कोयला खनन एवं खदान राज्य मंत्री व बिहार भाजपा के प्रमुख चेहरा सतीश चंद्र दुबे का कहना है कि कोयला व खनन का क्षेत्र अब पूरी तरह से भ्रष्टाचार मुक्त है। खदानों के कामगारों की स्थिति में सुधार है। बिहार चुनाव के संदर्भ में उन्होंने दावा किया कि 2005 के बाद शुरू हुए विकास कार्य कहीं थम न जाएं, जंगलराज वापस न आ जाए, इसी डर से जनता ने राजग को प्रचंड बहुमत दिया। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग को घेरने का मुद्दा विपक्ष को उल्टा पड़ा व आगे उत्तर प्रदेश एवं बंगाल में भी उल्टा पड़ेगा। दुबे ने दावा किया कि नीतीश कुमार में काम करने की इच्छाशक्ति और ऊर्जा है, वे अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा करेंगे। नई दिल्ली में सतीश चंद्र दुबे के साथ कार्यकारी संपादक मुकेश भारद्वाज की बातचीत के चुनिंदा अंश।

कोयला, यानी आज भी देश के ऊर्जा क्षेत्र का अहम हिस्सा। आप जिस विभाग से जुड़े हैं, आज भी उसका नाम लेते ही हिंदी फिल्म ‘काला पत्थर’ याद आती है, साथ ही याद आता है इससे जुड़ा मुहावरा। कहा जाता है कि कोयले के कारोबार में हाथ काले होते ही हैं। आज के समय में क्या कुछ बदल चुका है इस विभाग के संदर्भ में।
सतीश चंद्र दुबेदेखिए, 2014 के पहले जब यूपीए गठबंधन की सरकार हुआ करती थी, उस समय इस विभाग की हालत का इतिहास सबको पता है। उस समय तो सिगरेट की पन्नी पर कोयला खदान दे दिए जाते थे। लेकिन नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली सरकार आने के बाद पूरा परिदृश्य बदल चुका है। मोदी सरकार ने इसी के मद्देनजर ‘जेम पोर्टल’ को बनाया। ‘जेम पोर्टल’ के माध्यम से खरीद-बिक्री में किसी की भी सहभागिता हो सकती है। जो सबसे बेहतर होता है उसी को चुना जाता है। जो सरकार को कम दर में ज्यादा सुविधाएं देता है, जिसके काम की गुणवत्ता अच्छी होती है, उन्हें ही चुना जाता है। आज के दौर में अब उस तरह की गड़बड़ी नहीं है, जैसा इस विभाग का इतिहास रहा है। पहले कोयले के अभाव में ताप ऊर्जा संयंत्र बंद हो जाया करते थे। अब हमारे पास कोयले का भंडार ज्यादा है। आज के दौर में एक भी ऐसा ऊर्जा संयंत्र नहीं है, जहां 40 या 45 दिन का भंडार नहीं रहता हो।

देश की ऊर्जा जरूरतों के हिसाब से कोयले का उत्पादन हो रहा है?
सतीश चंद्र दुबेजी, बिल्कुल। बहुत अच्छा उत्पादन हो रहा है। आपको मालूम होगा कि ग्रामीण इलाकों में बिजली आपूर्ति में कितनी बदहाली थी। अब तो गांवों में भी 22 से 23 घंटे बिजली मिल रही है। बिजली की आपूर्ति अच्छी होने से खेती के कामों में भी सुविधा और गुणवत्ता आई है। उत्पादन और बिजली आपूर्ति का गहरा नाता है। गौर करने की बात यह है कि वृहद क्षेत्रों में बिजली की इतनी आपूर्ति के बाद भी आज की तारीख में कहीं पर भी भंडार की समस्या नहीं है। हम लोगों ने महत्त्वपूर्ण खनिज पर काफी ध्यान केंद्रित किया है। महत्त्वपूर्ण खनिज को लेकर हमने एक काबिल संस्था का निर्माण किया है। जो सामग्री हमारे पास नहीं है, हम एजंसी के माध्यम से दूसरे देश से इसे लाने के प्रयास कर रहे हैं। हमारे देश में भी महत्त्वपूर्ण खनिज को लेकर लगातार अनुसंधान हो रहे हैं। पूरे अनुसंधान और सर्वेक्षण के बाद ही निविदा दी जाती है। इस पूरे क्षेत्र में पूरी तरह पारदर्शिता आ चुकी है।

