Ram Vilas Paswan: रामविलास पासवान साल 1977 में जब पहली बार लोकसभा का चुनाव जीतकर दिल्ली पहुंचे तो यहां उनकी मुलाकात वाणिज्य मंत्रालय में डिप्टी डायरेक्टर के पद पर कार्यरत गुरबचन सिंह से हुई। सिंह और उनके तमाम साथी अफसर पासवान के मुरीद थे। धीरे-धीरे दोनों के बीच नजदीकी बढ़ी और घर आना जाना भी शुरू हुआ। इसी दौरान पहली बार रामविलास पासवान की गुरबचन सिंह की बेटी अविनाश कौर से मुलाकात हुई, जो उस वक्त ग्रेजुएशन की छात्रा थीं।
अविनाश कौर और रामविलास पासवान धीरे-धीरे करीब आते गए और शादी का फैसला किया। हालांकि रामविलास पासवान जब 7-8 साल के थे तभी उनकी राजकुमारी देवी से शादी हो गई थी। लेकिन दोनों के बीच जमीन आसमान का अंतर था। बाद में पासवान अपनी पहली पत्नी से अलग हो गए और अविनाश कौर से शादी कर ली। कौर ने शादी के बाद अपना नाम बदलकर रीना पासवान रख लिया।
पेंगुइन प्रकाशन से हाल ही में आई पासवान की जीवनी “रामविलास पासवान: संकल्प, साहस और संघर्ष” में प्रदीप श्रीवास्तव ने उनके निजी जीवन से जुड़े तमाम किस्से दिलचस्प अंदाज में पेश किए हैं।
माता-पिता को नहीं बताई दूसरी शादी की बात: प्रदीप श्रीवास्तव पासवान के हवाले से लिखते हैं कि शादी का प्रस्ताव किसकी तरफ से रखा गया यह तो याद नहीं है। शादी में सिर्फ एक अड़चन थी और वह थे पासवान के माता पिता। पासवान को डर था कि कहीं उन्हें दूसरी शादी की बात बताई जाए तो नाराज ना हो जाएं। ऐसे में शादी की बात उन्हें बताई ही नहीं गई और भी शादी में शामिल भी नहीं हुए। बाद में थोड़ी नाराजगी रही लेकिन शादी के करीब 2 साल के बाद उन्होंने रीना को बहू के तौर पर स्वीकार कर लिया।
बैलगाड़ी से पहुंचीं ससुराल: दरअसल, रामविलास पासवान के सबसे छोटे भाई रामचंद्र पासवान की शादी का मौका आया तो रीना पासवान को पहली बार बिहार में उनके पैतृक गांव शहरबन्नी जाना पड़ा। ये बिहार के दूरदराज के इलाके में स्थित ससुराल की उनकी पहली यात्रा थी। उस वक्त आवागमन का साधन इतना सुलभ नहीं था। रामविलास पासवान पत्नी रीना के साथ पहले खगड़िया पहुंचे और यहां से जीप से अलौली के लिए रवाना हुए लेकिन रास्ते में ही जीप खराब हो गई है। मजबूरन कई किलोमीटर पैदल चले और बाद में एक बैलगाड़ी की मदद से घर तक पहुंचे।
कुछ ऐसी थी सास ससुर की प्रतिक्रिया: रीना पासवान याद करती हैं कि जब हम बैलगाड़ी से घर पहुंचे तो बाबूजी दरवाजे पर ही खड़े थे। मुझे बताया गया था कि बिहार में ससुर के पांव नहीं छूते हैं, लेकिन मैं खुद को रोक नहीं सकी। झुककर बाबूजी के पांव छुए। उन्होंने सरसराती नजर से देखा और सिर्फ इतना पूछा पहचानती हो मुझे? मैं कौन हूं? मेरा जवाब सुनकर खुश हुए। दूसरे दिन में उनके पास जाकर बैठ गई। कुछ ना कुछ पूछती रहती। धीरे-धीरे उनका गुस्सा पिघलने लगा।
‘मेम साहब’ कह कर पुकारते थे पासवान के पिता: रीना पासवान याद करती हैं कि जब रामविलास पासवान के पिता यानी उनके ससुर की तबीयत खराब हुई और उन्हें दिल्ली लाया गया तब वह हमेशा उनके पास बैठी रहती थीं। उनकी तमाम जरूरतों का ख्याल रखती थीं। वह कहती हैं कि बाबूजी मुझे मेम साहब कहकर बुलाया करते थे।