जन सुराज पार्टी के नेता पवन कुमार वर्मा का कहना है कि कांग्रेस को पुनर्जीवित करने की कोशिश नाकाम होने के बाद प्रशांत किशोर ने राजनीति में कदम रखा। उनका दावा है कि जन सुराज पार्टी इस धारणा को बदल देगी कि बिहार बदल नहीं सकता। उन्होंने कहा कि हम धर्म और जाति से हट कर बुनियादी बदलाव की राजनीति कर रहे हैं। उनका आरोप है कि खराब सेहत के कारण नीतीश कुमार का अपने मंत्रिमंडल व मंत्रियों के भ्रष्टाचारपर नियंत्रण नहीं है, जिस वजह से वे साख खो चुके हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि कर्ज में डूबे बिहार में नीतीश कुमार सरकार रेवड़ियां बांट रही है जो संविधान की सोच के विपरीत है। नई दिल्ली में पवन कुमार वर्मा के साथ कार्यकारी संपादक मुकेश भारद्वाज की बातचीत के चुनिंदा अंश।

भारतीय राजनीति में प्रशांत किशोर चुनावी रणनीतिकार के रूप में उभरे। 2014 के केंद्रीय सत्ता परिवर्तन से लेकर कई राज्यों में सरकारें बनवाने का श्रेय उन्हें मिला। फिर ऐसा क्या हुआ कि उन्होंने प्रत्यक्ष राजनीति में आने का फैसला किया?
पवन कुमार वर्मा: प्रशांत किशोर लगभग दस वर्षों तक चुनावी रणनीतिकार के रूप में रहे। प्रधानमंत्री से लेकर कई मुख्यमंत्रियों के सत्ता हासिल करने में उनकी भूमिका रही। उनके साथ हम सबके मन में था कि कांग्रेस को पुनर्जीवित किया जाए। इस मसले पर पूरे मसविदे के साथ लगभग एक हफ्ते तक गंभीर बातचीत हुई। प्रशांत किशोर की प्रस्तुत की गईं लगभग 570 ‘स्लाइड’ कांग्रेस को पसंद आई। उसे क्रियान्वित करने में कांग्रेस ने जो शर्तें रखीं वह प्रशांत किशोर को मंजूर नहीं थीं। उन्होंने कांग्रेस के साथ काम करने से इनकार कर दिया। वे महज 45 साल के थे। उन्होंने महसूस किया कि जो उनकी जन्मभूमि और कर्मभूमि है, वहां खुद राजनीति की जाए। वे राजनीति में सत्ता के लिए नहीं, बुनियादी परिवर्तन के लिए आए हैं। लालू यादव या नीतीश कुमार के साथ मिल कर सहयोगी दल तीस साल से बिहार में राज कर रहे हैं। बिहार आज भी तीस साल पहले जितना ही बदहाल है। देश का सबसे गरीब व पिछड़ा राज्य है। प्रशांत किशोर ने संकल्प लिया कि मैं बिहार की जनता के लिए काम करूंगा। उन्होंने दो अक्तूबर 2022 को चंपारण से पद-यात्रा शुरू की। बिहार की गरीब व वंचित जनता के लिए उनका संदेश बहुत स्पष्ट और छोटा था कि धर्म और जाति की राजनीति से ऊपर उठिए। इन्हीं दो चीजों से आपका राजनीतिक इस्तेमाल किया जा रहा है। अपने बच्चों के रोजगार और उनके जीवन में बुनियादी परिवर्तन लाने के लिए वोट दीजिए। उनका संदेश फैलता चला गया।

आपने धर्म और जाति से ऊपर उठ कर राजनीति करने की बात कही। यह देश और बिहार दोनों के संदर्भ में कह रहे हैं? बिहार में क्या जाति के बिना राजनीति संभव है?
पवन कुमार वर्मा:
जाति की राजनीति में सिर्फ बिहार को क्यों देखते हैं? आंध्र प्रदेश से लेकर कर्नाटक तक देखिए, क्या वहां जातिगत समीकरण के तहत राजनीति नहीं हो रही? बिहार में जाति की पकड़ ढीली नहीं हो सकती, या बिहार बदलाव से परे है, हमें इसी सोच को बदलना है। यह सोच ऐतिहासिक संदर्भों में भी गलत है। जयप्रकाश नारायण ने संपूर्ण क्रांति का नारा क्या जाति के संदर्भ में दिया था? 2014 में जब नरेंद्र मोदी आए थे तो क्या उन्हें जाति के आधार पर वोट मिले थे? हम धर्म के खिलाफ नहीं हैं। हम धर्म के दुरुपयोग के खिलाफ राजनीति की बात कर रहे हैं। बिहार में एक चक्र सा बन गया है। राजद के डर से हिंदुओं का भाजपा में जाना और भाजपा के डर से राजद का मुसलिम वोट बैंक बनना। बिहार को इससे ऊपर उठने की जरूरत है।