कोयला खदान के साथ ही अहम हैं कोयला क्षेत्र के कामगार। इतने अहम क्षेत्र के कामगारों की सुरक्षा पर हमेशा से सवाल रहे हैं। पिछले पंद्रह वर्षों में क्या कोयला क्षेत्र के कामगारों की स्थिति में उल्लेखनीय बदलाव आ पाया है?
सतीश चंद्र दुबेबहुत बदलाव हुआ है। इस क्षेत्र को उल्लेखनीय सुविधाएं दी गई हैं। सबसे अहम बात है कि आज की तारीख में कामगारों का अच्छा बीमा किया गया है। अभी एक करोड़ रुपए के आस-पास का बीमा किया जा रहा है। कामगारों की आवासीय परियोजना पर भी काम हुआ है। चिकित्सा की भी सुविधा दी गई है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि संतोषप्रद स्थिति है।
’महकमे के डिजीटलीकरण की योजना कहां तक पहुंची?
’’लगभग हो गया है।

यानी काम बचा हुआ है अभी तक?
सतीश चंद्र दुबेनहीं, लगभग पूरा है।

आपका संबंध बिहार से है। बिहार विधानसभा चुनाव पूरे देश की नजर में रहा। चुनाव होने के पहले भी और बाद में भी। पहले कहा जा रहा था कि बिहार का चुनाव देश को नई राजनीतिक दिशा देगा। चुनाव के बाद पूरा देश सवालरत था कि यह कैसी दिशा दे दी कि राजनेता का पुत्र बिना चुनाव लड़े मंत्रिपद पा गए। बिहार विधानसभा चुनाव का आप किस तरह मूल्यांकन करते हैं?
सतीश चंद्र दुबेआजादी के बाद बिहार की बागडोर कांग्रेस के हाथों में रही। थोड़ी देर के लिए सत्ता अन्य दल को हस्तांतरित हुई तो उसके बाद वहां राजद की सरकार आ गई। बिहार में कांग्रेस के समर्थन से जंगलराज का विस्तार हुआ। वहां के लोग भय के माहौल में रहने लगे, और एक बड़ा तबका सूबे से पलायन कर गया। अंग्रेजों के समय में स्थापित उद्योग-धंधे भी बंद हो गए। पहले कांग्रेस के शासन काल में उद्योग-धंधे बंद हुए, फिर राजद के शासन काल में बंद हुए। फिर आया 2005 के बाद का समय। उसके बाद लगातार लोगों का भरोसा राजग गठबंधन पर होने लगा। लोगों ने राजग को एकमुश्त वोट दिया तो बदले में उन्हें विकास मिला। शिक्षा का क्षेत्र हो या स्वास्थ्य का या फिर सड़क निर्माण, हर तरफ खूब काम हुआ। ध्यान देने की बात यह है कि बिहार में ग्रामीण इलाके ज्यादा हैं। अभी भी बहुत से हिस्सों का शहरीकरण नहीं हुआ है। गांव में नदी-नाले पार करने के लिए पुल की जरूरत होती है। एक गांव से दूसरे गांव जाने के लिए छोटे-छोटे पुल की आवश्यकता होती है। पहले ग्रामीण इलाकों में बरसात में बहुत दिक्कत होती थी। मुख्यमंत्री सेतु परियोजना ने पूरा परिदृश्य ही बदल दिया है। जगह-जगह पुल बन गए हैं। मुख्यमंत्री सड़क योजना, मुख्यमंत्री साइकिल योजना-इन तमाम चीजों के जरिए मुख्यमंत्री ने सूबे का चेहरा ही बदल दिया। केंद्र में मोदी जी की सरकार बनने के बाद हर घर में गैस-कनेक्शन पहुंचा, शौचालय बने। चार और छह गलियारों की सड़कें बनीं। हवाई अड्डे बने। अस्पतालों में सुधार हुआ। पहले बिहार में एक भी एम्स नहीं था। पटना का एम्स शुरू हो गया, दरभंगा के एम्स का काम चल रहा है। हर क्षेत्र में व्यापक स्तर पर बदलाव हुआ है। पर्यटन स्थलों का भी काफी विकास हुआ है। इतने सारे बदलावों का ही नतीजा है कि बिहार की जनता ने इस भय से कि, जंगलराज लौट नहीं आए, राजग गठबंधन को एकमुश्त वोट दिया। राजग ने बिहार में फिर से प्रचंड बहुमत से सरकार बनाई।

