुए नीतीश कुमार ने लीक से हटकर मोदी के काम की जमकर प्रशंसा की थी।

नीतीश कुमार उस वक्त नरेंद्र मोदी को राष्ट्रीय राजनीति में भूमिका निभाने तक कह रहे थे। 2004 के लोकसभा चुनाव के बाद केंद्र में जब यूपीए आया तो धीरे-धीरे नीतीश कुमार का रुख भी बदला। गुजरात दंगों को लेकर जिस तरह से लालू प्रसाद यादव से लेकर मुलायम सिंह यादव और कांग्रेस मोदी को घेरते थे, उससे नीतीश भी असहज होते थे। नीतीश के लिए हमेशा एक मुद्दा ये भी रहा कि गुजरात दंगे की पृष्ठभूमि साबरमती एक्सप्रेस में आग से जुड़ी थी, जबकि रेलमंत्री उस वक्त नीतीश कुमार ही थे।

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2005 में नीतीश बने थे बिहार के सीएम

नीतीश कुमार ने 2005 में लालू यादव के ‘जंगलराज’ को मुद्दा बनाते हुए एनडीए के साथ मिलकर बिहार में चुनाव लड़ा। इस बार नीतीश को पूर्ण बहुमत मिला और वे दूसरी बार बिहार के सीएम बने। 2005 के बाद नीतीश कुमार ने 2010 में भी एनडीए के सहयोग से नीतीश कुमार तीसरी बार सीएम की कुर्सी पर बैठे थे। एक खास बात यह रही थी कि 2005 से 2010 के बीच वैसे तो नीतीश और नरेंद्र मोदी का कोई टकराव नहीं रहा लेकिन 2010 में पहली बार टकराव तब सामने आया, जब मोदी बिहार नहीं आ सके।

नीतीश कुमार ने नरेंद्र मोदी के बिहार आने पर लगाई रोक?

बिहार में बीजेपी 2005 से 2013 तक सत्ता में रही लेकिन मोदी को बिहार में चुनावी कैंपेन के लिए नहीं आने दिया गया। कहा जाता है कि नीतीश कुमार के कारण ही बिहार में मोदी 2005 और 2010 के असेंबली इलेक्शन में चुनाव प्रचार करने नहीं आ पाए थे। मोदी को 2009 के आम चुनाव में भी बिहार नहीं आने दिया गया था।

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इस पर नीतीश कुमार ने 2014 में एक इंटरव्यू के दौरान कहा था, “मैंने बिहार में मोदी को कैंपेन करने से कभी नहीं रोका। यह बीजेपी का फैसला था कि मोदी बिहार में चुनाव प्रचार करने नहीं आएंगे। मोदी को रोकने का फैसला पूरी तरह से बीजेपी का था। हमारा रास्ता उनसे तब भी अलग था और आज भी है।’

नरेंद्र मोदी की पीएम उम्मीदवारी और बिहार में टूटा NDA

चर्चाएं तो ये भी होती हैं कि 2009 के लोकसभा चुनाव में ही बीजेपी और संघ नरेंद्र मोदी को गुजरात से दिल्ली लाकर पीएम फेस के तौर पर प्रमोट करना चाहते थे, लेकिन उस दौरान नीतीश कुमार ने वीटो किया था। कुछ ऐसा ही वीटो नीतीश कुमार ने 2013 में किया था। नीतीश कुमार ने 2013 में तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष से यह कहा था कि वे नहीं चाहते कि मोदी पीएम उम्मीदवार हों। वहीं जब बीजेपी ने आधिकारिक तौर पर नरेंद्र मोदी को 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए उम्मीदवार बना दिया था, तो नीतीश कुमार ने बीजेपी का साथ छोड़ दिया था।

2015 में RJD कांग्रेस से गठबंधन करके लड़ा चुनाव

2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने एलजेपी और छोटे दलों के साथ ताकत दिखाई थी और एनडीए को महज दो सीटें मिली थी। दूसरी ओर 2015 के विधानसभा चुनाव के दौरान नीतीश कुमार की जेडीयू विपक्षी गठबंधन आरजेडी कांग्रेस और लेफ्ट के साथ थी। बीजेपी ने पूरी ताकत झोंकी थी लेकिन सिक्का नीतीश की लीडरशिप वाले महागठबंधन का ही चला था। आरजेडी ने 80 सीटें जीतीं। जेडीयू को 71 और बीजेपी को 53 सीटें आई। कांग्रेस ने 27 सीटें जीतीं। नीतीश ने आरजेडी कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई। इस चुनाव में विपक्षी दलों की जीत का फॉर्मूला राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने बनाया था, जो कि सफल भी रहा था।

