जून 1999 की शुरुआत में इंडियन एक्सप्रेस में एक खबर छपी। इस खबर में रेडियो पाकिस्तान के हवाले से बताया गया था कि पाकिस्तान ने भारत के कुछ जवानों को बंदी बना लिया है। कैप्टन सौरभ कालिया के छोटे भाई वैभव की निगाह जब इंडियन एक्सप्रेस की इस रिपोर्ट पड़ी तो सशंकित हो गए। अपनी मां को कुछ बताए बगैर सीधे पिता के दफ्तर गए और वहां से दोनों पालमपुर के होल्टा कैंटोनमेंट पहुंचे। वहां उन्हें बताया गया कि कैप्टन सौरभ कालिया (Saurabh Kalia) तो मई की शुरुआत से ही लापता हैं। यह जानकर कैप्टन कालिया के पिता और भाई के पैरों तले जमीन खिसक गई।

मेडिकल एंट्रेस दिया फिर आर्मी ज्वाइन कर ली

कैप्टन सौरभ कालिया कारगिल युद्ध के पहले शहीद थे। मूल रूप से हिमाचल प्रदेश के पालमपुर के रहने वाले सौरभ की दिली ख्वाहिश थी कि वह डॉक्टर बनें। मेडिकल एंट्रेंस एग्जाम भी दिया, लेकिन अच्छा कॉलेज नहीं मिला। सौरभ को पता था कि उनके माता-पिता प्राइवेट कॉलेज में दाखिला दिलाने के लिए भारी-भरकम पैसे का इंतजाम नहीं कर पाएंगे। इसलिये हिमाचल प्रदेश एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी में दाखिला ले लिया। ग्रेजुएशन के बाद कंबाइंड डिफेंस सर्विसेज (CDS) की परीक्षा क्वालीफाई की और अगस्त 1997 में इंडियन मिलिट्री एकेडमी (IMA) ज्वाइन कर ली।

नौकरी लगी तो मां को थमा दिया था ब्लैंक चेक

12 दिसंबर 1998 को आईएमए की पासिंग आउट परेड के बाद सौरभ पहली बार घर आए। इंडियन एक्सप्रेस की पूर्व पत्रकार और लेखिका रचना रावत बिष्ट अपनी किताब ‘कारगिल: अनटोल्ड स्टोरीज फ्रॉम द वॉर’ (Kargil: Untold Stories from the War) में लिखती हैं कि मिलिट्री ज्वाइन करने के बाद सौरभ जब पहली बार अपने घर आए तो इस बात से बहुत खुश थे कि अब उन्हें तन्ख्वाह मिलने लगेगी। उन्होंने अपनी मां को एक ब्लैंक चेक दिया और कहा, ‘अब मैं कमाने लगा हूं… तुम्हें चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। जब भी जरूरत हो मेरे अकाउंट से पैसे निकाल लेना…’।

रचना लिखती हैं कि दुर्भाग्यवश ना तो सौरभ और ना ही उनकी मां उस अकाउंट से कोई पैसा निकाल पाए। पहली सैलरी आने से पहले ही कैप्टन सौरभ कालिया, कारगिल युद्ध में शहीद हो गए थे।

जाते वक्त मां से कह गए थे- एक दिन दुनिया…

कैप्टन सौरभ कालिया अपने परिवार के साथ 15 दिन की छुट्टियां बिताने के बाद बरेली रवाना हुए, जहां उन्हें जम्मू कश्मीर में 4, जाट बटालियन ज्वाइन करने से पहले जाट रेजिमेंटल सेंटर में रिपोर्ट करना था। सौरभ ने ट्रेन में बैठने से पहले अपनी मां के पैर छूते हुए कहा, ‘अम्मा, देखना एक दिन मैं ऐसा काम कर जाऊंगा कि सारी दुनिया में मेरा नाम होगा…’। सौरभ की मां ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, ‘बड़ा आया नाम करने वाला…पहले ठीक से बरेली तो पहुंच जा…’।