अभी तो राजनीति का रूप यही है कि विपक्ष को मुसलिम परस्त बता दिया जाता है। आरोप है कि विपक्ष हिंदुओं के मुद्दे पर खामोश रहता है। हिंदू-मुसलिम की राजनीति का जो अखिल भारतीय विस्तार हो चुका है, क्या एक सूबे के चुनाव में इसे चुनौती दी जा सकेगी?
पवन कुमार वर्मा: लोगों के दिमाग में हिंदू-मुसलिम की बात राजनेताओं ने डाली है। आम लोगों के जेहन में बुनियादी रूप से तो यही रहता है कि हम अपनी जिंदगी को बेहतर कैसे बनाएं। लोग शिक्षा, रोजगार और बेहतर स्वास्थ्य प्रणाली चाहते हैं। विभाजनकारी राजनीति के खिलाफ लोगों को आगाह करना हमारा फर्ज है, हम इसे अच्छी तरह से निभा रहे हैं।

प्रशांत किशोर ने अलग-अलग विचारधारा के दलों के साथ काम किया। सरकारों का हिस्सा रहे। किशोर अब उन लोगों के खिलाफ मैदान में हैं, जिनके‘निर्माण’ का श्रेय उन्हें मिलता रहा है। इसे पेशागत शुचिता के खिलाफ न माना जाए? बात राजनीतिक शुचिता की भी है।
पवन कुमार वर्मा:
तब प्रशांत किशोर व्यावसायिक रणनीतिकार थे। आज वे स्वयं राजनीति में प्रवेश कर चुके हैं। वे आज भी रणनीति बना रहे हैं, पर बिहार की जनता के लिए। जन सुराज पार्टी तो बाद में बनी, बदलाव की मुहिम पहले शुरू हो चुकी थी।

आम लोगों को वैचारिक रूप से जागरूक कर पाना कितना मुश्किल है? रणनीतिकार से राजनेता की भूमिका में आना कितना चुनौतीपूर्ण है?
पवन कुमार वर्मा:
यह बहुत मुश्किल था। लगातार दो साल तक 15 से 18 किलोमीटर इस संकल्प के साथ रोज चल रहे थे कि कार या किसी अन्य वाहन में नहीं बैठूंगा। बरसात में भी तंबू में रहे, जो आसान नहीं था।

चर्चा तो उनकी ‘वैनिटी वैन’ की ज्यादा हुई थी।
पवन कुमार वर्मा:
यह चर्चा तो पार्टी बन जाने के बाद पटना आने पर हुई। उस वक्त वे बिना किसी वाहन के चल रहे थे, तंबू में रहते थे।

भारतीय राजनीति में विकल्प के नाम पर आए तीसरे पक्ष का भी एक खाका खिंच चुका है। तीसरा पक्ष मौजूदा दो पक्षों में जो मजबूत पार्टी होती है उसे फायदा पहुंचाता है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने ऐसा ही किया। प्रशांत किशोर पर भी भाजपा को फायदा पहुंचाने के आरोप लग रहे हैं।
पवन कुमार वर्मा:
यह आरोप तो लगना ही है। नई उभरती शक्ति को खारिज कैसे करेंगे। कोई टीम ‘बी’ बताएगा तो कोई टीम ‘सी’ कहेगा। यहां हम न ‘बी’ बनने वाले हैं और न ‘सी’। हम पूर्ण बहुमत से चुनाव जीतेंगे। मौजूदा शक्तियों का सफाया होगा। हम ‘वोट चोर’ हैं। इतनी ‘चोरी’ करेंगे कि पूर्ण बहुमत से जीतेंगे।

आप जिस संदर्भ में ‘वोट चोर’ शब्द का इस्तेमाल कर रहे हैं, उसे मैं समझ रहा हूं। इतने बड़े विश्वास की वजह?
पवन कुमार वर्मा:
वजह जनता का विश्वास है।

