अभी तक जो बात समझ में आई है, वह यह कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन निश्चय ही अशांति नहीं चाहते, लेकिन जो देखा जा रहा है कि जिस मार्ग पर वे चल रहे हैं, हलचल और बिलप्व के भय से विचलित भी होना नहीं चाहते। खासकर, उनको दिया गया दंड और भी ध्यान आकृष्ट करेगा और जैसा कि उनका विश्वास है, समाज उनके उद्देश्यों को और आगे बढ़ाएगा। उनको यह भी विश्वास है कि आत्मबलिदान की मोहकता में यह बात दब जाएगी कि तर्कहीन आग्रह द्वारा वे स्वयं अपने ऊपर विपत्ति लेकर आए हैं।

विपक्षी दलों की रैली में उत्साह अचंभित करने वाला रहा है

लोकतंत्र में यह विश्वास रखा जाता है कि ऐसी कोई सरकार नहीं है, जो व्यावहारिक लाभप्रद वृत्ति से प्रवृत्त न हो और सभी सरकारें कम-से-कम प्रतिरोध के मार्ग पर चलती है। पिछले दिनों दिल्ली के रामलीला मैदान में जो सर्वदलीय हुजूम उमड़ा, उस जनसैलाब को क्या केंद्रीय सत्तारूढ़ दल भाजपा रोकने में अपने को सक्षम मान रही है? हाथी पृथ्वी का विशाल जीव है, लेकिन जब उसकी सूंड़ में छोटी सी चींटी घुस जाती है, तो उसे भी बेहाल होना पड़ता है और उसकी सारी शक्ति छिन्न-भिन्न होने लगती है। दिल्ली के खचाखच भरे रामलीला मैदान में पिछले दिनों विपक्षी दलों का जो उत्साह देखने को मिला, वह तो अचंभित करने वाला था। सभी नेताओं ने अपनी अपनी बात कही और अपनी पीड़ा को भी सार्वजनिक किया। साथ ही वर्तमान केंद्र सरकार के विभिन्न मुद्दों को कई नेताओं ने सार्वजनिक करते हुए उसका हल जनता से निकालने के लिए कहा।

विपक्ष का सवाल- देश में गैरबराबरी दर्जे पर सत्तारूढ़ दल चुप क्यों

विपक्षी दलों का सबसे बड़ा प्रश्न सत्तारूढ़ दल से यह था कि देश में जो पिछले चालीस वर्षों में युवाओं में बेरोजगारी बढ़ी है, उसके लिए सरकार ने क्या किया? किसान सरकार की नीतियों के विरुद्ध आंदोलन करते रहे, जिसमें लगभग सात सौ किसान अपना जीवन समर्पित कर चुके हैं, उसका कोई हल सरकार द्वारा नहीं निकाला गया। तीसरी महत्वपूर्ण बात विपक्षियों ने आरोप लगाया कि देशभर में महिलाओं के साथ जो अमानवीय और घृणित अपराध किया जा रहा है, उसके खिलाफ सरकार चुप क्यों है? इस देश में जो गैर बराबरी का दर्जा अंग्रेजी हुकूमत के बाद भी बंद नहीं किया जा सका, उसके लिए सत्तारूढ़ क्यों चुप है?

‘चंदा के बदले धंधा का फार्मूला, काले धन के साथ साथ घूसखोरी’

इसके अतिरिक्त सरकार का यह फार्मूला बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि चंदा के बदले धंधा देना एक तरह से काले धन के साथ साथ घूसखोरी को भी बढ़ावा दिया गया है। इसके अतिरिक्त कांग्रेस ने कहा कि सरकार चाहती है कि वह संविधान बदले, इसलिए विपक्षियों को खत्म कर दिया जाए, इसलिए विपक्षियों के और खासकर सबसे बड़ी विपक्षी कांग्रेस के खाते को फ्रीज कर दिया गया है और गठबंधन के नेताओं को डरा-धमकाकर जेल में बंद किया जा रहा है। ऐसे में, अब चुनाव के समय में कोई दल अपना प्रचार कैसे करे?

