सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने मंगलवार को कहा कि पिछले पांच साल में सीवर की सफाई करते हुए 340 लोगों की जान चली गई।
सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास आठवले ने लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में पिछले पांच साल में राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा मुहैया कराये गये ऐसे मामलों के आंकड़े साझा किये। आंकड़ों के अनुसार सीवर की सफाई करने वाले कर्मियों की मौत के सर्वाधिक मामले उत्तर प्रदेश से आये जिनकी संख्या 52 थी। इसके बाद तमिलनाडु में 43, दिल्ली में 36, महाराष्ट्र में 34 और गुजरात तथा हरियाणा में 31-31 मामले आये।
‘सड़क पर कचरा फेंकने वालों पर FIR क्यों नहीं हुई?’: इसी बीच, दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को उत्तर दिल्ली नगर निगम (एनडीएमसी) से पूछा कि मॉडल टाउन इलाके में सड़कों पर कचरा फेंकने वालों के खिलाफ प्राथमिकी क्यों नहीं दर्ज करायी गयी। न्यायालय ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। याचिका में आरोप लगाया गया कि तीन सप्ताह से हड़ताल कर रहे सफाई कर्मचारी आवासीय इलाके, बाजारों और सड़कों पर कचरा फेंक रहे हैं।
न्यायमूर्ति संजीव सचदेवा ने निर्देश दिया कि यदि हड़ताल खत्म नहीं होती है और कचरा संग्रहण का काम शुरू नहीं किया गया तो निगम के संबंधित उपायुक्त शुक्रवार को मामले की सुनवाई में मौजूद रहेंगे। अदालत ने कहा, ‘‘अगर हड़ताल खत्म हो जाती है और काम शुरू हो जाता है तो उन्हें सुनवाई में हिस्सा लेने की जरूरत नहीं होगी।’’ साथ ही कहा कि निगम को मॉडल टाउन में सड़कों पर कचरा डालने की समस्या के समाधान के साथ आना चाहिए।
सुनवाई के दौरान अदालत ने निगम से पूछा, ‘‘सड़कों पर कचरा डालने वालों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज क्यों नहीं करवायी गयी? आप इस बारे में क्या कर रहे हैं?’’ कोर्ट ने आगाह किया कि अगर निगम जल्द कोई कदम नहीं उठाता है तो मॉउल टाउन के निवासी निगम के अधिकारियों के कार्यालय के बाहर और सड़कों पर कचरा फेंकने लगेंगे।
अदालत ‘फेडरेशन ऑफ मॉडल टाउन एसोसिएशन’ की एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसने दलील दी थी कि निगम के सफाई कर्मचारी जानबूझकर तीन सप्ताह से काम से गैर हाजिर हैं और कचरा हटाने का काम नहीं कर रहे हैं तथा कर्मचारियों ने कचरा भरे ट्रक से आवासीय इलाके, बाजारों और सड़कों पर कचरा फेंक दिया।