भारत, चीन और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के बीच नई तरह की साझेदारी का विकास हो रहा है। चीन-भारत गतिरोध के बीच ही संयुक्त अरब अमीरात एक अद्वितीय भू-आर्थिक शक्ति के रूप में उभर रहा है। रणनीतिक तटस्थता और व्यापार-प्रथम व्यवहारिकता पर आधारित अपनी विदेश नीति को सफलतापूर्वक विकसित करते हुए संयुक्त अरब अमीरात ने दोनों एशियाई महाशक्तियों के साथ गहरे, भरोसेमंद और स्वतंत्र संबंध स्थापित किए हैं।
भारत और चीन दोनों ही संयुक्त अरब अमीरात के साथ अपने मजबूत संबंधों को बनाए रखने में रुचि रखते हैं इसलिए उनके पास इसके संरक्षण में समझौतों का प्रोत्साहन है। यह संरचना एक अप्रत्यक्ष भरोसे का निर्माण करती है, जहां संयुक्त अरब अमीरात की विश्वसनीयता वाणिज्यिक जुड़ाव की गारंटी देती है। दोनों दक्षिण एशियाई शक्तियां साझा हितों को साकार कर पाती हैं।
विरोधाभास में संतुलन
भारत और चीन के बीच संबंध एशिया के सबसे बड़े विरोधाभासों में से एक है। दोनों राष्ट्र महाद्वीपीय पड़ोसी और सभ्यतागत रूप से समतुल्य हैं और वित्त वर्ष 2024-2025 में उनका द्विपक्षीय व्यापार लगभग 128 अरब डालर था जो गहरी आर्थिक सहनिर्भरता को दर्शाता है। फिर भी, यह आर्थिक वास्तविकता रणनीतिक अविश्वास की बढ़ती मात्रा की नींव पर टिकी है जो दशकों पुराने सीमा विवाद से और भी गहरा हो गया है, जो 2020 में हिमालय में फिर से सामने आया।
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द्विपक्षीय सहयोग और शर्त
चीन की रणनीतिक सोच में अक्सर भारत को एक उभरती हुई वैश्विक शक्ति के बजाय दक्षिण एशियाई शक्ति के रूप में देखने के कारण उसे तनाव के एक स्रोत की तरह देखा जाता है जिससे दोनों देशों के बीच लगातार दूरी बनी रहती है। विदेश नीति में मूलभूत मतभेदों से ये समस्याएं और भी जटिल हो जाती हैं; बेजिंग अक्सर राजनीतिक विवादों को आर्थिक संबंधों से अलग रखता है, जबकि नई दिल्ली द्विपक्षीय सहयोग को अधिक समग्र रूप से परिभाषित करती है, जहां एक सुरक्षित सीमा स्वस्थ आर्थिक संबंधों के लिए एक अनिवार्य शर्त है।
चीन की रणनीति
चीन की रणनीतिक गणना में भारत को एक उभरती हुई वैश्विक शक्ति के बजाय दक्षिण एशियाई शक्ति के रूप में देखा जाता है। चीन का यह दृष्टिकोण अमेरिका-चीन संबंधों में भी स्पष्ट है, जहां रणनीतिक भरोसे के बिना भी व्यापक व्यापार होता है। हालांकि, भारत के साथ स्थिति अलग है जैसा कि विदेश मंत्री एस जयशंकर ने जोर देकर कहा है कि सीमा पर शांति और स्थिरता की स्थिति बिगड़ने पर संबंध सामान्य नहीं रह सकते। सीमा की प्रधानता का यह सिद्धांत, भारत-चीन संबंधों को सार्थक रूप से मजबूत करने के लिए रणनीतिक भरोसे को अनिवार्य तत्त्व बनाता है न कि वैकल्पिक। इसके बिना, अपार आर्थिक क्षमता राजनीतिक और सुरक्षा जोखिमों से सीमित रह जाती है।
भारत को लाभ की उम्मीद