क्या बिहार में दिल्ली का दोहराव हो सकता है? दिल्ली में भाजपा और कांग्रेस के बरक्स विकल्प के रूप में उभरी नई पार्टी को सत्ता मिली थी।
पवन कुमार वर्मा:
मैं अरविंद केजरीवाल के खिलाफ कुछ नहीं बोल रहा हूं। बिहार लगभग 14 करोड़ लोगों का प्रदेश है और दिल्ली एक शहर है। अरविंद केजरीवाल को आप देख चुके हैं। जन सुराज को लेकर प्रशांत किशोर कई बार दोहरा चुके हैं कि मैं हारूं या जीतूं बिहार के लिए समर्पित रहूंगा। मैं तब तक यहां रहूंगा, जब तक बिहार को देश के दस अग्रणी राज्यों में न ला दूं।

नीतीश कुमार को लेकर राजनीतिक परिदृश्य एकदम बदल सा गया है। क्या वजह है कि नीतीश कुमार में अभी तक जो राजनीतिक संभावना दिख रही थी, अब नहीं दिख रही?
पवन कुमार वर्मा:
मैं भूटान का राजदूत था। भारतीय विदेश सेवा से इस्तीफा देकर नीतीश कुमार के साथ हुआ था। तब वे अलग नीतीश कुमार थे, भाजपा के पिछलग्गू नहीं थे। प्रशासनिक क्षमता, राजनीतिक शुचिता, व्यक्तिगत ईमानदारी के प्रतीक थे। कोई पारिवारिक हस्तक्षेप नहीं था। वे समाजवादी आंदोलन से निकले सबसे प्रखर नेता थे। उन्होंने बिहार में कुछ हद तक राजद के 15 साल के जंगलराज में बदलाव भी लाया था।

फिर नीतीश कुमार के संदर्भ में गलती कहां से शुरू हुई?
पवन कुमार वर्मा:
मेरा मानना है, 2015 के बाद से। कुर्सी का जो आकर्षण होता है, नीतीश कुमार उसमें उलझते चले गए। एक बार साख पर सवाल उठ गए तो वे बदलते चले गए। आप देखिए, 2015 के बाद कितनी बार उन्होंने अपने रुख में बदलाव किया। इसके अलावा नीतीश कुमार अस्वस्थ हैं। उनका कैबिनेट पर नियंत्रण नहीं है। इसलिए सत्ता की आड़ में उनकी कैबिनेट के कुछ मंत्री लूट मचाए हुए हैं बिहार में।

नीतीश कुमार की पारदर्शिता की भी साख थी। अब प्रशांत किशोर ने उनके उपमुख्यमंत्री पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया है। मेरा सवाल राष्ट्रीय संदर्भ में भी है। अगर एक नेता खुद पाक-साफ रहने का दावा करता है, लेकिन उसके आसपास भ्रष्टाचार हो रहा है तो इसकी जिम्मेदारी किस पर बनती है?इसमें साख किसकी खराब होती है?
पवन कुमार वर्मा: इस मामले में साख नीतीश कुमार की खराब होती अगर वे इस हालत में होते कि कैबिनेट पर नियंत्रण रख सकें। अब तो वे इस हालत में हैं कि कई बार अपने कैबिनेट के मंत्रियों को पहचानते तक नहीं हैं। मैं बड़े दुख के साथ कह रहा हूं कि वे शारीरिक और मानसिक तौर पर थक चुके हैं। उनका अस्वस्थ होना ही सबसे बड़ा कारण है। वरना वे राजनीतिक शुचिता को मान देने वाले नेता थे। उस दौर में, जब वे पूरी क्षमता से काम करते थे, उन्होंने उन मंत्रियों को निष्कासित किया था, जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे।

बिहार में राजनीतिक धारणा बन चुकी थी कि वही पार्टी जीतेगी जिसके साथ नीतीश कुमार रहेंगे। क्या इस बार यह धारणा टूटेगी?
पवन कुमार वर्मा:
टूटेगी नहीं, यह धारणा टूट चुकी है। मैं आपको जमीनी हकीकत बता रहा हूं कि नीतीश कुमार चंद हफ्तों के मुख्यमंत्री हैं। भाजपा ने नीतीश कुमार की वजह से उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाए रखा है। भाजपा का आकलन यह है कि उनका कुछ वोट बैंक हमारी तरफ आएगा। जद (एकी) पूरी तरह बिखर चुकी है। भाजपा का आपको यही वक्तव्य दिखेगा कि वह नीतीश कुमार की अगुआई में चुनाव लड़ेगी। आपको यह बयान नहीं दिखेगा कि अगर वे इस हालत में भी चुनाव जीतते हैं तो वही मुख्यमंत्री रहेंगे।

