दिल्ली की उत्तर-पूर्वी लोकसभा सीट इन दिनों चर्चा में बनी हुई है। बीजेपी ने यहां से वर्तमान सांसद मनोज तिवारी पर एक बार फिर भरोसा जताया है। वहीं, कांग्रेस ने यहां से जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार को उम्मीदवार बनाया है। कन्हैया कुमार पहले ऐसे नेता नहीं हैं जो स्टूडेंट पॉलिटिक्स से मुख्यधारा की राजनीति में आए हैं। दिल्ली की दो बड़ी यूनिवर्सिटी जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय और दिल्ली विश्वविद्यालय में छात्र राजनीति से जुड़े कई नेता राष्ट्रीय राजनीति में प्रमुखता से उभरे हैं, उनमें अरुण जेटली, अजय माकन, प्रकाश करात, सीताराम येचुरी और डीपी त्रिपाठी ने नाम प्रमुख हैं।
इसके अलावा वर्तमान सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी (एबीवीपी से), कांग्रेस महासचिव के सी वेणुगोपाल, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, कर्नाटक के उप मुख्यमंत्री डी के शिवकुमार और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सभी एक समय में छात्र नेता थे।
अरुण जेटली- भाजपा के प्रभावशाली नेता और केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली 1974 में दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष थे। बाद में उन्होंने भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार में वित्त, वाणिज्य और कानून जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालयों का कार्यभार संभाला। 1973 में जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व वाली “संपूर्ण क्रांति” में उनकी भागीदारी और आपातकाल के दौरान उनकी हिरासत ने उन्हें जनसंघ में प्रतिष्ठा दिलाई। जिसके बाद वह जनसंघ में ही शामिल हो गए। 1980 में जब भाजपा का गठन हुआ तो उन्हें पार्टी की दिल्ली इकाई के सचिव का पद दिया गया।
अजय माकन ने भी अपना राजनीतिक करियर DUSU से शुरू किया और 1985 में भारतीय राष्ट्रीय छात्र संघ के सदस्य के रूप में इसके अध्यक्ष बने। एबीवीपी के मेंबर विजय जॉली ने भाजपा के साथ राजनीति में कदम रखने से पहले 1980 में डूसू अध्यक्ष के रूप में कार्य किया था।
जेएनयू ने राजनीति को कई दिग्गज दिए हैं, जिनमें दो वामपंथी दिग्गज प्रकाश करात और सीताराम येचुरी भी शामिल हैं। करात छात्र राजनीति से जुड़े थे और उन्हें जेएनयूएसयू का तीसरा अध्यक्ष चुना गया था। वह 1974 और 1979 के बीच सीपीआईएम की छात्र शाखा, स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया के दूसरे अध्यक्ष भी थे। उन्होंने आपातकाल के दौरान डेढ़ साल तक अंडरग्राउंड काम किया। छात्र राजनीति में डंका बजाने वाले कई स्टूडेंट लीडर कांग्रेस में भी शामिल हैं। NSUI मेंबर अलका लांबा, जो DUSU अध्यक्ष भी बनीं थीं, वह 2015 में चांदनी चौक से दिल्ली विधानसभा के लिए चुनी गईं थीं।
विजय गोयल- एक अन्य छात्र नेता जिन्होंने एबीवीपी से शुरुआत की, वो थे चांदनी चौक के पूर्व सांसद और मंत्री विजय गोयल थे। वह 1977 में DUSU के प्रेसिडेंट थे। विजय गोयल श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स के पूर्व छात्र और रोहिणी से तीन बार नगर निगम पार्षद रहे थे। एबीवीपी में शामिल होने से पहले उन्होंने 1980 में जनता विद्यार्थी मोर्चा के सचिव के रूप में शुरुआत की और तीन साल बाद संयुक्त संयोजक पद पर पदोन्नत हुए। गोयल आरएसएस के सदस्य थे और आपातकाल के दौरान जेल भी गए थे। हालांकि, उनके सरकार विरोधी संघर्ष ने उन्हें 1977 में एबीवीपी उम्मीदवार के रूप में डूसू में अध्यक्ष पद सुरक्षित करने में मदद की थी।
प्रकाश करात- सीपीएम नेता प्रकाश करात जो उस समय ब्रिटेन में एडिनबर्ग विश्वविद्यालय के छात्र थे, ने अपने प्रोफेसर और मार्क्सवादी इतिहासकार विक्टर कीरमन के मार्गदर्शन में रंगभेद के खिलाफ अभियान चलाया। 1970 में भारत लौटने के बाद वे पीएचडी स्कॉलर के रूप में जेएनयू में शामिल हुए। एसएफआई के संस्थापक सदस्य के रूप में उन्होंने परिसर में मार्क्सवादी राजनीति को शुरू करने में मदद की। आपातकाल के दौरान वह लोगों को संगठित करने के लिए अंडरग्राउंड हो गए और दो बार गिरफ्तार किए गए। उन्होंने आपातकाल के दौरान डेढ़ साल तक अंडरग्राउंड काम किया था। करात 1974 और 1979 के बीच दो बार एसएफआई से जेएनयू के छात्र संघ अध्यक्ष चुने गए। बाद में वह सीपीएम में शामिल हो गए। वह 1974 और 1979 के बीच सीपीआईएम की छात्र शाखा, स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया के दूसरे अध्यक्ष भी थे।