त्रिपक्षीय ढांचे के तहत, भारत को अपने विकास के लिए संयुक्त अरब अमीरात और चीन की पूंजी के साथ-साथ चीनी प्रौद्योगिकी तक पहुंच प्राप्त होगी। चीन विश्व स्तरीय प्रौद्योगिकी, उन्नत लाजिस्टिक्स और विशाल पूंजी भंडार प्रदान करता है। संयुक्त अरब अमीरात आधारित ढांचा भारत को राजनीति से मुक्त और विश्वसनीय प्रवेश द्वार प्रदान करेगा। संयुक्त अरब अमीरात अपनी स्थापित तटस्थता, विश्व स्तरीय बुनियादी ढांचे, परिष्कृत वित्तीय केंद्रों और सुदृढ़ कानूनी प्रणालियों की पेशकश भी करता है।
एशिया के दो सबसे बड़े विकास केंद्रों को जोड़ने वाले एक आर्थिक केंद्र के रूप में, यह पूंजी और व्यापार के लिए एक वैश्विक केंद्र बनने की अपनी महत्त्वाकांक्षा को और आगे बढ़ाएगा। अक्टूबर 2024 में रूस में हुए ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात के बाद भारत और चीन ने सतर्क तरीके से संबंध सामान्य करने की दिशा में कदम बढ़ाए। दोनों देशों को इसी दिशा में आगे बढ़ना होगा। साथ ही, सीमा विवाद को लेकर जारी बातचीत में दोनों देशों को किसी भी अनावश्यक उकसावे से बचने की कोशिश करनी होगी। – जयदेव रानाडे, पूर्व सदस्य, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड।
इस शंघाई हवाई अड्डे की घटना के बाद पैदा हुआ तनाव ऐसे समय में सामने आया है जब भारत विदेशी निवेश नियमों में दी गई ढील की समीक्षा पर विचार कर रहा है। इसे भारत से जमीनी सीमा साझा करने वाले देशों से निवेश को नियंत्रित करने के लिए लाया गया था। भारत की विभिन्न देशों के साथ चल रही एफटीए कवायद पर चीन को गौर करना होगा।
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चीन-भारत के बीच सीमा विवाद
इस मामले में कूटनीतिक मामलों के जानकार मनोज केवलरमानी ने कहा, “हाल में अरुणाचल प्रदेश की एक भारतीय महिला को चीन से होकर यात्रा करते समय शंघाई हवाई अड्डे पर 18 घंटे तक रोके जाने की घटना से विवाद खड़ा हो गया। चीनी अधिकारियों ने कहा कि अरुणाचल प्रदेश चीन का हिस्सा है इसलिए उसका भारतीय पासपोर्ट मान्य नहीं है और उससे चीनी पासपोर्ट के लिए आवेदन करने को कहा गया। महिला ने बताया कि अक्टूबर 2024 में उसकी चीन यात्रा बिना किसी समस्या के हुई थी।
इस पर भारत के विदेश मंत्रालय ने चीन के सामने कड़ा विरोध दर्ज कराया और साफ कहा कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न हिस्सा है और उसके नागरिक भारतीय पासपोर्ट पर यात्रा कर सकते हैं। सरकार ने चीनी पक्ष से आश्वासन मांगा कि भारतीय नागरिकों को निशाना नहीं बनाया जाएगा और लोगों को सावधानी बरतने की सलाह दी। चीन ने दोहराया कि वह अरुणाचल प्रदेश को मान्यता नहीं देता जिसे वह ‘दक्षिण तिब्बत’ कहता है। इस रुख का चीन के राजदूत और पाकिस्तान ने भी समर्थन किया। शंघाई हवाई अड्डे की घटना ने भारतझ्रचीन तनाव उजागर किया, सामान्यीकरण के बावजूद चीन दबाव की नीति अपनाए हुए है।
