गर्मी हो या सर्दी या बरसात, सीनियर्स अपने चाय का मग मेरे बिस्तर के नीचे रख देते थे। उनका आदेश था कि सुबह खुद चाय पीने से पहले मैं उन्हें उनके कमरे में चाय देकर आऊं। तब मेरी उम्र 11-12 साल ही थी। सुबह 4.30 बजे चाय देने के लिए अनेकों बार सीढ़ियां चढ़ना-उतरना बेहद मुश्किल भरा होता। किसी को चाय देने में देरी हो जाती तो मुझे गालियां देते, पीटते… कई बार तो हॉकी स्टिक से भी मारा। यह दास्तां पूर्व क्रिकेटर सुरेश रैना की है। हाल ही में आई अपनी जीवनी में भारतीय टीम के धुआंधार बल्लेबाज रहे रैना ने अपने हॉस्टल के दिनों और रैगिंग के खौफनाक किस्सों को विस्तार से बताया है।
सुरेश रैना अपनी बायोग्राफी ”बिलीव” में लिखते हैं कि लखनऊ के स्पोर्ट्स हॉस्टल में सेलेक्शन के बाद उन्हें हॉस्टल में रुकना पड़ा। यहां ऐसे बच्चे सीनियर्स के खास निशाने पर रहते जो पढ़ाई और खेलकूद, दोनों में तेज होते। सीनियर्स, जूनियर खिलाड़ियों से अपने निजी काम करवाते। रैगिंग के अलग-अलग हथकंडे अपनाते। कभी उन्हें मुर्गा बना देते तो कभी चेहरे पर पानी फेंक देते।
धुलवाते थे गंदे कपड़े: पेंग्विन से प्रकाशित अपनी आत्मकथा में सुरेश रैना लिखते हैं कि सीनियर्य, जूनियर बच्चों को तरह-तरह से परेशान करते। वे अपने गंदे कपड़े हमारे कमरे में या बिस्तर पर फेंक जाते थे और मेरा जिम्मा था कि मैं उनके कपड़े धोकर उनतक पहुंचाऊं। सीनियर्स मुझे परेशान करने के अलग अलग तरीके ढूंढते। किसी दिन सुबह 3:30 बजे बर्फ जैसा ठंडा पानी डाल देते, ठंड के दिनों में यह किसी यातना से कम नहीं था। या आधी रात को लॉन की घास कटवाते।
चेहरे पर कर दिया था पेशाब: सुरेश रैना ने अपनी जीवनी में एक खौफनाक किस्से का जिक्र किया है। वे लिखते हैं कि एक बार एक टूर्नामेंट में हिस्सा लेने के लिए वह आगरा जा रहे थे। साथ तमाम सीनियर्स भी थे। कईयों के पास सीट नहीं थी, ऐसे में हमें दरवाजे के पास जितनी जगह मिली, वहीं पसर गए। सीनियर्स वहां भी तंग करने आ गए और जब बत्ती बंद हुई तो हम पर चप्पल और जूते फेंकने लगे। इसी दौरान एक लंबा-तगड़ा लड़का मुझ पर बैठ गया और मेरे चेहरे पर पेशाब करने लगा।
ट्रेन से गिरते-गिरते बचा था: बकौल रैना, इसके बाद मैंने अपना आपा खो दिया और उसे जोर से धक्का देकर घूंसा मारा। वह लड़का ट्रेन से गिरते-गिरते बचा। यह पहला मौका था जब मैंने रह रैगिंग का हिंसात्मक तरीके से प्रतिरोध किया था। तब मैं 13 साल का था। बकौल रैना, बाद में हॉस्टल ने मामले की जांच के लिए कमेटी भी गठित की थी।
अब मिलते हैं तो ऐसी होती है प्रतिक्रिया: सुरेश रैना लिखते हैं कि जिन लोगों ने हॉस्टल के दिनों में मेरी जिंदगी जहन्नुम बना दी थी, कई बार मैं उनको ढूंढ निकालता हूं। अब वे लोग मुझसे बात करके खुश होते हैं लेकिन मैं सोचता हूं कि उन लोगों ने कितनी आसानी से सब भुला दिया कि उन्होंने मेरे साथ क्या किया था। वे कहते हैं कि रैगिंग एक ऐसी बुराई है जिसे खत्म करना बेहद जरूरी है, अगर आप इसके भुक्तभोगी हैं तो खुद को अपराधी मानना बंद करें और इसके खिलाफ मजबूती से आवाज उठाएं।
(एयरपोर्ट पर प्रियंका को दिल दे बैठे थे सुरेश रैना, प्रपोज करने के लिए ली थी 45 घंटे की फ्लाइट)