राहुल बोले- किसानों, महिलाओं, जवानों के लिए नई कानून लाएंगे

रामलीला मैदान में आयोजित सर्वदलीय रैली से पहले ही कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और सांसद राहुल गांधी ने कहा था कि यदि उनकी सरकार बनती है, तो उनकी सरकार किसान, जिस कानून के लिए आंदोलित हैं, उसे ठीक किया जाएगा। महिलाओं पर हो रहे अत्याचार के निदान के लिए कानून बनाया जाएगा। सेना के जवानों के लिए जो कानून वर्तमान सरकार ने बनाया है, उसमें जवानों के हित के लिए काम करेगी। गरीब और कमजोर श्रमिकों के जीवन को सुगम बनाने के लिए कार्य किया जाएगा तथा आर्थिक रूप से कमजोर, ओबीसी के लिए काम किया जाएगा।

इधर, दूसरी ओर विपक्षी उत्साह और रामलीला मैदान की रैली को देखकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मेरठ में कहा कि सरकार इस बात का हिसाब लगा रही है कि विभिन्न स्रोतों से आए कालेधन का प्रयोग जनहित के लिए किस तरह किया जाए। उन्होंने देश को संबोधित करते हुए कहा कि जो कलाधन आया है, उसे जनता में बांट दिया जाएगा। अब इस बात की चर्चा देश में जगह-जगह हो रही है कि जिस प्रकार पिछले चुनाव में प्रधानमंत्री ने वादा किया था कि वह विदेशों से कालाधन लाकर अपने देश के प्रत्येक जनता के खाते में पंद्रह लाख जमा कराएगी, जिसे बाद में गृहमंत्री ने ‘चुनावी जुमला’ करार दिया था, उसी बात को प्रधानमंत्री फिर से दोहरा रहे हैं, इसलिए कि लोकसभा चुनाव इसी महीने होने जा रहा है और चुनाव के बाद इसे भी ‘जुमला’ करार दिया जाएगा।

सच तो यह है कि बरामद कालाधन तो सरकारी खजाने में जमा हो जाता है, फिर किस अधिकार से यह धन देश की जनता को प्रधानमंत्री द्वारा बांटा जाएगा, यह बात समझ से परे है। समीक्षक इसे भी चुनावी जुमला ही मानते हैं।

दूसरी बात जो आज जनता के बीच चर्चा का विषय है, वह यह कि प्रधानमंत्री रामलीला मैदान की रैली से इस कदर डर गए हैं कि सारे नियम, कायदे-कानून को किनारे लगाते हुए अपने विरोधी दलों पर निशाना साधकर एक-एक को भिन्न-भिन्न अपराधों के आरोप लगाकर जेल में बंद कर रहे हैं। वहीं, विपक्षी इसलिए डरे हुए हैं कि पता नहीं किस समय उनके यहां छापा मारकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाए। वे तो अब यह भी कहने लगे हैं कि यह अघोषित आपातकाल की स्थिति हो गई है। 25 जून, 1975 को तो आपातकाल की घोषणा के बाद सभी विपक्षियों को जेल में बंद कर दिया गया, लेकिन आज?

चुनाव में जीत-हार का निर्णय तो देश की जनता करती है, लेकिन 2024 का यह लोकसभा का चुनाव सत्तापक्ष और विपक्ष के लिए जीने- मरने का प्रश्न बन गया है। ऐसा इसलिए कि सत्तारूढ़ भाजपा को तीसरी बार सत्तारूढ़ होना है, पर विपक्षी महागठबंधन इस बात के लिए कटिबद्ध है कि किसी भी तरह से वर्तमान सरकार को हटाना है और गठबंधन की सरकार बनाना है।

यह ठीक है कि चुनाव में जीत के लिए आरोप-प्रत्यारोप सत्तारूढ़ विपक्षी एक-दूसरे पर लगाते रहे हैं, लेकिन कोई भी दल आजादी के बाद पहली बार इतने निचले स्तर पर उतरकर अपनी जीत के लिए समाज में विष वमन कर रहा है, धर्म के आधार पर समाज को बांट रहा है, ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। लेकिन, चुनाव प्रचार को देखकर आज कोई भी यह कह सकता है कि सत्ता के लिए बड़े से बड़े राजनेता किस स्तर पर नीचे उतर कर अपना प्रचार अभियान चला रहे हैं। दुर्भाग्य समाज का, दुर्भाग्य संविधान निर्माताओं का, जिन्होंने अकूत बुद्धि और कम संसाधन में विश्व के सर्वश्रेष्ठ संविधान का निर्माण किया, लेकिन उस संविधान की आड़ में उसकी धज्जियां उड़ाकर स्वार्थी और सत्तालोलुप नेताओं ने आज अपना हित साधना शुरू कर दिया है, जो नितांत दुखद है। पता नहीं इसका क्या अंत होगा, होगा भी या नहीं, क्योंकि देश अभी संशय की स्थिति में है।

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वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक निशिकांत ठाकुर।