Allahabad High Court To Supreme Court: राज्य न्यायिक अधिकारियों के लिए सेवा नियम बनाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर दो दशक से चल रहा असंतोष बुधवार को उस समय सामने आया जब इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट से साफ शब्दों में कहा कि वह इस मुद्दे पर कोई हस्तक्षेप न करे।

इलाहाबाद हाई कोर्ट, जिसे हाल ही में मामलों के निर्णय में देरी के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा फटकार लगाई गई है। उसने कहा, “सुप्रीम कोर्ट को कैरियर न्यायिक अधिकारियों और सीधी भर्ती वाले जिला न्यायाधीशों के लिए पर्याप्त पदोन्नति के अवसर सुनिश्चित करने के लिए रूपरेखा तैयार करने का काम हाई कोर्ट पर छोड़ देना चाहिए। अनुच्छेद 227(1) उच्च न्यायालयों को जिला न्यायपालिका पर अधीक्षण प्रदान करता है।”

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, हाई कोर्ट का प्रतिनिधित्व करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा, “उच्च न्यायालयों को संविधान के तहत उनके अधिकार और कर्तव्य से क्यों वंचित किया जाना चाहिए? अब समय है कि उच्च न्यायालयों को मजबूत किया जाए, न कि उन्हें कमजोर किया जाए। बात बहुत आगे बढ़ चुकी है।”

हमारा उद्देश्य उच्च न्यायालयों की शक्तियों का अतिक्रमण नहीं, एकरूपता के मानदंडों पर विचार: सुप्रीम कोर्ट

2017 में, सुप्रीम कोर्ट ने सैद्धांतिक रूप से एक अवधारणा पत्र को अंतिम रूप दिया था, जिसमें यह वकालत की गई थी कि सुप्रीम कोर्ट को वकीलों में से सीधे नियुक्त जिला न्यायाधीशों की भर्ती परीक्षा आयोजित करनी चाहिए। हमने इसका विरोध किया और इसे रोक दिया गया। इलाहाबाद हाई कोर्ट का प्रतिनिधित्व कर रहे द्विवेदी ने कहा, “सुप्रीम कोर्ट सेवानिवृत्ति की आयु, कैरियर न्यायिक अधिकारियों के लिए कोटा और पात्रता तय नहीं कर सकता।”

सीजेआई बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत, विक्रम नाथ, के विनोद चंद्रन और जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि अखिल भारतीय न्यायिक सेवा की अवधारणा अभी भी जीवित है और अगर यह फलीभूत होती है, तो जिला न्यायपालिका के लिए समान सेवा नियम तैयार करने में सुप्रीम कोर्ट की कुछ भूमिका हो सकती है।

अगले मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति कांत ने कहा, “वर्तमान कार्यवाही का उद्देश्य जिला न्यायपालिका के संबंध में उच्च न्यायालयों की शक्तियों का अतिक्रमण करना नहीं है। हम इस बात पर विचार कर रहे हैं कि जिला न्यायाधीश के पद पर पदोन्नति में कुछ एकरूपता लाने के लिए क्या एक सामान्य दिशानिर्देश की आवश्यकता है। “

ऐसे राज्य भी हैं जहाँ सिविल जज जूनियर डिवीजन के पद पर वरिष्ठता-सह-योग्यता के आधार पर नियुक्त होने वाले व्यक्ति को जिला न्यायाधीश (डीजे) बनने में दो दशक लग जाते हैं, लेकिन 10 साल की प्रैक्टिस वाले वकील जिला न्यायाधीश बनने के लिए परीक्षा पास कर सकते हैं। एक तीसरी श्रेणी भी है जिसके तहत न्यायिक अधिकारी, सीमित विभागीय प्रतियोगी परीक्षा के माध्यम से, डीजे बन सकते हैं।

2002 में न्यायिक मजिस्ट्रेट के पद पर पदोन्नति का अनुपात 50-25-25 था, जिसे 2010 में 65-25-10 कर दिया गया और सुप्रीम कोर्ट ने इसे फिर से 50-25-25 कर दिया। मुख्य न्यायाधीश गवई ने कहा, “हमारा उच्च न्यायालयों की शक्तियों को छीनने का दूर-दूर तक कोई इरादा नहीं है,” लेकिन उन्होंने पूछा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय न्यायिक अधिकारियों के लिए एक समान सेवा नियम के इतने खिलाफ क्यों है और इसके क्या सुझाव हैं।

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द्विवेदी ने कहा, “मैं कोई सुझाव नहीं दे रहा हूं, बल्कि सुप्रीम कोर्ट को इस मुद्दे पर हस्तक्षेप न करने के लिए प्रेरित कर रहा हूं। सेवा शर्तें अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होती हैं, और सेवा नियम बनाते समय हाईकोर्ट इन पहलुओं पर विचार करने के लिए सबसे बेहतर स्थिति में है। सुप्रीम कोर्ट उन मामलों में हस्तक्षेप कर सकता है, जहां हाईकोर्ट अधीनस्थ न्यायपालिका के मामलों का प्रबंधन करने में असमर्थ है या जहां जिला अदालतों में न्याय प्रशासन चरमरा गया है …” उन्होंने कहा और न्यायिक अधिकारियों की डीजे पदों पर पदोन्नति के लिए किसी भी कोटे के खिलाफ तर्क दिया।

पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर आचार्य ने कहा कि दोनों राज्यों में वर्तमान व्यवस्था अच्छी तरह से काम कर रही है और सर्वोच्च न्यायालय को कैरियर न्यायिक अधिकारियों के लिए कोटा निर्धारित करने की कोई आवश्यकता नहीं है। केरल, बिहार और दिल्ली के सीधी भर्ती वाले न्यायिक अधिकारियों के लिए, अधिवक्ताओं ने इस तर्क का समर्थन किया कि सर्वोच्च न्यायालय को वर्तमान पदोन्नति प्रक्रिया में कोई बदलाव नहीं करना चाहिए।

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