आपातकाल विरोधी आंधी में इंदिरा गांधी की सरकार उखड़ गयी थी और जनता पार्टी की सरकार में मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बन चुके थे। आपातकाल विरोधी आन्दोलन के अगुआ और पहली गैर-कांग्रेसी सरकार के पहरुआ जयप्रकाश नारायण (Jayaprakash Narayan) बीमार रहने लगे थे।
गुर्दे की बीमारी से जूझ रहे जेपी को मार्च 1979 में मुंबई के जसलोक अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उनकी बिगड़ती हालत को देख अस्पताल के मालिक मथुरा दास ने इंग्लैंड से एक बड़े डॉक्टर को बुलाया। विदेशी डॉक्टर ने जांच के बाद बताया कि जेपी की जिदंगी अब बस कुछ ही घंटों की बची है।
हालांकि भारतीय डॉक्टर मणि विदेशी डॉक्टर की बात से सहमत नहीं थे। डॉक्टर मणि भी जेपी का इलाज कर रहे थे, उनका मानना था कि जेपी की मौत गुर्दे की बीमारी से तो नहीं होगी। वह ठीक होंगे और पटना लौटेंगे। बाद में यह बात पूरी तरह सही भी साबित हुई। जेपी की मौत 8 अक्टूबर, 1979 को पटना में मधुमेह और हृदय गति के रुकने से हुई। लेकिन मार्च में उनकी हालत इतनी खराब थी कि हर दिन आखिरी लग रहा था।
बिलख-बिलख कर रोने लगे गोयनका
बलिया वाले चंद्रशेखर, रामनाथ गोयनका, मोहन धारिया और नानाजी देशमुख ये सभी लोग जेपी के ईलाज के लिए मुंबई में ही थे। एक रोज जब जेपी की हालत ज्यादा खराब हुई तो रामनाथ गोयनका ने भावुक होकर चंद्रशेखर से कहा, ”अगर जेपी को कुछ हो जाता है तो हमें प्रयास करना चाहिए कि उनका अंतिम संस्कार उसी प्रकार हो, जैसा महात्मा गांधी का हुआ था। आप मोरारजी भाई से बात करिए।”
चंद्रशेखर ने यह फैसला सरकार के विवेक पर छोड़ना सही समझा। मोहन धारिया ने जगजीवन राम, चौधरी चरण सिंह और जॉर्ज फर्नांडीज से इस बारे में बात की। तीनों ने प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया। गोयनका यह सुनते ही बिलख-बिलख कर रोने लगे। चंद्रशेखर ने उन्हें ढांढस बढ़ाते हुए चुप कराया। नानाजी देशमुख ने कुछ मुख्यमंत्रियों से बात की। वे सभी तैयार हो गए।
चंद्रशेखर अपनी आत्मकथा ‘जीवन जैसा जिया’ में लिखते हैं, ”जब यह सब चर्चा हो रही थी, ऐसा लगता है खुफिया ब्यूरो का कोई आदमी सब सुन रहा था। उसने पूरा मामला समझे बगैर यह निष्कर्ष निकाल लिया कि हमलोग जेपी के निधन को छिपा रहे हैं, घोषणा नहीं करना चाहते, लेकिन प्रबंध में लग गए हैं। उसने दिल्ली खबर की होगी और सरकारी तंत्र से प्रधानमंत्री को जानकारी मिली होगी।”
जिंदा जेपी को संसद ने दे दी श्रद्धांजलि
दिल्ली में बिना किसी आधिकारिक पुष्टि के जेपी के निधन की सूचना तेजी से फैलने लगी। आकाशवाणी ने दोपहर एक बजे के बाद जेपी के निधन की खबर देनी शुरू कर दी। प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के हवाले से लोकसभा अध्यक्ष केएस हेगड़े ने संसद में निधन की सूचना दे दी। श्रद्धांजलि व सामूहिक मौन के बाद सदन को स्थगित कर दिया गया।
चंद्रशेखर ने जब दिल्ली पार्टी कार्यालय में फोन किया तो पता चला कि ज्यादातर लोग जेपी की शोकसभा में शामिल होने लोकसभा गए हैं। फोन पर हुई बातचीत से चंद्रशेखर हैरान थे। वह अपनी आत्मकथा में लिखते हैं, ”अस्पताल से हम लोग तुरंत आए थे। लेकिन हमें कोई खबर नहीं मिली। तो दिल्ली कैसे खबर पहुंच गई? फिर भी हम लोग तुरंत अस्पताल के लिए चल दिए। जब हम वहां पहुंचे तो हजारों की भीड़ थी।
अस्पताल के कर्मचारी, निदेशक और खुद मथुरा दास बहुत घबराए हुए थे। मैंने पूछा, क्या बात है? तो मथुरा दास ने कहा कि आपको पता नहीं किसी ने जेपी के मरने की अफवाह उड़ा दी है। भीड़ के सामने एक एम्बेसडर कार फंसी थी। मैं उसकी छत पर चढ़ गया। लोगों से कहा: शोर मत मचाइए। यह अस्पताल है। जेपी जीवित हैं। किसी ने गलत अफवाह उड़ा दी है। इसी कारण अस्पताल वाले एहतियात बरत रहे हैं। इस तरह वहां का संकट टला।”
इधर दिल्ली में सरकार को अपनी गलती सुधारने के लिए लोकसभा के स्थगन के चार घंटे बाद ही फिर से बैठक बुलानी पड़ी। तब विपक्षी कांग्रेस के सांसद जमकर सरकार पर बरसे। प्रधानमंत्री को संसद और देश से माफी मांगनी पड़ी।