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ज्यादा नहीं चल सका गठबंधन

वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में जेडीयू और बीजेपी साथ मैदान में उतरी। इसमें लोकसभा की 39 सीटों पर एनडीए को जीत मिली। लोकसभा चुनाव के ठीक एक साल बाद बिहार में हुए विधानसभा चुनाव 2020 में भी जेडीयू ने एनडीए का साथ दिया। इस गठबंधन को जनता का भरपूर साथ मिला और सूबे में एनडीए की फिर से सरकार बनी। 2020 में जेडीयू को कम सीटें मिली, लेकिन बीजेपी ने नीतीश कुमार को सातवीं बार सीएम की कुर्सी पर बैठा दिया। नीतीश कुमार ने हालांकि ये कहा था कि बीजेपी चाहे तो को अपना सीएम बना सकती है लेकिन बीजेपी ने उन्हें ही सीएम बनाया।

हालांकि दो साल बाद ही 2022 में नीतीश कुमार और बीजेपी के रिश्तों में कड़वाहट आ गई। इसको लेकर नीतीश कुमार एक बार फिर पीएम मोदी पर हमलावर हो गए। कई बार ऐसा भी हुआ कि कई मुद्दों पर आरजेडी के साथ होने के बावजूद पीएम मोदी और केंद्र की नीतियों की तारीफ करते रहे। 2022 में नीतीश कुमार ने फिर एकबार राजद के साथ मिलकर बिहार में महागठबंधन की सरकार बना ली। इस बार भी सीएम नीतीश कुमार ही रहे। यह आठवीं बार था जब नीतीश कुमार राज्य के मुख्यमंत्री बने।

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पहले मोदी के खिलाफ बनाया इंडिया गठबंधन, फिर बचाई मोदी की ही सरकार

इसके बाद नीतीश कुमार ने विपक्षी एकता का मुद्दा छोड़ा और 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए विपक्षी दलों का इंडिया गठबंधन भी स्थापित करवाया। ममता बनर्जी से लेकर अखिलेश यादव, शरद पवार, अरविंद केजरीवाल के विपक्षी दलों के नेताओं को राहुल गांधी के साथ खड़ा करने में नीतीश कुमार की अहम भूमिका थी। हालांकि कांग्रेस ने आखिरी वक्त में नीतीश कुमार को गठबंधन का संयोजक नहीं बनाया। कहा जाता है कि नीतीश सीधे 2024 के चुनाव में विपक्ष की तरफ से पीएम उम्मीदवार घोषित होना चाहते थे और नरेंद्र मोदी का मुकाबला करना चाहते थे, लेकिन कांग्रेस ने इसको लेकर दिलचस्पी नहीं दिखाई।

कांग्रेस के रुख का असर ये हुआ कि जिन मोदी के खिलाफ नीतीश कुमार पीएम उम्मीदवार बनना चाहते थे, लोकसभा चुनाव से पहले नीतीश फिर उन्ही मोदी के एनडीए गठबंधन में आ गए। इत्तफाक देखिए कि इस बार नीतीश मोदी के काम भी आए, क्योंकि लोकसभा चुनाव में बीजेपी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला और नीतीश की पार्टी जेडीयू के 12 सांसद, नरेंद्र मोदी की पीएम की कुर्सी का अहम पाया हैं।

बिहार में फिर BJP-JDU साथ

बिहार में एक बार फिर बीजेपी और जेडीयू साथ चुनाव लड़ने वाले हैं। बीजेपी का साफ कहना है कि एनडीए पीएम मोदी और सीएम नीतीश के नेतृत्व में चुनाव लड़ने वाला है। यह राजनीति का खेल ही है, कि एक वक्त नरेंद्र मोदी को नीतीश कुमार ने बिहार में आने से रोका था, लेकिन आज की स्थिति में नीतीश कुमार, नरेंद्र मोदी की पॉपुलैरिटी के दम पर एक बार फिर बिहार की सत्ता पर काबिज होना चाहिए।

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