लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे बहुजन समाज पार्टी (BSP) के लिए निराशाजनक रहे। पार्टी लोकसभा में एक भी सीट नहीं जीत पायी। चुनाव में पार्टी के खराब प्रदर्शन के बाद बसपा अब सुधार मोड में है। हाल के लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश के 79 उम्मीदवारों सहित इसके 424 उम्मीदवारों में से किसी के भी जीतने में कामयाब नहीं होने के बाद, मायावती ने अपने कामकाज और संगठन में कई बदलाव किए हैं।

आइये नजर डालते हैं लोकसभा चुनाव में हार के बाद बसपा द्वारा किए गए पांच बड़े बदलावों पर।

लोकसभा में हार के बाद पार्टी की पहली समीक्षा बैठक में मायावती ने जो पहला निर्णय लिया, उनमें से एक भतीजे आकाश आनंद को उनके एकलौते राजनीतिक उत्तराधिकारी और पार्टी के राष्ट्रीय समन्वयक के रूप में बहाल करना था। उन्होंने पार्टीजनों से आकाश को पहले की तुलना में और अधिक सम्मान देने का आग्रह किया।

लोकसभा चुनाव में बसपा का वोट शेयर और सीटें

सालबसपा को मिली सीट बसपा को मिले वोट (प्रतिशत में)
198932.1
199131.8
1996114.0
199854.7
1999144.2
2004195.3
2009216.2
201404.2
2019103.7
2024 0 2.04

आकाश आनंद को बनाया उत्तराधिकारी

आकाश आनंद को 2019 में पहली बार बसपा का राष्ट्रीय समन्वयक नियुक्त किया गया और फिर पिछले साल दिसंबर में उन्हें मायावती का राजनीतिक उत्तराधिकारी नामित किया गया। हालाँकि, मई 2024 में लोकसभा चुनाव के दौरान योगी सरकार को आतंकवादियों की सरकार कहने पर नाराजगी के बाद मायावती ने उन्हें हटा दिया था। आनंद की यह टिप्पणी सीतापुर में एक पार्टी रैली में नफरत भरे भाषण को लेकर उनके खिलाफ यूपी पुलिस की कार्रवाई के बाद आई थी। पार्टी पदों से हटाए जाने के बाद आनंद ने अपना लोकसभा अभियान बीच में ही रोक दिया था।

राज्यों के प्रभारियों में फेरबदल

समीक्षा बैठक में उन्हें वापस लाया गया, जहां कई बसपा उम्मीदवारों ने बताया कि आनंद के खिलाफ कार्रवाई से उनके अभियान पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। उन्होंने कहा कि यह कदम दलित समुदाय को भी पसंद नहीं आया, उन्हें लगा कि बसपा ने भाजपा के सामने घुटने टेक दिए हैं।

मंगलवार को लखनऊ में बसपा केंद्रीय कार्यकारिणी समिति और उसके राष्ट्रीय पदाधिकारियों की बैठक में मायावती ने चुनाव वाले राज्यों के प्रभारियों में फेरबदल किया। आनंद को हरियाणा और दिल्ली सौंपा गया, जहां क्रमशः 1 अक्टूबर और अगले साल चुनाव होंगे।

हरियाणा में बसपा और आईएनएलडी का गठबंधन

आनंद पहले ही हरियाणा में काम पर लग गए हैं जहां बसपा ने ओम प्रकाश चौटाला के नेतृत्व वाली इंडियन नेशनल लोक दल (आईएनएलडी) के साथ गठबंधन किया है। वहां एक संयुक्त बसपा-आईएनएलडी कार्यकर्ताओं की बैठक आयोजित की गयी। पार्टी की चुनावी तैयारियों की देखरेख के लिए उनका विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों की यात्रा करने और विधानसभा चुनावों के मद्देनजर 10 रैलियां करने का कार्यक्रम है। सूत्रों ने बताया कि मायावती के भी राज्य का दौरा करने की संभावना है।

तेलंगाना और आंध्र प्रदेश की जिम्मेदारी मायावती ने पार्टी के वरिष्ठ नेता अशोक सिद्धार्थ की जगह राज्यसभा सांसद रामजी गौतम को सौंपी है, जिन्हें महाराष्ट्र में पार्टी मामलों को संभालने का काम सौंपा गया है, जहां इस साल के अंत में चुनाव होने हैं।

बसपा के पूर्व उपाध्यक्ष राजा राम को जम्मू-कश्मीर में प्रतिनियुक्त किया गया है और उन्हें 18 सितंबर से शुरू होने वाले केंद्र शासित प्रदेश में तीन चरण के विधानसभा चुनावों से पहले पार्टी के संगठन और अभियान के निर्माण का काम सौंपा गया है।

सहयोगियों के लिए बसपा ने खोले दरवाजे

एनडीए और विपक्षी इंडिया गठबंधन से समान दूरी रखते हुए, बसपा ने यूपी के बाहर अन्य दलों के साथ गठबंधन के दरवाजे खोलने का फैसला किया है। बसपा के एक नेता ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत के दौरान कहा, “बहनजी ने हमें गठबंधन सहयोगियों की तलाश करने के लिए कहा है लेकिन केवल उन क्षेत्रीय दलों के साथ जो एनडीए और इंडिया गठबंधन का हिस्सा नहीं हैं। बसपा छोटे राज्य-आधारित दलों तक पहुंच सकती है और दलितों और अन्य समुदायों का एक सामाजिक गठबंधन विकसित कर सकती है।”

बसपा ने बदली रणनीति

सार्वजनिक मुद्दों पर विरोध प्रदर्शन न करने के अपने पहले के रुख के विपरीत, बसपा ने अनुसूचित जाति और जनजाति के सब-क्लासिफिकेशन पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 21 अगस्त के भारत बंद को न केवल समर्थन दिया बल्कि इसमें भाग भी लिया।

बसपा नेता ने कहा, “18 अगस्त को हमने बहनजी को सुझाव दिया कि प्रदर्शनों में भाग लेने से दलित समुदाय में एक अच्छा संदेश जाएगा। वह सहमत हो गईं और ऐसा लगता है कि यह कदम काम कर गया क्योंकि जो लोग पार्टी से दूर हो गए थे, उन्होंने वापस लौटने का इरादा दिखाया है। हम भविष्य में दलितों और ओबीसी से संबंधित अन्य मुद्दों पर भी इसी तरह के आंदोलन करने की योजना बना रहे हैं।”

घटाया सदस्यता शुल्क

लोकसभा में हार के बाद बसपा ने अपना सदस्यता शुल्क 200 रुपये से घटाकर 50 रुपये कर दिया है। सूत्रों ने कहा कि पार्टी विभिन्न राज्यों में विधानसभा चुनावों से पहले अपने चुनावी आधार को फिर से हासिल करने की उम्मीद में अपनी संख्या बढ़ाने की उम्मीद कर रही है। “फीस कम करके, पार्टी समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों से अधिक लोगों को आकर्षित कर सकती है। पार्टी के एक अंदरूनी सूत्र ने कहा, हम युवाओं को शामिल करने और उन्हें संगठनात्मक जिम्मेदारियां देने पर भी ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।