परिवार से वो आखिरी बातचीत

बरेली में रिपोर्ट करने के बाद कैप्टन सौरभ कालिया जम्मू कश्मीर चले गए। 30 अप्रैल 1999 को अपने छोटे भाई वैभव को जन्मदिन की बधाई देने के लिए फोन किया और बताया कि अब उन्हें फार्वर्ड पोस्ट पर भेजा जा रहा है, हो सकता है कुछ दिनों तक बातचीत ना हो पाए। सौरभ कालिया ने अपनी मां से कहा कि मेरी चिंता मत करना, मैं 29 जून को अपने जन्मदिन पर घर जरूर आऊंगा। लेकिन उसके बाद उनकी परिवार से कोई बातचीत नहीं हो पाई।

5 साथियों संग निकल पड़े कैप्टन कालिया

कैप्टन सौरभ कालिया के जम्मू-कश्मीर पहुंचने के कुछ दिनों बाद ही 3 मई 1999 को एक चरवाहे ने कारगिल की ऊंची चोटियों हथियारबंद पाकिस्तानियों को देखा तो फौरन भारतीय सेना को इसकी जानकारी दी। रचना रावत लिखती हैं कि 14 मई को सौरभ कालिया अपने कुछ साथियों के साथ कारगिल के काकासर में बजरंग पोस्ट पर पेट्रोलिंग के लिए निकले। 17450 फीट की ऊंचाई पर स्थित बजरंग पोस्ट पर गर्मी के दिनों में भारतीय सेना के जवान तैनात रहते थे, लेकिन सर्दियों में पोस्ट खाली कर दिया करते थे।

पहले से घात लगाए बैठे थे पाकिस्तानी

पाकिस्तान ने इसका फायदा उठाया और चोरी-छिपे वहां अपनी फौज तैनात करने लगी। कैप्टन सौरभ इस बात से अनजान थे कि बजरंग पोस्ट पर पहले से ही पाकिस्तानी सैनिक घात लगाए उनका इंतजार कर रहे हैं। कैप्टन कालिया और उनके साथी नजदीक पहुंचे तो पाकिस्तानी सैनिकों ने गोलीबारी शुरू कर दी। चूंकि कैप्टन कालिया, पेट्रोलिंग के लिए गए थे इसलिए न तो उनके पास पर्याप्त हथियार थे और न तो गोला बारूद। पाकिस्तानी सैनिकों ने कैप्टन सौरभ कालिया और उनके साथ मौजूद 5 सिपाही- अर्जुन राम, भीकाराम, भंवरलाल बगरिया, मूलाराम और नरेश सिंह को बंधक बना लिया।

दरिंदगी की सारी हदें पार

रचना रावत लिखती हैं कि कैप्टन कालिया और उनके साथी 15 मई 1999 से 7 जून तक पाकिस्तान की कैद में रहे और उनके साथ ऐसा सलूक किया गया जो सोच कर ही रूह कांप जाती है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि कैप्टन कालिया और उनके साथियों को सिगरेट से दागा गया, कान में गर्म सलाखें डाली गईं, उनकी आंखें निकाल ली गई थीं, दांत तोड़ डाले गए थे और एक भी हड्डी सही सलामत नहीं बची थी। यहां तक कि प्राइवेट पार्ट भी काट डाले गए थे और आखिरकार सिर में गोली मार दी गई थी।

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पाकिस्तान ने 9 जून, 1999 को कैप्टन सौरभ कालिया का शव भारत को सौंपा था।

कैप्टन कालिया के चेहरे पर सिर्फ आइब्रो बची थी

9 जून 1999 को जब पाकिस्तान ने कैप्टन सौरभ कालिया और उनके साथियों का शव भारत को सौंपा। कैप्टन कालिया के भाई वैभव बताते हैं कि पार्थिव शरीर पालमपुर लाया गया तो सेना के अधिकारियों ने मुझसे उनकी पहचान करने को कहा। कैप्टन कालिया के चेहरे पर आइब्रो को छोड़कर कुछ बचा ही नहीं था। मैंने अपने माता-पिता से कहा कि वे सौरभ के पार्थिव शरीर को न देखें। महज 22 साल की उम्र में देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर करने वाले कैप्टन सौरभ कालिया का पालमपुर में ही अंतिम संस्कार किया गया था।