मतलब यह कि जनता ने विकास कार्य को देख कर नहीं, जंगलराज की पुरानी याद और उसके लौटने के भय से राजग को वोट दिया?
सतीश चंद्र दुबेऐसा बिल्कुल नहीं है। मैंने जो तथ्य और कारण अभी दिए उसके आधार पर ही वोट मिले हैं। पहले शिक्षा का माहौल बदला, फिर स्वास्थ्य का माहौल बदला। सड़कें बनीं। पुल और पुलिया बने। हमने बच्चों की पढ़ाई का माहौल तैयार किया। हमने कानून का राज स्थापित किया। यह भी अहम है कि आज की तारीख में 400 से 1100 रुपए की पेंशन मिल रही है। 125 यूनिट बिजली मुफ्त मिल रही है। जीविका दीदी यानी नारी शक्ति को सशक्त किया गया। सब लोग आत्मनिर्भर बने। मुद्रा बैंक योजना बनी। जनधन खाता की योजना थी। इन सब कदमों के कारण विकास आया। अब दूसरा पक्ष भी देखिए। राहुल गांधी ने और लालू जी के पुत्र ने मिल कर यात्रा निकाली। इस यात्रा ने जनता के मन में नकारात्मक प्रभाव डाला। इस यात्रा में लोगों को 2005 के पहले की झलक मिली। लोगों में एक भय व्याप्त हुआ। आशंका हुई कि वही वक्त तो नहीं लौट आएगा? आज सुशासन की व्यवस्थित सरकार है। लोगों ने तय कर लिया कि सुशासन की इस सरकार पर किसी तरह की आंच नहीं आनी चाहिए।

आपके दावों के मुताबिक बिहार में आमूल-चूल विकास हुआ। हर क्षेत्र में विकास हुआ। जब इतना विकास हुआ तो फिर महिलाओं के खातों में दस हजार रुपए देने की नौबत क्यों आई? वह भी ऐन चुनावों के वक्त। नीतीश कुमार के इस कदम के कारण दुनिया भर के अर्थशास्त्रियों की नजर बिहार पर पड़ी और बहुत से विश्लेषकों ने इसे चुनावी रिश्वत का भी नाम दिया। इतना विकास होने के बाद इस कदम को जायज कैसे ठहराया जा सकता है?
सतीश चंद्र दुबेदेखिए, दस हजार रुपए हमने वोट के लिए नहीं दिए। दस हजार रुपए जीविका दीदी को दिए गए। दस हजार रुपए तो शुरुआती रकम थी। अभी जो हमें पैसे देने हैं, उसकी तैयारी चल रही है। छोटे गांवों में जाकर आप वहां की अर्थव्यवस्था देखिए। वहां आप लोगों को बकरी के दो-तीन बच्चे भी पालते हुए देखेंगे। प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में महिलाओं ने अपनी स्थिति बताई थी। एक साल के अंदर दस हजार रुपए, चालीस हजार तक बन सकते हैं। चालीस हजार में वे किसी भी तरह के काम की शुरुआत कर सकती हैं। आप गांवों की स्थिति समझिए, जिनके पास दस हजार भी नहीं हैं, उनके पास यह रकम पहुंची तो उन्हें कितना बड़ा सहारा मिला होगा। जिस तबके को आत्मनिर्भर बनाने की शुरुआत के लिए दस हजार रुपए दिए गए, उसके लिए यह बहुत बड़ा काम है। यह एक उचित और जरूरी मदद है।

विधानसभा चुनाव के पहले नीतीश कुमार के स्वास्थ्य की बहुत चर्चा हुई। अब वे फिर से मुख्यमंत्री बन चुके हैं। लगातार दसवीं बार मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेकर वे विश्व रिकार्ड में अपना नाम दर्ज करवा चुके हैं। तो क्या उनकी सेहत को लेकर उठी सारी शंकाएं बेमानी थीं?
सतीश चंद्र दुबेउनकी सेहत पूरी तरह से ठीक थी, ठीक है। आपने देखा होगा कि चुनाव के समय में दो-तीन दिन बारिश के कारण हेलिकाप्टर उड़ान नहीं भर पाए थे। विपक्ष के लोग नीतीश जी पर आरोप लगा रहे थे कि वे घर से बाहर निकलने की स्थिति में नहीं हैं। वहीं, नीतीश जी ने सड़क मार्ग से जाकर दरभंगा में रोड शो किया। जो खुद को युवा कह रहा, घर से नहीं निकला और बुजुर्ग व्यक्ति, जिनमें काम करने की इच्छाशक्ति है, वे दरभंगा तक चले गए। अब आप ही बताइए, जो घर से नहीं निकला वह बुजुर्ग है या जो दरभंगा चला गया वह जवान है। इसलिए कहना आसान है, करना मुश्किल है। नीतीश कुमार में काम करने की इच्छाशक्ति है। विपक्ष के पास उन्हें घेरने के लिए कोई मुद्दा ही नहीं था, उम्र के सिवा तो वह करता भी क्या?