भाजपा के शीर्ष नेताओं के कुछ बयान हैं कि नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री बनेंगे।
पवन कुमार वर्मा:
ऐसा कभी नहीं बोला है। सिर्फ यही कहा है कि चुनाव मुख्यमंत्री की अगुआई में लड़ेंगे। ये नहीं कहा है कि चुनाव के बाद वे ही मुख्यमंत्री रहेंगे, क्योंकि वे रह ही नहीं सकते।

बिहार में मुख्यमंत्री के सवाल पर दोनों तरफ चुप्पी है। न तो महागठबंधन कह रहा कि तेजस्वी यादव ही मुख्यमंत्री होंगे, और न भाजपा खुल कर मुख्यमंत्री का चेहरा सामने ला रही है।
पवन कुमार वर्मा:
राजग और महागठबंधन दोनों जगहों पर सत्ता की बंदरबांट है। महागठबंधन में किसको कितनी सीटें मिलेंगी, इस पर निर्भर है कि कोई कितना जोड़-घटाव कर सकता है। राजग में भी यही हालत है। पूरा जोड़-घटाव कैबिनेट के पद के हिसाब से हो रहा है, न कि जनता के हिसाब से। बिहार में एक ही पार्टी है जन सुराज जो सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। आज तक भाजपा भी 243 सीटों पर चुनाव नहीं लड़ी है।

भाजपा का आरोप है कि जन सुराज के पास उम्मीदवार ही नहीं हैं।
पवन कुमार वर्मा:
आप देखिएगा, सबसे पहले उम्मीदवारों की सूची हमारी पार्टी से आएगी।

चुनाव आते ही हर राज्य में रेवड़ियां बंटनी शुरू हो जाती हैं। बिहार में आश्चर्यजनक ढंग से ऐसी कई योजनाओं का एलान हुआ है। आरोप है कि बिहार में हर किसी के खाते में, किसी मद के तहत पैसा पहुंचाया जा रहा है।
पवन कुमार वर्मा:
यह पूरी तरह अनैतिक है। कहीं न कहीं संविधान बनाने वालों की सोच के विपरीत है। चुनाव आयोग को इसका संज्ञान लेना चाहिए। मैं बहुत दुख के साथ यह शब्द इस्तेमाल कर रहा हूं कि बिहार में इस समय बेशर्मी से रेवड़ियां बंट रही हैं। यह सब बिना किसी वाजिब आधार के सिर्फ प्रलोभन देने के मकसद से किया जा रहा है। इस समय बिहार पर लगभग चार लाख करोड़ से ज्यादा का कर्ज है। अभी मुझे सटीक आंकड़ा याद नहीं, लेकिन इस कर्ज पर प्रतिदिन लगभग 63 करोड़ का ब्याज है। ऐसी हालत में बिहार सरकार जो वादे कर रही है उसे प्रधानमंत्री की जुबान में रेवड़ी ही कहते हैं। एक अहम बात यह है कि बिहार में लोगों का इन रेवड़ियों पर से विश्वास उठ गया है। जनता जानती है कि चुनाव के समय ऐसे अंधाधुंध वादे किए जाते हैं। इस बार बिहार की जनता रेवड़ियों के धोखे में नहीं आएगी।

अभी बिहार में जिस तरह के राजनीतिक हालात हैं, उसके आधार पर बताइए कि जन सुराज पार्टी का मुख्य मुकाबला राजग से होगा या महागठबंधन से?
पवन कुमार वर्मा:
राजग सिमट चुका है। हमारा किसी से मुकाबला है तो वह राजद से है। राजद आश्वस्त है कि यादव-मुसलमान बंधुआ मजदूर की तरह उसके वोट बैंक हैं। इस वोट बैंक को काफी मान कर अभी तक चुनावी मुहिम भी शुरू नहीं की है राजद ने।

प्रशांत किशोर के खिलाफ सौ करोड़ की मानहानि का दावा किया गया है।
पवन कुमार वर्मा:
उनके पास इसके अलावा विकल्प क्या था? ठोस सबूतों के साथ हमने आरोप लगाए। यह दावा सिर्फ सुर्खियां बनाने के लिए किया गया है। अब हम जाएंगे हाई कोर्ट। ये कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे।

अगर किसी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला तो आपका रुझान किस तरफ होगा?
पवन कुमार वर्मा: हम पूर्ण बहुमत से जीतेंगे। न तो चुनाव पूर्व का गठबंधन करेंगे और न बाद का।