साल 1990 में लालू प्रसाद यादव पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने। इससे पहले वह सांसद भी रहे थे और इंदिरा सरकार के खिलाफ जेपी आंदोलन में हिस्सा लेकर खूब सुर्खियां भी बटोरी थीं। जेपी आंदोलन के दौरान लालू के साथी रहे तमाम लोग आगे चलकर सियासत में आगे बढ़े। हालांकि रास्ते अलग हो गए। नीतीश कुमार भी इन्हीं लोगों में शामिल हैं। नीतीश आज बिहार के मुख्यमंत्री हैं और लालू के धुर-विरोधी भी।
1990 से पहले लालू और नीतीश के रिश्ते इतने तल्ख नहीं हुआ करते थे। वरिष्ठ पत्रकार और लेखक संकर्षण ठाकुर ने नीतीश के राजनीतिक जीवन पर लिखी अपनी किताब ‘अकेला आदमी, कहानी नीतीश कुमार की’ में दोनों के रिश्तों का विस्तार से जिक्र किया है। संकर्षण ठाकुर लिखते हैं, मुख्यमंत्री बनने के बाद लालू यादव अपने वायदों से पीछे हटते नजर आए और नीतीश को ये बात नागवार गुजरी। धीरे-धीरे दोनों के बीच इन बातों को लेकर मतभेद शुरू हो गया। इसी बीच साल 1990 में वी.पी सिंह की सरकार गिर गई और नीतीश भी केंद्रीय मंत्री नहीं रहे।
नीतीश को बेघर करने के लिए किया इंजीनियर का ट्रांसफर: नीतीश कुमार ने सरकार गिरने के बाद दिल्ली से बिहार का रुख किया। उस दौरान लालू बिहार के मुख्यमंत्री हुआ करते थे। नीतीश बिहार आने के बाद स्टेट गेस्ट हाउस में ठहरना चाहते थे, लेकिन लालू यादव ने उन्हें इजाजत नहीं दी। मजबूरन उन्हें पटना के पुनाई चौक स्थित अपने इंजीनियर दोस्त अरुण कुमार के घर जाना पड़ा। लालू को जब इस बात की खबर लगी तो उन्होंने अरुण कुमार का तबादला पटना से बाहर कर दिया और फ्लैट किसी अन्य सरकारी कर्मी को दे दिया।
नीतीश फिर बेघर हो गए और पटना में रहने के लिए ठिकाने की तलाश करने लगे। इसी दौरान उन्हें अपने बिजनेसमैन दोस्त विनय कुमार की याद आई। वे विनय के घर शिफ्ट हो गए। लालू चाहकर भी यहां से उन्हें नहीं निकलवा सकते थे। बाद में नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री बने और लालू को अणे मार्ग छोड़कर निकलना पड़ा।
नीतीश का एहसान मानते हैं लालू यादव: लालू यादव ने अपनी आत्मकथा ‘गोपालगंज से रायसीना: मेरी राजनीतिक यात्रा’ में लिखा है कि कर्पूरी ठाकुर का निधन होने के बाद मैंने विपक्ष के नेता के लिए अपना दावा किया तो मेरा समर्थन करने वाले नेताओं में नीतीश कुमार भी शामिल थे। लालू लिखते हैं, ‘नीतीश कुमार समय के साथ और ढुलमुल हो गए। पहले वो मेरे साथ थे। फिर मुझसे अलग हो गए। लेकिन उन्होंने मेरा साथ दिया जिसके लिए मैं उनका ऋणी हूं।’
जब नीतीश बोले- मैं बनूंगा बिहार का मुख्यमंत्री: वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर याद करते हैं, ‘उन दिनों लालू प्रसाद यादव मुख्यमंत्री नहीं थे और नीतीश ज्यादा चर्चित नेता भी नहीं थे। साल 1977 में विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की हार हो गई थी और वह अपने साथियों के साथ बैठकर कॉफी पी रहे थे। नीतीश कॉफी बोर्ड, जिसे अब लोग पटना कॉफी हाउस के नाम से जानते हैं, में बैठे हुए थे। यहां चर्चा के दौरान नीतीश ने टेबल पर मुक्का मारा और कहा कि मैं बनूंगा बिहार का मुख्यमंत्री By Hook या By Crook। बाद में उनकी बात सच साबित हुई।