क्या नीतीश कुमार अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा करेंगे?
सतीश चंद्र दुबेजी बिल्कुल करेंगे।सौ फीसद करेंगे। वे हमारे नेता हैं। बिहार में राजग गठबंधन का मजबूत खंभा हैं नीतीश कुमार।

चुनाव आयोग ने बिहार से ही विशेष गहन मतदाता सूची पुनरीक्षण अभियान शुरू किया था। बिहार चुनाव इस पुनरीक्षण के कारण भी खासा विवाद में आया और मामला अदालत तक पहुंचा। आप इसे कैसे देखते हैं?
सतीश चंद्र दुबेआप सिर्फ बिहार क्यों देख रहे हैं? अभी पश्चिम बंगाल को भी देखिए, उत्तर प्रदेश को भी देखिए। यह सब देख कर मानना पड़ेगा कि विपक्ष के पास कोई मुद्दा ही नहीं है। चुनाव आयोग ने जो दिशा-निर्देश तय किए हैं, उसे तो मानना ही पड़ेगा। अगर आयोग द्वारा मांगे गए दस्तावेज आपके पास उपलब्ध नहीं हैं तो इसका मतलब है कि आप भारतीय नहीं हैं। चाहे राहुल जी हों, या विपक्ष के अन्य नेता हों, इन लोगों को भारतीय मतदाताओं पर भरोसा नहीं रह गया है। चाहे बिहार में तेजस्वी यादव हों या पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी हों, तमाम विपक्ष के पास कोई मुद्दा ही नहीं है।

तो क्या मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण का मुद्दा बिहार में विपक्ष के खिलाफ गया? अन्य जगहों पर भी यह विपक्ष के खिलाफ जा सकता है?
सतीश चंद्र दुबेचुनाव आयोग संवैधानिक संस्था है। उसे अधिकार है समय-समय पर नियमों में संशोधन करने का। इन संशोधनों का मकसद ही यही है कि चुनाव आयोग कैसे और अच्छा कर सकता है। अब तो विपक्ष के लोगों को मतपत्र पर भरोसा हो गया है। याद कीजिए, 2005 के पहले का समय। पहले बिहार में ऐसा कोई चुनाव नहीं होता था जिसमें हत्याएं न हो जाएं। कई जगहों पर बूथ निरस्त हो जाते थे। इस बार बिहार में दो तारीखों में चुनाव हुए और एक भी बूथ निरस्त नहीं हुआ। एक भी मतदान केंद्र की लूट नहीं हुई। विपक्ष के लोगों को अब मतपत्र चाहिए ताकि ये उस पर अपने लिए वोट छपवा सकें।

विपक्ष ने ईवीएम पर भी सवाल उठाए हैं।
सतीश चंद्र दुबेवही तो, इन्हें ईवीएम पर भरोसा नहीं है। क्यों नहीं चाहिए ईवीएम इन्हें? क्या इनके समय में ईवीएम से चुनाव नहीं हुए थे? सवाल यही है कि इन्हें अचानक से मतपत्र से प्यार क्यों हो गया?

आपने कहा कि 2005 के बाद बिहार में अपराध पर नियंत्रण हो गया। लेकिन विधानसभा चुनाव के पहले से बिहार से दृश्य आ रहे थे, जिसे किसी भी तरह से कानून का राज नहीं कहा जा सकता था। अस्पताल में घुसकर बदमाशों ने हत्या की। चुनाव के पहले दुलारचंद यादव की हत्या हुई और अनंत सिंह की गिरफ्तारी भी हुई। फिर एक केंद्रीय मंत्री ने कह दिया कि हर घर से अनंत सिंह निकलना चाहिए। राजग सरकार में इस स्थिति को कैसे देखते हैं आप?
सतीश चंद्र दुबेअपराध के हर मामले में त्वरित कार्रवाई की गई है। अपराध को लेकर कोई समझौता नहीं है।

बिहार में भाजपा के एक पूर्व मंत्री ने भ्रष्टाचार पर आवाज उठाई। नतीजे में पार्टी ने उन पर कार्रवाई कर दी। आपका क्या मानना है बिहार में भ्रष्टाचार के बारे में?
सतीश चंद्र दुबेचीजों को देखने का अपना-अपना चश्मा है। बिहार में भ्रष्टाचारी पकड़े जा रहे हैं। छापे पड़ रहे हैं। कार्रवाई हो रही है, जेल भी जा रहे हैं। आर्थिक अपराध पर नियंत्रण किया जा रहा है।

प्रस्तुति: मृणाल वल्लरी
विशेष सहयोग: हिमांशु अग्निहोत्री