सीताराम येचुरी- सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी अर्थशास्त्र में पीएचडी करने के लिए जेएनयू में एडमिशन लेने के बाद राजनीतिक रूप से सक्रिय हो गए। वह 1974 में सीपीएम की छात्र शाखा, स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया (SFI) के सदस्य बने और एक साल बाद वह पार्टी में भी शामिल हो गए। आपातकाल के दौरान एसएफआई सदस्य के रूप में उनके विरोध प्रदर्शन और उसके बाद उनकी गिरफ्तारी ने उनके लिए जेएनयूएसयू के अध्यक्ष बनने का मार्ग प्रशस्त किया। सीताराम येचुरी 1975 में कुछ समय के लिए अंडरग्राउंड हो गए थे, जब वे अपनी गिरफ्तारी से पहले आपातकाल के खिलाफ विरोध कर रहे थे। आपातकाल के बाद वह तीन बार जेएनयूएसयू के अध्यक्ष चुने गए।
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नेता जिन्होंने स्टूडेंट पॉलिटिक्स से राजनीति में रखा कदम
लालू यादव- बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव की राजनीतिक यात्रा तब शुरू हुई जब वह 1970 में पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के महासचिव बने। वह 1973 में इसके अध्यक्ष भी बने। जय प्रकाश नारायण के छात्र आंदोलन जिसे “बिहार आंदोलन” कहा जाता है उसमें लालू शामिल रहे। राज्य में बढ़ती महंगाई, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी के बीच उन्होंने बिहार छात्र संघर्ष समिति के अध्यक्ष के रूप में नेतृत्व भी किया।
अनंत कुमार- रसायन और उर्वरक मंत्री अनंत कुमार 1977 में कर्नाटक विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान एबीवीपी के सदस्य बने। उन्होंने “कैंपस बचाओ आंदोलन” का नेतृत्व किया और एबीवीपी के राष्ट्रीय सचिव बने।
नूपुर शर्मा- उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदू कॉलेज से अर्थशास्त्र में स्नातक की डिग्री ली है। बाद में उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से लॉ में ग्रेजुएशन किया। एक स्टूडेंट के रूप में, वह संघ परिवार की छात्र शाखा, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) में शामिल हो गईं और 2008 में दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ का अध्यक्ष पद जीता। लंदन विश्वविद्यालय के लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से कानून में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त करने के बाद 2010-2011 में नूपुर शर्मा भाजपा कार्यकर्ता बन गईं। 2013 में वह दिल्ली बीजेपी की कार्यसमिति की सदस्य बनीं।
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आरिफ मोहम्मद खान- वह 1971 से 1972 तक अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय छात्र संघ के महासचिव और 1972 से 1973 तक इसके अध्यक्ष रहे। इससे उन्हें मुख्यधारा की राजनीति में आने में मदद मिली।
ममता बनर्जी- कोलकाता के जोगमाया देवी कॉलेज में एक छात्र नेता के रूप में, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कांग्रेस की छात्र शाखा, छात्र परिषद यूनियनों की स्थापना की। इसने उन्हें तीन से चार साल के भीतर कांग्रेस के एक जमीनी कार्यकर्ता से इसकी युवा विंग की महासचिव बना दिया था।
मदन लाल खुराना- भाजपा नेता और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री मदन लाल 1959 में इलाहाबाद छात्र संघ के महासचिव बने और फिर 1960 में एबीवीपी के महासचिव बने। उन्होंने जनसंघ की दिल्ली शाखा की स्थापना की जो 1980 में भाजपा में बदल गई।
अशोक गहलोत- राजस्थान के पूर्व सीएम अशोक गहलोत एनएसयूआई में शामिल हुए और 1974 में इसकी राजस्थान इकाई के अध्यक्ष बने, जिससे राष्ट्रीय राजनीति में उनकी भूमिका मजबूत हुई।
जगत प्रकाश नड्डा- जेपी आंदोलन के दौरान पटना विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई करते हुए जेपी नड्डा ने राजनीति में अपना हाथ आजमाया। उन्होंने छात्र संघर्ष समिति के सदस्य के रूप में आपातकाल विरोधी प्रदर्शनों में भाग लिया और 1977 में एबीवीपी सचिव बने और फिर 1991 में भारतीय जनता युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने।
राजनाथ सिंह- राजनाथ 1964 से 13 साल की उम्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े थे और 2 साल बाद राजनीति में शामिल हो गये। 1969 और 1971 के बीच वह गोरखपुर में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (आरएसएस की छात्र शाखा) के संगठनात्मक सचिव थे। वह 1972 में आरएसएस की मिर्ज़ापुर शाखा के महासचिव बने। उन्हें जेपी आंदोलन से जुड़ने के कारण 1975 में आपातकाल के दौरान गिरफ्तार भी किया गया था और 2 साल की अवधि के लिए हिरासत में रखा गया था। जेल से रिहा होने के बाद, राजनाथ सिंह जयप्रकाश नारायण द्वारा स्थापित जनता पार्टी में शामिल हो गए और 1977 में मिर्ज़ापुर से विधान सभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। 1980 में भाजपा में शामिल हो गये और पार्टी के शुरुआती सदस्यों में से एक थे।